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रुला देगी इस मजदुर की कहानी, 35 साल मज़दूरी की, एक रुपया नहीं मिला लेकिन अब परिवार से मिले

कहा जाता है कि किस्मत किसी भी पल आपकी ज़िंदगी को बदल सकती है। जो लोग आपकी ज़िंदगी की दूर हैं उन्हें नज़दीक ला सकती है। झारखंड में गुमला स्थित अपने गांव से लगभग तीन हजार किलोमीटर दूर अंडमान द्वीप समूह में बंधुआ मजदूर के रूप में काम कर रहे फुचा महली राज्य सरकार के सहयोग से रांची पहुंचे। इसके बाद वह सबसे पहले विधानसभा परिसर में मुख्यमंत्री से मिले।

हर किसी को अपना परिवार सबसे प्यारा लगता है। परिवार के बिना ज़िंदगी अधूरी होती है। वो 70 साल के हो चुके हैं, उन्होंने अपनी आधी से ज़्यादा ज़िन्दगी परिवार के बिना बिता दी। 35 साल पहले झारखंड के फुच्चा माहली को जब मज़दूरी के लिए अंडमान निकोबार ले जाया गया, तो उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उन्हें अपने परिवार से दोबारा मिलने में तीन दशक लग जाएंगे।

उन्होंने बताया कि कोई भी ऐसा दिन नहीं होता था जब परिवार के बारे में उन्होंने नहीं सोचा। महली ने सोरेन से विधानसभा स्थित मुख्यमंत्री कक्ष उनसे मुलाकात की। उन्होंने मुख्यमंत्री के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि प्रवासी श्रमिकों के प्रति उनकी संवेदनशीलता की वजह से ही वे 35 वर्ष बाद अपने घर लौट सके।

यह विषय उस इलाके में चर्चित हो गया है। कई लोग उनसे मिलने आ रहे हैं। उन्होंने बताया मुझे करीबन तीन दशक पहले अंडमान लाया गया। हम कोलकाता से एक जहाज़ से गए थे। हमसे कहा गया था कि एक कंपनी के लिए काम करना है। लेकिन एक साल बाद ही कंपनी बंद हो गई। मुझे जीने के लिए भीख मांगनी पड़ी, मेरे सारे कागज़ात एक महाजन ने छीन लिए। खाने के बदले वो मुझे मुझसे काम करवाता था।

अपनी ज़िंदगी में उन्होंने मेहनत से कभी चीटिंग नहीं की है। 35 साल तक वो लकड़ियां काटते रहे और महाजन की सेवा करते रहे।

Avinash Kumar Singh

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