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कभी होते थे जिगरी दोस्त अब हो गए हैं जानी दुश्मन, फरीदाबाद के दो राजनेताओं की कहानी

कहा जाता है कि दोस्त एक ऐसा तोहफा है तो बहुत अनमोल होता है क्योंकि दुनिया के सारे रिश्ते हमें ईश्वर वरदान के तौर पर देता है लेकिन दोस्त हम अपनी मर्जी से चुनते हैं ना उसमें घर वालों की मर्जी शामिल होती है नाही ऊंच-नीच का कोई रास्ता देखा जाता है

सामने दिखाई देता है तो बस अपना एक दोस्त जिसके आगे दुनिया छोटी लगने लगती हैं कभी-कभी एक दोस्त और दोस्ती के लिए बहुत कुछ कर जाता है फर्श से लेकर अर्श का सफर भी इसमें शामिल होता है

कभी होते थे जिगरी दोस्त अब हो गए हैं जानी दुश्मन, फरीदाबाद के दो राजनेताओं की कहानीकभी होते थे जिगरी दोस्त अब हो गए हैं जानी दुश्मन, फरीदाबाद के दो राजनेताओं की कहानी

लेकिन कई बार दोस्ती किसी बात से टूट जाती है लेकिन उस दोस्ती के किस्से हमेशा लोगों की जुबान पर रह जाते हैं आज हम आपको फरीदाबाद की एक ऐसी दोस्ती के बारे में बताने जा रहे हैं फरीदाबाद के दो राजनेता जिन्होंने ना सिर्फ एक दूसरे के दिल में बल्कि फरीदाबाद की जनता के दिलों पर विराज किया हां हम बात कर रहे हैं केंद्रीय मंत्री कृष्णपाल गुर्जर और और विधानसभा पूर्व विधायक विपुल गोयल की

कभी एक समय था जब इन दोनों की दोस्ती के चर्चे शहर में हुआ करते थे यह उन दिनों की बात है जब चौधरी कृष्णपाल गुर्जर ना सांसद थे और ना ही राजनेता और उस समय विपुल गोयल भी एक आम व्यापारी थे

धीरे धीरे कृष्णपाल गुर्जर का राजनैतिक सफर शरू हुआ 1994  भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में निगम काउंसलर चुनाव जीता और पार्टी के राज्य मंत्री बने। वह 1996 में मेवला महाराजपुर निर्वाचन क्षेत्र के लिए हरियाणा विधान सभा के सदस्य बने।

1996 में कृष्ण पाल गुर्जर का राजनैतिक ओहदा बढ़ा उधर विपुल गोयल का व्यापार फलने फूलने लगा अब दोनों की दोस्ती और गहरी होती जा रही थी दोस्ती का एक रूल है कि अपने दोस्त को वहाँ तक लाया जाए जंहा तक इंसान खुद है तो केंद्रीय मंत्री कृष्ण पाल गुर्जर ने विपुल गोयल को दोस्ती का बेहतरीन तोहफा दिया उनको राजनीति में लाके ।

अब समय था दोस्ती की असली कीमत चुकाने का. कृष्ण पाल गुर्जर सांसद और विपुल गोयल शामिल हो गए विधायक के उम्मीदवारों की दौड़ में जैसा कि पहले बताया कि दोस्ती का एक रूल होता है कि अपने दोस्त को भी वहीं पर लाना है तो अब बिल्कुल करें विधायक सीट से विधायक बने और विधायक कार्यकाल में उनको पद भी मिल गया कैबिनेट मंत्री का

यहां से हुई शुरुआत अलग होने की

कहा जाता है कि टिकट की घोषणा से पहले बीजेपी चुनाव समिति की दिल्ली में मैराथन बैठक हुई. इस बैठक के बाद मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने सांसदों के साथ मंत्रणा की. बैठक में कृष्णपाल गुर्जर, राव इंद्रजीत समेत कई सांसद मौजूद रहे. अब राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि विपुल गोयल की टिकट कटने का सबसे बड़ा कारण कृष्णपाल गुर्जर के साथ उनके रिश्ते हैं.

2019 में चुनाव होने वाले है कृष्ण पाल गुर्जर चाहते थे कि उनका उत्तराधिकारी है विधायक पद के उम्मीदवार है लेकिन पार्टी ने कहा कि किसी भी नेता को संबंधी को टिकट नही दी जाएगी. उसके बाद 2019 के चुनाव में पार्टी ने विपुल गोयल की टिकट काट दी लोगो की दबी आवाज में सुनने को मिला कि यह टिकट केंद्रीय मंत्री ने कटवाई हैं

रामलीला में हुई थी गोयल और गुर्जर की तू-तू मैं-मैं


बात अक्टूबर 2018 की है जब दोनों ही नेता रावन दहन के लिए पहुंचे थे. इस दौरान बीजेपी के दोनों ही सीनियार नेता कृष्णपाल गुर्जर और विपुल गोयल के बीच चल रही पर्दे के पीछे की लड़ाई खुलकर सामने आ गई थी.

भविष्य में यह दोस्ती कितने बढ़ेगी तो यह आने वाले समय बताएगा

Avinash Kumar Singh

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