टोक्यो पैरालंपिक में हरियाणा के सोनीपत के सुमित ने गोल्ड जीत कर भारत का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है। गोल्ड जितने पर प्रदेश सरकार ने सुमित को छः करोड़ रुपए देने की घोषणा की है। गोल्ड जीतने के साथ साथ सुमित ने तीन वर्ल्ड रिकॉर्ड भी तोड़े। स्वर्ण पदक जीतने पर सुमित के गांव में जश्न का माहौल है।
आपको बता दें कि सुमित ने जैवलिन थ्रो के फाइनल में एक के बाद एक कुल तीन वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़े।
अपने ही वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़े
पहले प्रयास में उन्होंने 66.95 मीटर दूर भला फेंका और विश्व रिकॉर्ड स्थापित किया। इसके बाद अपनी दूसरी कोशिश में उन्होंने 68.08 मीटर के स्कोर से अपना ही रिकॉर्ड तोड़ा। पांचवी कोशिश में उन्होंने सबसे बेहतर प्रदर्शन कर 68.55 मीटर का भला फेंका और स्कोर टेबल में सबसे ऊपर रहे।
सोमवार को सुमित ने स्वर्ण पदक जीता था और F–64 क्लास में खेलते हुए इन्होंने अपने पहले ही ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता व हरियाणा और अपने गांव खेवड़ा का नाम रोशन किया।
हादसे में गवा बैठे एक पैर
सुमित का यहां तक का सफर बहुत ही कठिन था। हर मोड़ पर उनके सामने नई–नई चुनौतियां उनका इंतजार कर रही थी। साल 2015 में उन्होंने एक सड़क हादसे में अपना पांव गवां दिया। कई महीनों तक वे अस्पताल में भर्ती थे। साल 2016 में उन्हें नकली पैर लगाया गया। इतनी मुश्किलें भी उनका हौसला तोड़ न सकी।
मां से करते नाम रोशन करने का वादा
बेटे के साथ हुए इस दर्दनाक हादसे को याद कर जब भी सुमित की मां के आंखों से आंसू आते तब सुमित उनके आंसू पोंछते हुए उनका नाम रोशन करने का वादा करते थे।
कोच वीरेंद्र धनखड़ के मार्गदर्शन में सुमित साई सेंटर से दिल्ली पहुंचे और कड़ी मेहनत कर अपनी मां से किया वादा पूरा किया और पैरालंपिक में गोल्ड जीतकर परिवार के साथ–साथ देश का भी नाम रोशन किया।
साल 2018 ने सुमित को एशियन चैंपियनशिप में 5वीं रैंक मिली। अगले वर्ष वर्ल्ड चैंपियनशिप में रजत पदक हासिल किया और इस साल नेशनल गेम्स में सुमित ने गोल्ड जीतकर अपने आप को साबित किया।
सात साल के थे तब हुई पिता की मौत
सोनीपत में जन्मे सुमित आंतिल परिवार में सबसे छोटे हैं। सुमित परिवार का इकलौता बेटा है। परिवार में मां के अलावा सुमित की तीन बड़ी बहनें रेनू, सुशीला और किरण हैं। जब सुमित सात साल के थे तब उनके पिता की एक बीमारी के कारण मौत हो गई थी। पिता एयरफोर्स में तैनात थे।
ट्यूशन से लौटते समय हुआ था हादसा
मां निर्मला ने चारों बच्चों का पालन–पोषण बहुत ही मुश्किलों से किया। 5 जनवरी 2015 को सुमित एक दर्दनाक सड़क हादसे का शिकार हो गया। उस समय सुमित 12वीं कक्षा में थे। कॉमर्स की ट्यूशन से लौटते समय एक ट्रैक्टर ट्राली ने सुमित की बाइक को टक्कर मार दी। हादसे में सुमित को अपना एक पैर गंवाना पड़ा।
हादसे के बावजूद चेहरे पर नहीं आने दी मायूसी
मां निर्मला देवी का कहना है कि हादसे के बाद सुमित के चेहरे पर कभी भी मायूसी नहीं आई। धीरे धीरे सुमित ने खेलों में रुचि लेना शुरू कर दिया। एशियन रजत पदक विजेता कोच वीरेंद्र धनखड़ ने सुमित को दिल्ली में द्रोणाचार्य अवार्ड से सम्मानित कोच नवल सिंह से मिलवाया और वहीं पर सुमित ने जैवलिन थ्रो के गुर सीखे।
सुमित की उपलब्धियां
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