दिल्ली तो है ही दिल वालों की, और उस पर भी खाने का लज़ीज़ ज़ायका कमाल कर देता है। बतादें, अक्षय कुमार कई बार इंटरव्यू में कह चुके हैं कि आज भी जंग बहादुर की कचौड़ी का स्वाद और याद उन्हें आती रहती है।
दुकान सुबह 11 बजे से रात 8 बजे तक खुली रहती है। वहां तक पैदल ही जाना होगा। इस बहाने पुरानी-दिल्ली-दर्शन भी हो जाएगा। अगर आप मेट्रो से जा रहे हैं तो चांदनी चौक मेट्रो स्टेशन पर उतरें।
कभी आपने तीखी आलू की सब्जी के साथ ऐसी मसालेदार कचौड़ी खाई है कि उसे खाते वक्त मुंह से सी-सी की आवाज निकलने लगे, आंखों से पानी सा ढुलकने लगे और ऐसा महसूस हो कि कानों से धुआं निकल रहा है।
इतनी ‘तकलीफ’ के बावजूद भी आप इस कचौड़ी को खाने का लोभ रोक नहीं पाएंगे और खाते ही जाएंगे। आज हम आपको पुरानी दिल्ली के एक ऐसे ही कचौड़ी वाले से मिलवा रहे हैं। जब ये कचौड़ी कचालू की चटनी और हरे धनिये, हरी मिर्च व बारीक कटी अदरक के साथ परोसी जाती है तो लगता है कि इससे ‘लड़ना’ होगा।
करें भी क्या, दुकान का नाम भी इस व्यंजन से मेल खाता है। नाम है ‘जंग बहादुर कचौड़ी वाला। यह दुकान बहुत छोटी सी है, लेकिन खासी मशहूर है।कचौड़ी भी गली में खड़े-खड़े खानी पड़ती है। हो सकता है खाते वक्त आते-जाते लोगों का कंधा आपसे भिड़ जाए। लेकिन कचौड़ियों का स्वाद लेने के लिए इस दुश्वारी को झेला जा सकता है।
दुकान को वर्ष 1940 में बाबूलाल ने शुरू किया था। फिर बागडोर जंग बहादुर के जिम्मे आई। आज इस दुकान को इस परिवार के सदस्य नितिन वर्मा चला रहे हैं। दुकान सुबह 11 बजे से रात 8 बजे तक खुली रहती है। वहां तक पैदल ही जाना होगा।
इस बहाने पुरानी-दिल्ली-दर्शन भी हो जाएगा। अब इन कचौड़ियों का स्वाद जान लें। 45 रुपये की दो कचौड़ी को दो तरीके से खाया जाता है। एक तो सीधे आलू की सब्जी के साथ। दूसरे कचौड़ियों को क्रश कर उसके ऊपर आलू की सब्जी डाली जाती है। दोनों ही तरीकों में खाते वक्त ही पता चल जाता है कि मसला खासा मसालेदार है।
आप खाते जाएंगे, मुंह से सी-सी की आवाज निकलेगी, आंख से पानी भी निकल सकता है और आपको महसूस होगा कि कानों से धुआं निकल रहा है। कचौड़ियों के इतना तीखा होने के बावजूद वह पेट को खराब नहीं करती और लोग खाते भी हैं और पैक करवाकर ले भी जाते हैं। सिंगल कचौड़ी की कीमत 25 रुपये है।
अब बात करें कचौड़ी और आलू की सब्जी की। कचौड़ी बनाने का तरीका अनोखा है। मैदे की छोटी लोई में उड़द की दाल और तीखे मसालों की पिट्ठी भरी जाती है। फिर उसे वनस्पति में तला जाता है। जब ये कचौड़ियां कड़ाहे में चढ़ी होती हैं तो उसकी सोंधी खुशबू पूरे इलाके को अपने आगोश में ले लेती है।
कुरकुरी होने के बाद इन कचौड़ियों को एक छाबे में निकाल लिया जाता है। आलू की सब्जी पहले से ही तैयार है। तीखे मसालों से बनी यह सब्जी खासी जायकेदार होती है। एक दोने में कचौड़ी और आलू की सब्जी डाली जाती है।
ऊपर से कचालू की चटनी का छौंक मारा जाता है। साथ ही इन कचौड़ियों पर हरे धनिये, कटी हरी मिर्च और अदरक लच्छा डालकर उसे खाने के लिए पेश कर दिया जाता है। चलिए अगर अब आपकी बारी बताने की, कि क्या आपने भी यहां की खस्ता कचौड़ी खाई है या नहीं, कमेंट कीजिए।
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