प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीन दिवसीय अमेरिका यात्रा को व्यापार, प्रौद्योगिकी और आतंक जैसे तीन दृष्टिकोणों से देखा जाना चाहिए। इस दौरे ने संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के साथ-साथ व्यापक वैश्विक भागीदारी में भारत की भूमिका को बढ़ा दिया है।
इस दौरे के माध्यम से भारत ने चीन और पाकिस्तान को बहुत कड़ा संदेश दिया है; लेकिन साथ ही, यह भी बता दिया है कि भारत अब खुद को दक्षिण एशिया तक सीमित नहीं रखेगा; क्योंकि भारत की भूमिका अब वैश्विक हो गई है, वैश्विक मुद्दों पर भारत की भूमिका के बारे में भी यह दौरा काफी अहम था।
वस्तुतः इस यात्रा के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया के सामने भारत की भविष्य की रणनीतिक महत्वाकांक्षा (Strategic Ambition) किस तरह की होगी, साफ-साफ में यह भी बता दिया। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि अब भारत केवल पाकिस्तान तक केंद्रित नहीं रहेगा, बल्कि नई दिल्ली का प्रभाव भी वैश्विक स्तर तक जाएगा। इस महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए विदेश नीति में आवश्यक चेतना व सक्रियता इस दौरे के माध्यम से वे लेकर आए।
अमेरिकी लोकतंत्र के बारे में कहा जाता है कि बिल क्लिंटन जैसा साधारण से साधारण व्यक्ति भी इस महाशक्ति का राष्ट्राध्यक्ष बन सकता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि रेलवे स्टेशन पर चाय बनाने और बेचने में अपने पिता की मदद करने वाला बालक चार-चार बार संयुक्त राष्ट्र को संबोधित करने के लिए आता है। यह भारत के स्वस्थ लोकतंत्र का एक जीता-जागता उदाहरण है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ये अमेरिका का यह सातवां दौरा था। इन यात्राओं के दौरान उन्होंने तीन-तीन राष्ट्रपतियों – बरॉक ओबामा, डोनाल्ड ट्रंप और जो बाइडेन से मुलाकात की। पिछले दो वर्षों में यह पहला अमेरिकी दौरा था। इससे पहले वह हाउडी मोदी कार्यक्रम के लिए अमेरिका गए थे। पिछले दो वर्षों के दौरान अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तरों पर बहुत सारे घटनाक्रम हुए हैं। इनमें से चार बातों ने अमेरिकी दौरे की पृष्ठभूमि तैयार की।
1) दुनिया भर में फैली कोरोना महामारी, भारत में आई पहली और दूसरी लहर, उन दोनों लहरों का भारत का सफलता पूर्वक मुकाबला, भारत द्वारा कोरोना से बचाव के लिए बनाई गई वैक्सीन, इस वैक्सीन की 6.5 करोड़ खुराक का निर्यात, भारत की वैक्सीन-डिप्लोमेसी अहम साबित हुई।
2) अमेरिका का सत्ता परिवर्तन हुआ और रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप की जगह डेमोक्रेटिक पार्टी के जो बाइडन का राष्ट्रपति बने।
3) क्षेत्रीय स्तर पर वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन की बुरी नजर और गलवान संघर्ष। चीन ने सीमा पर अत्यधिक आक्रामकता दिखाकर भारत की मुश्किल को बढ़ाने की कोशिश की।
4) अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद तालिबान का हिंसक शासन और उससे भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए संभावित चुनौती।
प्रधानमंत्री की यह यात्रा इन चार महत्वपूर्ण चुनौतियों की पृष्ठभूमि में हुई
जो बाइडेन के अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उनसे प्रत्यक्ष हुई यह पहली मुलाकात थी। इससे पहले दोनों वर्चुअल माध्यम के जरिए 3 बार एक-दूसरे से मिल चुके हैं। यात्रा से पहले, कुछ टीकाकारों की ओर से कई कयास लगाए गए थे। इन टीकाकारों के अनुसार, बाइडेन के कार्यकाल में भारत-अमेरिका संबंधों में उस तरह का घनिष्ठता नहीं आएगी।
कई टीकाकारों ने कहा था कि ट्रंप के साथ मोदी की जिस तरह की व्यक्तिगत केमिस्ट्री थी, वैसी केमिस्ट्री बाइडेन से नहीं बन पाएगी। टीकाकारों के इस निष्कर्ष का आधार यह था कि डेमोक्रेटिक पार्टी एक ऐसी पार्टी है जो लोकतंत्र, मानवाधिकार, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता जैसे मुद्दों को प्राथमिकता देती है।
