चीन को भारत खासकर हरियाणा ने बड़ा झटका दिया है। चीन की कपनियों से दुनिया भर से कंटेनर के आर्डर कैंसिल होकर भारत खासकर हरियाणा की कंपनियों को शिफ्ट हो रहे हैं। दरअसल चीन की शिपिंग कंपनियों ने अपना एकाधिकार समझते हुए कंटेनर के किराये चार गुना तक बढ़ा दिए थे।
टेक्सटाइल निर्यातकों पर इसका प्रतिकूल असर तो पड़ा लेकिन सकारात्मक बात यह है कि चीन को मिलने वाले आर्डर भारत खासकर हरियाणा में शिफ्ट हो रहे हैं।
दो हजार करोड़ का कारोबार बढ़ेगा
बता दें कि भारत से न्यूयॉर्क तक 40 फीट के एक कंटेनर का किराया करीब 12 हजार डालर तक पड़ रहा है। इसी कंटेनर का किराया चीन से न्यूयॉर्क तक 22 हजार डालर हो गया है। चीन से न्यूयॉर्क का किराया महंगा होने की वजह से अमेरिका के खरीदार भारत के टेक्सटाइल निर्यातकों को ईमेल करके कह रहे हैं, वे चीन से माल खरीदते थे। क्या आप हमें माल उपलब्ध करा सकते हैं? भारत से उत्पाद मंगाने पर उन्हें एक कंटेनर पर साढ़े सात लाख रुपए तक की बचत हो रही है। अगर रोजाना सौ कंटेनर भी मंगाते हैं तो साढ़े सात करोड़ की बचत होगी।
फुलावटी उत्पादों की मांग भारत में शिफ्ट हुई
फुलावटी उत्पाद की मांग अब भारत में शिफ्ट हो रही है, क्योंकि चीन से भी 40 फीट के कंटेनर में उतना ही उत्पाद आएगा जितना भारत से। पोलिस्टर रजाई, मिंक ब्लैंकेट, माइक्रो कम्फर्टर, पुफ चेयर, बीन बैग, पोलिस्टर कालीन की मांग में पहले से काफी बढ़ोत्तरी हुई है। निर्यातक अनुमान लगा रहे हैं कि इस साल कम से कम दो से पांच हजार करोड़ तक कारोबार में वृद्धि हो सकती है।
अमेरिकी खरीदार पानीपत की कंपनियों से कर रहे हैं संपर्क
पानीपत के छाबड़ा होम कांसेप्टस के निदेशक रमन छाबड़ा ने बताया कि चीन की शिपिंग कंपनियों द्वारा किराया बढ़ाए जाने के कारण निर्यातक परेशान जरूर हैं लेकिन अमेरिकी खरीदार चीन की जगह अब भारत में अपना कारोबार शिफ्ट कर रहे हैं। हरियाणा की कंपनियों के पास लगातार ई-मेल आ रहे हैं कि क्या उनकी जरूरत का आर्डर पानीपत से मिल सकेगा? अगर भारत में दस फीसद कारोबार भी बढ़ता है तो इससे भारत का भी काफी फायदा होगा। अब शिपिंग कंपनियों के एकाधिकार पर रोक लगाना जरूरी है। दुनिया के बड़े नेताओं को अब इसमें दखल देना चाहिए।
इन्फ्रास्टक्चर मजबूत न होने से निर्यातकों को चिंता
उन्होंने आगे बताया कि फेडरेल मेरिटाइम कमीशन ने आठ बड़ी कंपनियों से रिपोर्ट मांगी है। ये कमीशन ही शिपिंग कंपनियों को अनावश्यक रेट बढ़ाने से रोकता है। तब तक, भारत से कारोबार बढ़ता है तो यह अच्छे संकेत होंगे। विनी डेकोर कंपनी के नीतिन गर्ग की भी यही राय है।
किराया बढ़ने के बावजूद भारत से कारोबार में हो रही बढ़ोत्तरी
