इंडियन नेशनल लोकदल के अध्यक्ष ओमप्रकाश चौटाला जुलाई के महीने में ही जेल से छूटकर आए हैं। जेल से आने के बाद तुरंत ही वे अपनी राजनीतिक पारी शुरू कर देना चाहते हैं। कानूनी पेंच के चलते वे अभी चुनाव लडने की स्थिति में भले ही न हो, लेकिन सवाल उठता है की उम्र के इस पड़ाव में भी उन्हें चुनाव लडने की इतनी जल्दबाजी क्यों है।
इंडियन नेशनल लोकदल के अध्यक्ष ओमप्रकाश चौटाला इस बात के जीते – जागते प्रमाण हैं कि सत्ता की भूख इतनी आसानी से खत्म नहीं होती है। वर्ष 1966 में पंजाब से अलग होकर एक अलग राज्य के रूप में गठित हरियाणा में वे लगातार पांच बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं।
लेकिन सत्ता में बिताए समयानुसार चौटाला भजनलाल और बंसीलाल के मुकाबले केवल 6 साल 49 दिन ही मुख्यमंत्री पद पर रहे। हरियाणा में बने 10 मुख्यमंत्रियों की लिस्ट में ओमप्रकाश चौटाला पांचवे स्थान पर हैं। शायद यही कारण है कि उम्र के इस पड़ाव पर भी उनकी सत्ता की भूख यूंही बनी हुई है। हरियाणा में अगला विधासभा चुनाव वर्ष 2024 ने होगा, तब तक उनकी उम्र 91 साल से केवल 3 महीने ही कम रह जाएगी। लेकिन चौटाला को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता।
नरेंद्र मोदी द्वारा जवाहर लाल नेहरू के कामराज के जमाने के कामराज योजना से नियम जारी किया गया की उनकी भारतीय जनता पार्टी में 75 वर्ष से अधिक के नेताओं को सरकार या पार्टी में जगह नहीं मिलेगी। एक उम्र के बाद नेताओं के रिटायर होने की बात भी रखी गई। लेकिन संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। जिस कारण चौटाला को चुनाव लडने से नहीं रोका जा सकता।
जुलाई के महीने में ही वह 8 साल की सजा काट कर आए हैं, इसलिए वह अभी चाह कर भी चुनाव नहीं लड़ सकते। उन्हें व उनके बड़े बेटे अजय सिंह चौटाला को वर्ष 2013 में प्राथमिक शिक्षक घोटाले के चलते 10 साल की सजा सुनाई गई थी। अधिक उम्र में अपाहिज होने की हरजी की मंजूरी के बाद चौटाला को 2 साल पहले ही रिहाई दे दी गई है। लेकिन वे अभी कोई चुनाव नहीं लड़ सकते। क्योंकि सजा पाए हुए नेताओं को अगले 10 सालों तक चुनाव ना लड़ने का प्रावधान है जिसमें सजा का समय भी शामिल है। वर्ष 2023 में चुनाव लड़ सकते हैं चौटाला, लेकिन उन्हें अभी चुनाव लड़ना है।
उनके छोटे बेटे अभय सिंह चौटाला जोकि सिरसा जिले के ऐलनाबाद से विधायक थे व इंडियन नेशनल लोकदल के इकलौते विधायक थे, उन्होंने साल के शुरुआत में ही किसान आंदोलन के समर्थन में हरियाणा विधासभा से इस्तीफा दे दिया था। वैसे तो छः महीने में उपचुनाव हो जाने थे, लेकिन कोरोना महामारी के चलते चुनाव आयोग रिस्क नहीं लेना चाहती थी। मद्रास हाई कोर्ट से पांच राज्यों में कोरोना महामारी के चलते चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग को पहले ही फटकार लगाई जा चुकी है।
जुलाई महीने में चौटाला जेल से छूट कर आए हैं और अभय सिंह के स्थान पर वे खुद ऐलनाबाद से चुनाव लड़ना चाहते हैं। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ रावत को इसलिए 4 जुलाई को इस्तीफा देना पड़ा क्योंकि वे छः महीने के भीतर विधायक नहीं बन सकते थे। पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सिर पे भी तलवार लटकी है, क्योंकि उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने राज्य विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की लेकिन ममता बनर्जी चुनाव हार गईं।चौटाला ने चुनाव आयोग को आवेदन दिया है जिसमे उन्होंने चुनाव न लडने के बारे में लगाए प्रतिबंध पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि यदि प्रतिबंध नहीं हटाए गए तो वे उच्च न्यायालय जायेंगे।
दरअसल सवाल ये है की आखिर चौटाला को चुनाव लडने की इतनी जल्दी क्यों है। आखिर क्यों वे अपने बेटे की जगह खुद चुनाव लड़ना चाहते हैं। चौटाला हरियाणा में अपनी जमीन तलाशना चाहते हैं। ममता बनर्जी बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दलों के गठबंधन बनाने के प्रयास में जुटी हुई है, वहीं चौटाला ने एक तीसरा मोर्चा बनाने की कही और वे उस पर काम भी करना चाहते हैं। अब देखना ये है कि क्या उम्र के इस पड़ाव में सफलता उनके कदम चूमेगी या फिर वे असफल होंगे।
लोक सभा निर्वाचन अधिकारी विक्रम सिंह ने कहा कि सही प्रशिक्षण लेने के उपरांत कार्य…
मैं किसी बेटी का अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकती। इसके लिए मैं कुछ भी कर…
एक शिक्षक के रूप में होने और MRIS 14( मानव रचना इंटरनेशनल स्कूल सेक्टर 14)…
श्री महारानी वैष्णव देवी मंदिर संस्थान द्वारा महारानी की प्राण प्रतिष्ठा दिवस के उपलक्ष्य में…
आज दिनांक 26 फरवरी को एनआईटी फरीदाबाद से विधायक नीरज शर्मा ने बहादुरगढ में दिन…
खट्टर सरकार ने आज राज्य के लिए आम बजट पेश किया इस दौरान सीएम मनोहर…