हरियाणा में हिसार के अग्रोहा ब्लॉक के एक नंगथला गांव है। यहां एक शख्स पिछले कई सालों से पक्षियों के लिए कुछ अनोखे काम कर रहा है। जिससे कि उन्हें कम से कम परेशानी झेलनी पड़े।
गौरतलब, 32 वर्षीय रमेश वर्मा पिछले 15 सालों से पर्यावरण और प्रकृति के लिए काम कर रहे हैं। एक किसान के घर जन्मे रमेश ने सदैव यही देखा है कि कैसे उनके घर में पशु-पक्षियों का ख्याल रखा जाता है, चाहे चिड़ियाँ को पानी देना हो, आँगन में पेड़-पौधे लगाना हो या फिर किसी अन्य जीव-जंतु की जान बचानी ही ।
रमेश ने द बेटर इंडिया से अपनी बात सांझा करते हूं बताया कि, “मुझे बचपन से ही प्रकृति के प्रति प्यार और लगाव था। हमेशा से ही मैं इससे संबंधित मैगज़ीन या फिर अख़बारों में छपने वाले लेखों को पढ़ता था। एक बार मैंने एक लेख को पढ़ा जिसमें बताया गया कि कैसे हमारे यहाँ घरेलू चिड़ियाँ दिन प्रतिदिन विलुप्त होती जा रही है। फिर मैंने अपने आस-पास के वातावरण पर ध्यान दिया।
ध्यान देने के बाद कुछ एहम बातों पर ध्यान गया जैसे कि हरियाणा में उल्लू काफी होते हैं लेकिन मेरे गाँव में मुझे सिर्फ दो उल्लू के जोड़े दिखे। दिन रात ये बात मेरे दिल और दिमाग में घूमने लगी और मैंने जाना कि सच में पशु पक्षियों की प्रजातियां विलुप्त होती जा रही है ।”
कॉलेज के दिनों से ही गाँव में युवा क्लब के पर्यावरण प्रभारी रहे रमेश ने ठान लिया कि अब उन्हें कुछ अनोखा करना होगा। इसकी शुरूआत उन्होंने अपने घर से ही की। अपने घर में उन्होंने घोंसले लगाए। उनका गांव में घर खेतों के नजदीक है तो उन्होंने आस-पास के खेतों में पेड़ों पर भी घोंसले बनाकर टांग दिए। आज भी उनका यह निःस्वार्थ कार्य जारी है और अच्छी बात यह है कि अब बहुत से किसान उन्हें खुद बुलाते हैं और घोसले लगवाने के लिए।
रमेश ने कहा, “जितना मैंने पक्षियों के बारे में पढ़ा और समझा है, इससे मै उन बातों को जान पाया हूं कि सबसे पहले हमें अपने चारों तरफ पर्यावरण और पशु-पक्षियों के अनुकूल वातावरण तैयार करना होगा। इसके लिए मैंने अपने घर में ही किचन गार्डन लगाया लिया।”
रमेश ने बताया, “हम अपने रोज़मर्रा के कामों में भी काफी एहतियात करते हैं। आप कहीं भी देखोगे तो सबसे बड़ी समस्या होती है घर से गंदा पानी बाहर जाने की और कूड़े-कचरे की। लेकिन हमारे घर से कोई गंदा पानी बाहर नहीं जाता। कपड़े धोने के बाद बचे पानी को बड़े और छायादार पेड़ों में डाल दिया जाता है। बाकी अगर लगता है कि पानी में बहुत ज्यादा गंदगी है तो हमारे घर में कच्ची जगह भी है वहां उसे डाला जाता है ताकि यह सीधा पेड़ों में भी न जाए और मिट्टी में नमी भी रहे।”
इसके साथ ही, गाँव अगर कहीं कोई सांप-बिच्छु जैसा जीव निकल आता है तो रमेश को ही उसे पकड़ने के लिए बुलाया जाता है। रमेश उसे पकड़कर जंगल की तरफ छोड़ आते हैं। यह रमेश के प्रयासों से ही संभव हुआ है कि इस गाँव के लोग अब प्रकृति और इसके जीवों की रक्षा करने लगे हैं। रमेश ने बहुत से लोगों को लोहे, लकड़ी के डिब्बों और गत्तों से घोंसला बनाना सिखाया है।
इस सब से हटकर, उन्होंने अपने गाँव की खाली-बेकार पड़ी ज़मीनों को हर्बल पार्क में बदलने की भी ठानी है। वह बताते हैं कि गाँव को हरियाली से भरने के लिए और साथ ही, गाँव में औषधीय पौधे रहें, इसके लिए उन्होंने जगह-जगह एलोवेरा, तुलसी जैसे पेड़ लगाना भी शुरू किया ।
कोरोना को लेकर क्या बताया ?
कोरोना के विषय पर उन्होंने बताया, “COVID-19 की वजह से जब बाज़ारों में सैनीटाइज़र नहीं मिल रहा था और लोगों को बताया गया कि घर पर ही आप यह बना सकते हो तो मेरे पास बहुत से लोगों के फोन आए। सबको एलोवेरा चाहिए था। इसके बाद, कई लोग मेरे यहाँ से अपने घर में लगाने के लिए एलोवेरा की कलम भी लेकर गए। अब लोगों को समझ में आ रहा है कि पेड़-पौधे हमारे लिए कितने महत्वपूर्ण हैं।”
रमेश वर्मा को उनके निःस्वार्थ कार्यों के लिए कई जगह सम्मानित भी किया गया । उनसे प्रेरित होकर उनके अपने बच्चे और गाँव के अन्य युवा भी पर्यावरण संरक्षण के काम से जुड़ रहे हैं। प्रकृति को बचाने में अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं ।
अंत में रमेश की दिल छू जाने वाली बात
रमेश कहते हैं, “मैं जहाँ भी घोंसला लगाता हूँ वहां की खोज-खबर समय-समय पर लेता रहता हूँ कि किसी चिड़िया ने घोंसला बनाया या नहीं। और खुशकिस्मती है कि ज़्यादातर में कोई न कोई पक्षी अपना बसेरा कर लेता है।” उन्होंने ये अपील भी करी की “मैं आप सबसे बस यही कहूँगा कि ज्यादा नहीं बस अपने घरों में हर किसी को एक-एक घोंसला लगाना चाहिए ताकि उसमें कोई चिड़िया शरण ले सके।”
आज अंतराष्ट्रीय पर्यावरण दिवस पर पर्यावरण के रक्षक रमेश वर्मा के जज्बे को हमारी टीम की ओर से भी सलाम और धन्यवाद क्योंकि पर्यावरण के रक्षक बनना बेहद मुश्किल है।
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