कारपेट एक्सपोर्ट काउंसिलिंग के वर्चुअल फेयर में प्रथम स्थान प्राप्त कर चुके डेकोर के नीतिन गर्ग का कहना है कि किराये बढ़ने के बावजूद भारत से कारोबार बढ़ रहा है। अगर कारोबार ज्यादा शिफ्ट होता है तो चिंता इस बात की है कि भारतीय कारोबारी इसे संभाल नहीं सकेंगे। अगले एक महीने में कारोबार ज्यादा उठने के आसार दिख रहे हैं।
मित्तल इंटरनेशनल के निदेशक सुरेंद्र मित्तल इसमें एक और बात जोड़ते हुए कहते हैं कि निश्चित रूप से कारोबार में बढ़ोत्तरी होगी, लेकिन हम अभी इसके लिए तैयार नहीं हैं। इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा करना होगा, जो इतनी जल्द संभव नहीं है। टेक्सटाइल इंडस्ट्री आर्थिक तंत्र को बूस्ट कर सकती है। हमें जल्द जमीनें, कलस्टर खड़े करने होंगे। तात्कालिक तौर पर अगर शिपिंग में ही सब्सिडी मिल जाए तो इससे बहुत बड़ी मदद मिलेगी। हजारों नए रोजगार सृजित हो जाएंगे।
60 कंटेनर से सौ तक बढ़ी मांग
वर्ल्ड वाइड लाजिस्टिक के ब्रांच मैनेजर संजय कुमार ने बताया कि यूरोप और यूएसए से आर्डर एकाएक बढ़े हैं। शिपिंग कंपनियों ने इसका फायदा उठाते हुए रेट बढ़ा दिए हैं। अकेले पानीपत से उनके पास सप्ताह में 60 कंटेनर का आर्डर रहता था लेकिन अब सौ कंटेनर तक मांग है। ये अलग बात है कि वह फिलहाल 40 कंटेनर ही उपलब्ध करा पा रहे हैं।
अमेरिका के साथ 60 फीसद बढ़ा कारोबार
पानीपत से अमेरिका का 60 फीसद कारोबार होता है। एक महीने में जहां पहले 800 कंटेनर की मांग रहती थी, अब यह संख्या बढ़कर एक हजार तक पहुंच गई है। इसके अलावा यूरोपियन देशों में भी इसकी मांग बढ़ी है। इस समय क्रिसमस के आर्डर भी बुक किए जा रहे हैं। यह पीक सीजन माना जाता है। आमतौर पर पीक सीजन में 3300 डालर तक न्यूयार्क तक खर्च लगता था, जो अब 12 हजार डालर तक पहुंच गया है।
आस्ट्रेलिया में निर्यात में आई कमी
शिपिंग कंपनियों के एकाधिकार का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि फिलहाल भारतीय कंपनियां आस्ट्रेलिया के कंटेनर उपलब्ध ही नहीं करा रही। दरअसल बात ये है कि मेलबर्न या सिडनी का किराया दो हजार डालर लगता है और एक महीना लग जाता है। इतने ही समय में कपंनियां न्यूयार्क तक कंटेनर पहुंचा देती हैं और इसका किराया 12 हजार डालर लेती हैं। इस वजह से आस्ट्रेलिया में निर्यात कम हो रहा है।
काटन उत्पाद की नहीं हो रही डिलीवरी
हेरिटेज कंपनी के निदेशक जितेंद्र अहलावत का कहना है कि ये सही है कि फुलावटी उत्पाद की मांग बढ़ी है लेकिन काटन उत्पाद की डिलीवरी नहीं हो रही। काफी माल तैयार हो चुका है लेकिन खरीदार इन्हें उठा नहीं रहे। जिन निर्यातकों ने खुद किराया देना तय किया था, वे भी माल नहीं भेज पा रहे। क्योंकि, जितने का माल नहीं है, उससे आधे का तो किराया ही पड़ जाएगा। इसलिए सभी को किराया कम होने का इंतजार है।
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