हरियाणा की अदालतों में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने वाले कानून को SC में चुनौती पर बोली एडवोकेट संगीता भाटी
आजादी के 8 दशक बीत जाने के बावजूद भी हमारे देश का दुर्भाग्य है कि लोगों को उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय में हिंदी भाषा में कोई भी दावा पेश करने और उसकी जिरह करने में उनको हिंदी भाषा में शर्म आती है वह हिंदी का प्रयोग से अपने आप को अपंग समझते हैं जबकि हिंदी हमारी मातृभाषा है इस तरह से हम न्याय के प्रांगण में बैठे हुए अपनी मातृभाषा के साथ अन्याय कर रहे हैं जो कि हमारी मातृभाषा को भी न्याय का अधिकार है!
इसी संदर्भ में वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में एक कानून को चुनौती दी है जो हरियाणा की अदालतों में हिंदी भाषा को आधिकारिक भाषा बनाती हैं
उनकी याचिका में कहा गया है कि 2020 तक, हरियाणा राजभाषा (संशोधन) अधिनियम ने असंवैधानिक और मनमाने ढंग से हिंदी को लागू किया है, क्योंकि राज्य भर में निचली अदालतों में केवल आधिकारिक भाषा का उपयोग किया जाता है।
वकीलों ने तर्क दिया है कि न्याय के प्रशासन में निचली अदालतों में अधिवक्ताओं और अधीनस्थ न्यायपालिका द्वारा अंग्रेजी का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। हिंदी को एकमात्र भाषा के रूप में लागू करने से उन वकीलों के बीच दो वर्गों में मतभेद होगा जो हिंदी में सहज हैं और जो नहीं हैं।
वकीलों का तर्क है कि संशोधन को गलत धारणा के तहत पेश किया गया है कि हरियाणा के निचली अदालतों में कानून का अभ्यास करने वाले सभी हिंदी में कुशल हैं। इसने कहा कि वास्तविकता इससे बहुत दूर है क्योंकि राज्य एक औद्योगिक केंद्र है।
बड़ी संख्या में वकील हैं जो पूरी तरह से हिंदी में अपने मामलों पर बहस करने के लिए तैयार नही हैं याचिका में कहा गया कि अदालतों में न्याय पाने और न्याय पाने का एकमात्र संभव तरीका हिंदी है।
संविधान के अनुच्छेद 348(1) के उपखंड क के तहत सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट के कार्यवाही इंग्लिश भाषा में किए जाने का प्रावधान है जबकि अनुच्छेद 348 (2) के तहत किसी राज्य का राज्यपाल उस राज्य के हाई कोर्ट में हिंदी भाषा या उस राज्य की राजभाषा का प्रयोग राष्ट्रपति की अनुमति से प्राधिकृत कर सकता है!
अधिवक्ता संगीता भाटी रावत ने यह भी बताया कि यूपी बिहार राजस्थान एवं मध्य प्रदेश सहित देश के चार राज्यों के हाईकोर्ट में हिंदी में कामकाज के लिए प्राधिकृत किया गया है जबकि अन्य न्यायालय में सभी कार्यवाही अंग्रेजी में ही की जाती है हालांकि मातृभाषा को कोई विकल्प नहीं हो सकता और यह एक वैज्ञानिक सच है इसके बावजूद अपनी मातृभाषा में न्याय पाने का अधिकार लोगों को नहीं मिला है ना ही हमारी मातृभाषा हिंदी को न्याय मिला है!
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