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क्या महामारी अपना असर केवल उन राज्यों में ही दिखा रही है जहां चुनाव नहीं है ?

विश्व भर के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में विख्यात भारत में हर महीने कोई ना कोई चुनावी प्रक्रिया चलती ही रहती है। इन दिनों बंगाल विधानसभा चुनाव ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया हुआ है, विशेष तौर पर राजनीतिक पार्टियों द्वारा किया गया चुनावी प्रचार।

सत्तासीन बीजेपी पार्टी के उच्च स्तरीय नेता व अन्य पार्टियों के नेता बंगाल जाकर ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे हैं। इन रैलियों में महामारी के नियमों की जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही है। लोगों के बीच 2 गज की दूरी तो क्या 1 मीटर की दूरी भी देखने को नहीं मिल रही। ‌

क्या महामारी अपना असर केवल उन राज्यों में ही दिखा रही है जहां चुनाव नहीं है ?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व गृह मंत्री अमित शाह की रैलियों में भी महामारी के नियमों की जमकर धज्जियां उड़ाई गई। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोगों को महामारी के नियमों की पालना करने का संदेश देते हैं वहीं दूसरी तरफ उनकी रैलियों में महामारी के नियमों की जमकर धज्जियां उड़ाई जाती है।

आलोचकों ने सरकार के इस दोगले व्यवहार की जमकर आलोचना की है वही सोशल मीडिया पर ही इसका जमकर विरोध देखने को मिल रहा है। भीड़ भाड़ होने के चलते बंगाल में महामारी के मामलों में भी इजाफा देखने को मिल रहा है। आए दिन सैकड़ों की संख्या में संक्रमित मरीज आ रहे हैं।

ऐसी स्थिति में यह कहना गलत नहीं होगा कि महामारी अपना असर केवल उन राज्यों में दिखा रही है जहां चुनाव नहीं है।

अगर हम बात करें विदेशों की तो विदेशों में महामारी के नियमों को लेकर काफी सख्ती देखने को मिलती है। इसका एक ताजातरीन उदाहरण नॉर्वे से देखने को मिलता है जहां नॉर्वे के प्रेसिडेंट के द्वारा उनके जन्मदिवस पर एक पार्टी का आयोजन किया गया। पार्टी में केवल 10 लोगों के आने की अनुमति थी परंतु वहां 13 लोग आ गए जिसके बाद वहां की पुलिस प्रशासन के द्वारा उन 3 लोगों का चालान किया गया तथा प्रेसिडेंट के द्वारा उन्हें दंडित भी किया गया।

यह वाक्या भारत की वर्तमान स्थिति के लिए एक नजीर बन सकता है। ‌ नजीर यह कि कानून व्यवस्था के ऊपर कोई भी नहीं है परंतु भारत में स्थिति बिल्कुल उलट है। ‌ चुनावी प्रचार में रैली को संबोधित करने आए नेता तुरंत ही अपना मास्क नीचे कर लेते हैं।

कहा जाता है कि यथा राजा तथा प्रजा। यदि राजा ही नियमों का पालन नहीं करेंगे तो आम जनता से क्या ही उम्मीद की जा सकती है।

Avinash Kumar Singh

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