मंजिल उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है। पंखों से कुछ नहीं होता हौंसलो से उड़ान होती है। यह लाइन सौरभ स्वामी पर एकदम सटीक बैठती है। चरखी दादरी के रहने वाले राजस्थान में प्राथमिक और सेकेंडरी शिक्षा के निदेशक सौरभ स्वामी का जन्म एक दिसंबर 1989 को साधारण परिवार में हुआ। सौरभ ने अपनी मेहनत के प्रकाश से अपने घर में फैले अंधियारे को मिटा दिया।
पिता अशोक स्वामी चरखी दादरी के रोहतक चौक पर कुल्फी और मिठाई की रेहड़ी लगाकर परिवार का गुजारा करते थे।
पिता के सपने को उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से न केवल साकार किया बल्कि पहले ही प्रयास में 149वां रैंक प्राप्त कर आईएएस भी बने। उन्होंने कहा कि वह जनसेवा के लिए सिविल सेवा में आए हैं।
नौकरी में मिली छुट्टियों को समझा अवसर
सौरभ ने चरखी दादरी के एपीजे स्कूल से 12वीं करने के बाद नई दिल्ली में भारतीय विद्यापीठ से बीटेक किया। इसके बाद बैंगलोर में इंजीनियर की नौकरी लग गई। नौकरी के दौरान उन्होंने सिविल सर्विस की प्राथमिक परीक्षा उत्तीर्ण की। लेकिन उसके कुछ समय बाद फिसलकर गिरने से उनके हाथ में चोट लग गई। चोट गहरी होने के कारण डॉक्टर ने तीन महीने का रेस्ट बताया था, जिससे उनको छुट्टियां करनी पड़ीं।
लेकिन नौकरी के दौरान मिली उन छुट्टियों को सौरभ स्वामी ने अवसर समझा और सिविल सर्विस की मुख्य परीक्षा की तैयारी के लिए दिल्ली चले गए। वहां विभिन्न इंस्टीट्यूट्स में उन्होंने तीन महीने तक समय का बेहतर इस्तेमाल किया। मेहनत का परिणाम यह निकला कि वर्ष 2014 में पहले ही प्रयास में परीक्षा पास की और 2015 के बैच में आईएएस हो गए।
समय कम होने की वजह से चुना यह विषय
सौरभ ने बताया कि हालांकि उन्होंने इंजीनियरिंग की थी, लेकिन मुख्य परीक्षा में उन्होंने भूगोल विषय को चुना। उन्होंने भूगोल विषय का चयन इसलिए किया क्योंकि उनके पास तैयारी के लिए कम समय था और इसकी जानकारी अन्य विषयों में भी थोड़ी–थोड़ी रहती है। जिसकी जानकारी उन्हें पहले से भी थी। इसके बाद एकाग्रता रखकर 17 से 18 घंटे तक पढ़ाई की।
पिछली परीक्षाओं का अनुभव आया काम
उन्होंने आगे बताया कि पहले उनको सिविल सेवा मुख्य परीक्षा का उतना आइडिया नहीं था, लेकिन वह भेल (BHEL), इसरो आदि की परीक्षाएं तैयारी कर पास कर चुके थे, जिनका अनुभव काम आया। इससे उनको बेसिक पता चल गए थे।
पिता के शब्द गूंजते थे कानों में, पिता को बनाया प्रेरणा स्त्रोत
सौरभ की मां पुष्पा स्वामी बीएड हैं और गृहिणी भी। वहीं पिता अशोक स्वामी महज आठवीं तक पढ़े हैं। वह दो बहनों के इकलौते भाई हैं। साधारण परिवार से संबंध रखने वाले सौरभ स्वामी ने बताया कि इंजीनियरिंग में उनका चयन हो गया था लेकिन पिता के शब्द कानों में प्रेरणा बनकर गूंजते रहे।
सौरभ ने अपने पिता के जुझारूपन से प्रेरणा लेकर अपने आप को मजबूत बनाया और एकाग्रता से लक्ष्य पाने में जी जान लगा दिया। इसके साथ ही उन्होंने पढ़ाई के दिनों में पिता के काम में हाथ भी बंटाया। 12वीं में 89 प्रतिशत अंकों के साथ सौरभ पूरे चरखी दादरी में अव्वल आए।
परीक्षा में पास होने पर पिता ने नहीं दी कोई प्रतिक्रिया
2007 में 12वीं के बाद आईआईटी का क्रेज था। लेकिन आईआईटी की परीक्षा में प्रथम लिस्ट में उनका नाम नहीं आया। अगली लिस्ट में आया तो इस पर पिता अशोक स्वामी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
अपने पिता की नजरों को देखकर सौरभ उनके मनोभाव समझ गए थे और तब उन्होंने कुछ बड़ा करने का लक्ष्य बना लिया। आमतौर पर उनके पिता का कहना रहता था कि जीवन में कुछ बड़ा करके दिखाओ।
आपका यकीन ही है सबसे बड़ी ताकत
सौरभ स्वामी का आईएएस में राजस्थान का कैडर रहा। ट्रेनिंग के बाद उनकी प्रतापगढ़, गंगानगर में पोस्टिंग रही। फिलहाल वह फरवरी 2020 से राजस्थान के प्राथमिक शिक्षा निदेशालय और सेकेंडरी शिक्षा निदेशालय के डायरेक्टर की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।
प्लान ए के साथ रखें प्लान बी भी
सौरभ स्वामी का मानना है कि अगर आपको जीवन में आगे बढ़ना है तो सबसे पहले खुद पर यकीन होना बहुत जरूरी है। अपना लक्ष्य निर्धारित करें और प्लान ए के साथ प्लान बी भी रखें। अगर प्लान ए कामयाब नहीं होता है तो उसी पर दौड़ने के बजाय प्लान बी पर काम करें। खुद की नजरों में खड़े रहना बहुत जरूरी है। अपने ऊपर विश्वास करना सबसे बड़ी ताकत देता है।
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