जिस तरह लोहे या कांच को आग में तपा कर उसे आकार दिया जाता है उसी तरह कड़ी मेहनत और लगन ही एक खिलाड़ी को आकर देती है, उसकी तपिश से खिलाड़ी और निखरता है। कोई भी व्यक्ति यूं ही खिलाड़ी नहीं बन जाता। उसे दिन-रात कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। टोक्यो ओलंपिक में पानीपत के नीरज चोपड़ा ने गोल्ड जीतकर देश का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है अब पानीपत के एक और जैवलिन थ्रोअर नवदीप का टोक्यो पैरालंपिक में चयन हो गया है।
20 वर्षीय नवदीप का कद चार फीट है। वह 28 अगस्त को पैरालंपिक खेलों के लिए रवाना होंगे। चार सितंबर को इनका मुकाबला है। नवदीप पहले कुश्ती खेलते थे। कमर दर्द होने की वजह से कुश्ती को छोड़ना पड़ा। लेकिन वह खेल से अलग नहीं हो सके और उन्होंने भाला उठा लिया।
अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताएं जीत चुके नवदीप का अब टोक्यो पैरालिंपिक में चयन हो गया है। उनकी इस उपलब्धि के पीछे परिवार के संघर्ष की भी कहानी है। बेटे को जैवलिन दिलाने के लिए पिता दलबीर ने अपनी तीन एलआइसी पर लोन लिया। बेटे को इसके बारे में बताया भी नहीं। पिता ने मेरठ से 60 हजार की और इंदौर से 85 हजार की जैवलिन मंगाई। किसान पिता दलबीर का कहना है कि नवदीप की तैयारी अच्छी चल रही है। वह देश के लिए पदक जीत सकते हैं।
सातवें महीने में ही हुआ जन्म
11 नवंबर 2001 को नवदीप का जन्म गर्भावस्था के सातवें महीने में ही हो गया था। डॉक्टरों ने पहले ही बता दिया था कि इनका कद ज्यादा नहीं बढ़ पाएगा। रोहतक पीजीआई के डाक्टरों ने पिता से कहा था कि दिल्ली एम्स में कुछ इलाज हो सकता है। तब पिता दलबीर छः साल तक नवदीप को दिल्ली एम्स ले जाते रहे। इसका असर यह हुआ कि धीरे–धीरे उनका कुछ कद बढ़ने लगा।
हाइट को नहीं बनने दी कमजोरी, वर्ल्ड रिकॉर्ड से 50 सेमी दूर
नवदीप को एक्मोंडोप्लेजिया नाम की बीमारी थी। जिस कारण उनका शारीरिक विकास नहीं हो पाया और हाइट 4.5 फीट पर आकर ही रुक गई। अपनी हाइट को नवदीप ने कमजोरी नहीं बनने दिया। जेवलिन थ्रो की F-41 कैटेगरी में नवदीप का रिकॉर्ड 43.78 मीटर का है और यह वर्ल्ड रिकॉर्ड से केवल 50 सेंटीमीटर ही कम है।
नवदीप की फुर्ती देख कोच भी हैरान
डॉक्टरों ने कहा था कि स्वस्थ रहने के लिए शारीरिक अभ्यास करना बहुत जरूरी है। दलबीर नवदीप को अपने साथ खेत में ले जाते और दौड़ लगवाते। दलबीर खुद भी कुश्ती के खिलाड़ी रह चुके हैं। उन्होंने ने भी कुश्ती में गोल्ड मेडल जीता है। उन्होंने नवदीप को अखाड़े में भेज दिया। नवदीप इतने फुर्तीले थे कि प्रतिद्वंदी उनके सामने टिक नही पता था। सामने वाले पहलवान को वह धोबी पछाड़ से हरा देते थे।
यह सब देख कोच भी दंग रह जाते थे। तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन्हें सम्मानित किया था। कमर में चोट लगने के कारण उन्हें कुश्ती को छोड़ना पड़ा। अगर कुश्ती में रहते तो और बड़े खिलाड़ी होते।
कुश्ती के बाद जैवलिन थ्रो का खेल अपनाया
पंचायत विभाग में ग्राम सचिव के पद पर तैनात नवदीप के पिता दलबीर ने बताया कि कुश्ती छोड़ने के बाद बेटे ने जैवलिन थ्रो खेल को अपना लिया। पंचकूल में अपने पहले ही मुकाबले में नवदीप ने स्वर्ण पदक जीत लिया था। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपनी ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद नवदीप अब दिल्ली में हैं और वहीं रहकर प्रैक्टिस कर रहे हैं। नवदीप दस साल से भाला फेंक रहे हैं।
राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से किया सम्मानित
नवदीप अब तक वर्ल्ड व एशियन चैंपियनशिप में 1-1 और नेशनल चैंपियनशिप में 5 गोल्ड मेडल जीत चुके हैं। नवदीप की उपलब्धियों के कारण 2012 में उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से सम्मानित भी किया।
नीरज चोपड़ा के बाद नवदीप पर टिकी हैं सबकी निगाहें
पानीपत के नीरज चोपड़ा ने जैवलिन थ्रो में स्वर्ण पदक जीत भारत का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है। अब सबकी नजरें पानीपत के ही नवदीप पर टिकी हुई हैं। जैवलिन थ्रो एक टेक्नीक का गेम है। खेल में उनसे ज्यादा दूरी तक भाला फेंकने वाले खिलाड़ियों ने भी भाग लिया है।
लेकिन नीरज के साथ भी बिल्कुल ऐसा ही था। उनसे भी ज्यादा दूर तक भाला फेंकने वाले प्रतिद्वंदी थे लेकिन उस दिन कोई भी नीरज से आगे नहीं निकल सका। अब लोगों को उम्मीद है कि टोक्यो पैरालंपिक में नवदीप भारत के लिए गोल्ड ला सकते हैं।
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