कर कुछ करने का ठान लें हम तो वो काम हो ज़रूर सकता है। बस हमें सकारात्मक रहना चाहिए। कभी हमें अपने लक्ष्य से नहीं भटकना चाहिए। दुनिया में असंभव कुछ भी नहीं है बसर्ते कोई भी वह सच्ची निष्ठा, मेहनत और लगन से किया जाय। ऐसा ही कुछ नामुमकिन सा लगने वाला कारनामा असम के मछुआरा समुदाय की छह युवा लड़कियों ने कर दिखाया है।
इन लड़कियों ने एक बायोडिग्रेडेबल योगा मैट बनाया है। ऐसा करने का कोई लड़का सोच भी नहीं सकता था शायद। उन्होंने समस्या को अवसर के तौर पर लेते हुए बायोडिग्रेडेबल मैट विकसित की, जो झीलों में मिली जल कुंभी से बनाई गई है। इन लड़कियों द्वारा विकसित बायोडिग्रेडेबल तथा कंपोस्टेबल मैट इस जलीय पौधे को समस्या से संपदा में बदल सकती है।
युवतियों ने जो कमाल कर दिखाया है उससे यह माना जा रहा है कि यह एक बड़ी समस्या का हल कर सकता है। सभी लड़कियां मछुआरे समुदाय की हैं जो गुवाहाटी शहर के दक्षिण पश्चिम में एक स्थायी मीठे पानी की झील दीपोर बील, जो रामसार स्थल और एक पक्षी वन्यजीव अभ्यारण्य के नाम से विख्यात है, के बाहरी हिस्से में रहती हैं। यह झील मछुआरे समुदाय के 9 गांवों के लिए आजीविका का एक स्रोत बनी हुई है जिन्होंने सदियों से इस बायोम को साझा किया है लेकिन पिछले कुछ वर्षों से वे जलकुंभियों की अत्यधिक बढोतरी तथा जमाव से पीड़ित हैं।
असम के मछुआरा समुदाय को जलकुंभी ने परेशान कर रखा है। अब इससे निजात मिलने की संभावना उठी है। इन लड़कियों का परिवार प्रत्यक्ष रूप से अपने जीवित रहने के लिए इस दलदली जमीन पर निर्भर है और उनका यह नवोन्मेषण पर्यावरण संरक्षण तथा डीपोर बील की निरंतरता की दिशा में उल्लेखनीय योगदान दे सकता है तथा स्थानीय आजीविका भी सुनिश्चित कर सकता है। इस मैट को ‘मूरहेन योगा मैट‘ के नाम से जाना जाता है और इसे जल्द ही एक अनूठे उत्पाद के रूप में विश्व बाजार के सामने प्रस्तुत किया जाएगा।
महिलाएं कुछ भी कर सकती हैं। महिलाओं को कभी कम नहीं समझना चाहिए। इस कदम की शुरुआत भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक स्वायत्तशासी निकाय उत्तर पूर्व प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग एवं पहुंच केंद्र की एक पहल के जरिये हुई जिससे कि जल कुंभी से संपदा बनाने के लिए छह लड़कियों के नेतृत्व में एक सामूहिक ‘सिमांग‘ अर्थात स्वप्न से जुड़े समस्त महिला समुदाय को इसमें शामिल किया जा सके।
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