जो पीपीई किट पहनी जाती है बचाव के लिए, वो यहां खुलेआम बिक रही कबाड़ में

जब भी इस दुनिया में कोई संकट आता है तो कुछ लोग अपने लाभ के लिए दूसरों की मजबूरी का फायदा उठाना शुरू कर देते हैं। इस समय महामारी का प्रकोप हर किसी के लिए जानलेवा बना हुआ है। यह संकट की घड़ी है। इस महामारी से बचाव के लिए पीपीई किट की आवश्यक्ता बहुत है। लेकिन कुछ मौत के सौदागरों ने इस पीपीई किट को भी नहीं छोड़ा।

पीपीई किट का उपयोग कर के अकसर उसे कूड़े में डाल दिया जाता है। यह कूड़ा मेडिकल वेस्ट होता है जो काफी हानिकारक बताया जाता है। संकट का यह दौर पूरी दुनिया में चल रहा है। एक तरफ दूसरे देश पीपीई किट समेत मेडिकल उपकरण भेजकर भारत की मदद कर रहे हैं, वहीं दूूसरी ओर कुछ भारतीय ऐसे भी हैं जो दूसरों की जान जोखिम में डालकर इस महामारी में भी मुनाफा कमा रहे हैं।

जो पीपीई किट पहनी जाती है बचाव के लिए, वो यहां खुलेआम बिक रही कबाड़ में

ऐसे लोगों के कारण लगातार मामलों में इज़ाफ़ा होता जा रहा है। खुद के मुनाफे के बारें में सोचा जा रहा है किसी की ज़िंदगी इनके लिए मायने नहीं रखती है। उनको इस बात की भी डर नहीं है कि जो संक्रमित चीजें बेचकर वह मुनाफा कमा रहे हैं इससे दूसरों की जान जा सकती है। उनको मतलब है तो सिर्फ मुनाफे से। खून में सने कैनुला, इंजेक्शन आदि मार्केट में पड़े आम दिखाई देते हैं।

यह अमानवीय चेहरा ही है। लालच का लोभ है। किसी की ज़िंदगी के साथ खिलवाड़ है। संकट की इस घड़ी में इन्हे मुनाफे से मतलब है। आपको बता दें कि मुंडका कबाड़ी मार्केट में मेडिकल वेस्ट पहुंचता है। यहां पर दिल्ली समेत दूसरे राज्यों से इस्तेमाल किए गए कैनुला, मास्क, दस्ताने, पीपीई किट, इंजेक्शन, सुई आदि लाए जाते हैं। इसके बाद इन्हें दिल्ली व हरियाणा के व्यापारियों को बेच दिया जाता है। जो इन्हें बच्चों से साफ करवाकर दोबारा केमिस्ट, अस्पताल आदि को बेच देते हैं।

हरियाणा समेत एनसीआर के इलाकों में इसकी सप्लाई सबसे अधिक की जाती है। अस्पताल से लेकर केमिस्ट हर जगह इनकी सेटिंग होती है। महामारी के दौरान स्वास्थ्य कर्मचारियों की ओर से इस्तेमाल की गई पीपीई किट, दस्ताने, इंजेक्शन आदि यहां दिनदहाड़े बेचे जाते हैं। यहां पीपीई किट एक-दो नहीं बल्कि, क्विंटल व टन के हिसाब से मिलती हैं।

ऐसे लोग जो संकट में भी लोगों की मजबूरी का लाभ उठा कर भारी मुनाफा कमा रहे हैं वह अपना अमानवीय चेहरा ही उजागर कर रहे हैं। यह किसी की ज़िंदगी और मौत का सवाल है।

Avinash Kumar Singh

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