खास लोगों के बीच आम लोगों की प्रतिदिन की उपस्थिति भी खास हो ही जाती है। खास लोगों के बीच आमजन कई बार अपनी ऐसी छाप छोड़ जाते हैं, को खास लोगों से भी खास हो जाती है। आम पोटमैन “रामशरण” भी एक ऐसे ही शख्स हैं जिनकी खास लोगों के बीच एक अलग ही पहचान है। 21 सालों से पोस्टमैन के पद पर कार्यरत रामशरण ने काफी आम तरीके से खास लोगों के बीच अपनी उपस्थिति को सार्थक किया।
पिछले दो दशकों में प्रधानमंत्री और मंत्री बदल गए, सांसदों के भी कई नए – नए चेहरे देखने को मिले। लेकिन देश की सबसे बड़ी पंचायत अर्थात संसद भवन में नहीं बदला तो केवल एक चेहरा, जोकि एक आम पोस्टमैन रामचरण हैं। रामशरण आज अपने इस पद से रिटायर हो रहे हैं।
बहुमत, अल्पमत व दलगत राजनीति से परे पोस्टमैन रामशरण अपने कार्यकाल में बीमा थके चिट्ठियां बांटते रहे। अपने 21 सालों के कार्यकाल में भले ही रामशरण को किसी भी माननीय व्यक्ति के साथ फोटो खिंचवाने या संवाद का अवसर न मिल पाया हो, लेकिन कुछ समय पहले सेंट्रल हॉल के बाहर लिफ्ट के पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दिखना वे अपना सौभाग्य मानते हैं। अपने व्यवहार से सभी संसदीय स्टाफ व अन्य का दिल जीतने वाले आम पोस्टमैन ने शुक्रवार को अपनी अंतिम डाक बांटी।
यदि जन्माष्टमी न होती तो सोमवार को उनका आखिरी कार्यदिवस होता। मंगलवार को वे रिटायर हो जायेंगे। उन्हें इस बात की बेहद खुशी है कि वे एक आम शख्स होते हुए भी जिंदगी ने उन्हें हमेशा खास होने का अहसास कराया। लेकिन उन्हें इस बात का मलाल भी है कि 41 सालों की नौकरी में उन्हें एक बार प्रमोशन नहीं मिल पाया। सात बच्चों का विवाह कर चुके पिता रामशरण अब सेवानिवृत्त डाकिया संघ का सदस्य बनने की योजना बना रहे हैं।
फरीदाबाद के नीमका गांव निवासी पोस्टमैन रामशरण को वर्ष 2000 में संसद भवन में ड्यूटी दी गई थी। कोई भी पोस्टमैन संसद भवन के भूल – भुलैया रास्तों के कारण अपनी ड्यूटी नही लगवाना चाहता था। संसद के भूल भुलैया रास्ते तथा एक ही जैसे दिखने वाले दरवाजे व कमरे भ्रमित कर देने वाले हैं। शुरुआत के दिनों में तो रामशरण भी भ्रमित हुए, लेकिन जल्द हो सारा नक्शा उनकी आखों व दिमाग में छप गया।
60 वर्षीय सात विवाहित बच्चों के पिता रामशरण ने समय के साथ आए बदलाव के बारे में कहा कि शुरुआत के दिनों में सोमवार का दिन उनके लिए सबसे व्यस्त दिन होता था। उन्होंने बताया कि सोमवार के दिन उनके पास तीन बैग होते थे, जिनमें से प्रत्येक बैग का वजन 50 किलग्राम तक होता था। लेकिन समय के साथ जैसे जैसे संचार के ई युग में प्रवेश हुआ तो पत्रों की जगह ई मेल ने लेली और उनके बैग का वजन कम होता गया।
वे अपने फरीदाबाद निवास से सुबह 10 बजे निकलते तथा करीब डेढ़ घंटो तक डाक छंटने के बाद साइकिल से ही संसद भवन का एक किलोमीटर तक का दायरा तय किया करते थे। उन्होंने बताया कि वर्ष 2011 में एक दुर्घटना में घायल हो जाने के बाद वे गोल डाकखाने से सांसद भवन पुस्तकालय तक का सफर जेब से किराया खर्च करके ऑटो लेते से और शाम को ऑफिस वापिस जाते।
वर्ष 1981 से 1989 तक राम शरण रेलवे मेल सेवा में भी कार्यरत रहे। वर्ष 1989 में इंडिया पोस्ट में पोस्टमैन की भर्तियों के लिए नोटिस निकला। रामशरण ने वह परक्षा पास की व पोस्टमैन बन गए। दो दशकों में प्रधानमंत्री और मंत्री के साथ संसद में कई चेहरे बदले, लेकिन नहीं बदले तो केवल पोस्टमैन रामशरण।
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