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इस टी स्टूडियो को महिलाएं करती हैं संचालित, देश ही नहीं विदेशों में भी होती है चाय की सप्लाई

चाय के बिना भारत में कई लोगों की सुबह में जान नहीं आती। चाय एक एहसास है। नीलगिरी की चाय के बारे में लिखना थोड़ा मुश्किल है। यह बताने की ज़रूरत नहीं है कि यहां के घुमावदार पहाड़ियों में ये चाय के बागान कैैसे दिखते हैं। हरियाली से ढंके इस इलाक़े में लाल रंग की एक छोटी सी बिल्डिंग बरबस अपनी तरफ़ आकर्षित करती है। लाल रंग की ये बिल्डिंग मुस्कान खन्ना का आकर्षक टी स्टूडियो है।

हमारे भारत में हर गली, नुक्कड़ चौराहे पर एक चाय की दुकान मिल जाएगी। यह टी स्टूडियो तमिलनाडु के नीलगिरी में कट्टाबेट्टू के एक छोटे से गांव टी मनीहट्टी में स्थित है। ये जगह तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से करीब 550 किलोमीटर दूर है।

इस टी स्टूडियो को महिलाएं करती हैं संचालित, देश ही नहीं विदेशों में भी होती है चाय की सप्लाई

इस स्टूडियो की स्थापना 2018 में हुई थी। आज दक्षिण भारत के सर्वश्रेष्ठ स्टूडियो वाले श्रेणी में अपना स्थान दर्ज़ करा चुका है। यह टी स्टूडियो दरअसल दक्षिण भारत के सबसे बड़े चाय उत्पादक जिले नीलगिरी में चाय उत्पादन की एक छोटी सी इकाई है। यहां चार तरह की ब्लैक टी, छह तरह की ग्रीन टी, तीन तरह की व्हाइट टी और दो तरह के ओलोंग टी का उत्पादन होता है। ये सभी उत्पादन सेमी हैंड क्राफ़्टड हैं और ग्राहकों की सुविधानुसार इन्हें बनाया जाता है।

चाय के बिना कई लोग अपना दिन शुरू नहीं करते हैं। कुछ लोग तो ऐसे भी होते हैं जिन्हें ख़ुशी में भी चाय और गम में भी चाय की ज़रूरत होती है। बाहर के ठंड के विपरीत गरम चाय की भीनी खुशबू माहौल को गरम बनाए रखती है। इस टी स्टूडियो की सबसे विशेष बात यह है कि यहां की सभी कर्मचारी महिलाएं हैं, जो पड़ोस के ही गांव में रहती हैं। जबकि इस टी स्टूडियो की मालकिन मुस्कान खन्ना 20 किलोमीटर दूर कुन्नूर में रहती हैं।

कई महिलाओं को यहां से रोजगार मिल रहा है। चाय के ज़रिये उनका घर-परिवार चल रहा है। मुस्कान प्रति माह करीब 2 हज़ार किलोग्राम तक चाय की पत्तियां खरीदती है। उनके द्वारा खरीदी गई चाय की पत्तियां संपूर्णतः जैविक हुआ करती है। इनके उत्पादन में कहीं भी केमिकल का उपयोग नहीं होता। चाय के पतियों के उत्पादन में गोबर की खाद का उर्वरक होता है।

Avinash Kumar Singh

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