प्रदेश की मनोहर सरकार द्वारा दलहनी और तिलहनी फसल बोने के लिए प्रेरित करने वाले प्रयास अब सफल होते नजर आ रहे हैं। जिस बाजरे व सरसों की फसल को यहां कभी उचित भाव नहीं मिले, इस बार ये दोनों फसल बोने वाले किसान मालामाल हो गए।
दरअसल, पिछले साल दिसंबर में बाजरा उत्पादक किसानों को जहां अपनी फसल के उम्मीद के कहीं अधिक दाम मिले, वहीं इस बार सरसों के बढ़े रेट ने किसानों की जेब भारी कर दी है। सूरजमुखी की फसल अभी बाजार में आई भी नहीं, मगर खुले बाजार में अभी से उसके दम बढ़ते नजर आ रहे हैं।

केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों में फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय किए जाने का प्रविधान है। यदि किसी किसान को खुले बाजार में अपनी फसल के दाम अधिक मिलते हैं तो वह उसे निजी खरीदारों को बेच सकता है। यदि खुले बाजार में दाम उचित नहीं मिलते या सरकार द्वारा निर्धारित दामों से कम मिलते हैं तो सरकार प्रत्येक किसान की फसल का एक-एक दाना एमएसपी पर खरीदेगी।
सरसों और बाजरा, यह दोनों फसलें दक्षिण हरियाणा के आठ जिलों में होती हैं। हरियाणा के करीब एक दर्जन जिले राजस्थान और पंजाब की सीमा से सटे हुए हैं। पिछले साल सरकार ने बाजरे का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2,150 रुपये क्विंटल निर्धारित किया था। उस समय बाजरा राजस्थान और पंजाब में बुरी तरह से पिट रहा था।
वहां के किसानों को 1200 से 1350 रुपये क्विंटल में अपना बाजरा निपटाना पड़ा। हरियाणा में भी प्राइवेट सेक्टर में 1200 से 1500 रुपये क्विंटल में बाजरे की मांग की गई, लेकिन हरियाणा सरकार ने अपने राज्य के किसानों का समस्त बाजरा 2150 रुपये प्रति क्विंटल की दर से खरीदा। यानी एमएसपी नहीं होती तो किसानों को सीधे एक हजार रुपये क्विंटल तक का नुकसान होता।
एमएसपी ने इन बाजरा उत्पादक किसानों को बड़े नुकसान से बचा लिया। यहां तक कि पंजाब व राजस्थान के व्यापारियों ने वहां के किसानों से कम रेट पर बाजरा खरीदकर हरियाणा सरकार को बेचने का प्रयास किया, लेकिन वास्तविक किसान नहीं होने की वजह से ऐसे व्यापारी अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो सके।
अब सरकार इस बाजरे की फूड प्रोसेसिंग के लिए मल्टीनेशनल कंपनियों के साथ व्यापारिक समझौते करने में लगी है। ये कंपनियां हरियाणा सरकार से यह बाजरा खरीदेंगी और उसके बिस्किट बनाकर या मिक्चर नमकीन में इस्तेमाल कर बाजार में उतारेंगी। जाहिर है कि ऐसा करने पर बाजरा उत्पादक किसानों का भविष्य पहले से ज्यादा सुरक्षित हो सकेगा।
हरियाणा सरकार ने इस बार 80 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य निर्धारित किया था। लेकिन अधिक उत्पादन और पड़ोसी राज्यों के किसानों के आने से सरकार को 85 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदनी पड़ी।
खुले बाजार में गेहूं के अधिक रेट नहीं थे, जिस कारण किसानों का गेहूं एमएसपी 1975 रुपये प्रति क्विंटल पर खरीदा गया। यह कुछ ऐसे उदाहरण हैं, जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि तीन कृषि कानून नुकसानदायक नहीं हैं, जैसाकि प्रचारित किया जा रहा है।
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