इसलिए जब बाइडेन सत्ता में आए, तो इस बात की चर्चा थी कि अमेरिका अपनी विदेश नीति में इन मुद्दों को प्राथमिकता देगा और इससे भारत-अमेरिका संबंधों में कुछ नकारात्मकता आएगी। ऐसा इसलिए था क्योंकि बाइडेन और कमला हैरिस द्वारा भारत में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के बारे में, कश्मीर और भारत में मानवाधिकारों के सदर्भ में दिए गए कुछ वक्तव्य दोनों देशों के बीच तनाव पैदा कर सकते थे। इसके अलावा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डोनाल्ड ट्रंप के साथ निजी केमिस्ट्री थी।
इसलिए हर कोई बाइडेन और मोदी की केमिस्ट्री को लेकर जानने को उत्सुक था। क्योंकि ट्रंप और मोदी जब भी मिलते थे तो खुशी-खुशी एक-दूसरे को गले लगा लेते थे। क्या बाइडेन और मोदी एक दूसरे को उसी तरह गले लगाएंगे, मीडिया जगत के लोग इस बात पर भी नजर रख रहे थे।
हालांकि, बाइडेन ने इस यात्रा पर जिस तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त की, वह इस बात को रेखांकित करता है कि अमेरिका की संपूर्ण विदेश नीति में भारत की स्थिति अपरिहार्य और महत्वपूर्ण है। पिछले 20 वर्षों में, अमेरिका में चाहे कोई भी पार्टी सत्ता में आए, भारत के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने के लिए ‘ बाई पार्टीशन कन्सेंसस’ यानी सहमति रही है।
ढेर सारे लोगों को यह आशंका भी थी कि कहीं बाइडेन और कमला हैरिस भारत के बारे में नकारात्मक बयान न दे दे; हालांकि इसके विपरीत, मोदी से मुलाकात के बाद, बाइडेन ने इस यात्रा को “भारत-अमेरिका संबंधों में एक नया अध्याय” करार दिया। बाइडेन ने 2021 से 2030 के दशक को ‘ट्रांसफॉर्मेटिव डिकेड’ यानी “परिवर्तनकारी दशक” कहा।
अमेरिका इस दशक का नेतृत्व करना चाहता है और भारत-अमेरिका संबंधों के परिवर्तन में एक नया अध्याय लाना चाहता है, जो दोनों देशों में दोस्ती के महत्व को रेखांकित करता है। इसलिए इस दौरे ने टीकाकारों की सभी भविष्यवाणियों को खारिज कर दिया और बाइडेन और मोदी की नई केमिस्ट्री दुनिया के सामने आई।
बाइडेन ने कोविड संक्रमण काल में भारत के काम की प्रशंसा की। दोनों नेताओं की ओर से जारी किए गए संयुक्त वक्तव्य में स्पष्ट तस्वीर पेश की गई है कि अमेरिका भारत को कितना महत्व देता है और आने वाले वर्षों में यह दोस्ती किस तरह परवान चढ़ेगी।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बाइडेन ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को काफी महत्व दिया है। क्योंकि इस क्षेत्र में चीन का विस्तारवाद तेजी से बढ़ रहा है। हालांकि बाइडेन ने डोनाल्ड ट्रंप की कई नीतियों में बदलाव किया, लेकिन वह भी चीन को अपने नंबर एक प्रतिस्पर्धी के रूप में देखते हैं। बाइडेन ने यह भी संकेत दिया कि ट्रंप के लिए गए कई चीन विरोधी फैसले भविष्य में भी जारी रहेंगे।
चीन की चुनौती से निपटने के लिए अमेरिका को भारत की सख्त जरूरत है। इसलिए बाइडेन सत्ता में आने के बाद से ही क्वाड जैसे संगठन को मूर्त रूप देने की कोशिश कर रहे हैं। मार्च महीने में हुई इस संगठन की बैठक में, भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का हिस्सा बनाने के साथ-साथ कोविड टीकों की एक अरब खुराक तैयार करने के लिए योजनाएँ लेकर आना, यह दर्शाता है कि भारत को अब केवल दक्षिण एशिया तक सीमित नहीं रहना चाहिए। बाइडेन ने इच्छा जताई कि भारत को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने प्रभाव को बढ़ाना चाहिए।
इस साल की क्वाड मीटिंग में मलाक्का जलडमरू मध्य में चीन को घेरने की बड़ी योजना पर भी चर्चा हुई। इसके अलावा अफगानिस्तान पर भारत की चिंताओं को भी ध्यान में रखा। अमेरिका सुरक्षा की संवेदनशील रक्षा प्रौद्योगिकी भारत को हस्तांतरित करेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा को लेकर कई टीकाकारों ने निराशाजनक, अवास्तविक या चूके हुए अवसर के रूप में वर्णित किया। ऐसे टीकाकारों को सबसे पहले बाइडेन और मोदी के बीच मुलाकात के बाद जारी संयुक्त वक्तव्य को देखना चाहिए। किसी भी यात्रा की सफलता उसके बाद जारी किए जाने वाले वक्तव्यों पर निर्भर करती है।
इस वक्तव्य में भारत की सबसे बड़ी चिंता, और इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य, अमेरिका के साथ इस बात पर चर्चा करना था कि अफगानिस्तान में तालिबान शासन से निपटने में अमेरिका भारत की किस हद तक सहायता कर रहा है और संयुक्त वक्तव्य में तालिबान के सत्ता में आने के बाद भारत की आंतरिक सुरक्षा पर उसके परिणाम के बारे में भारत की चिंता एवं मांग का अमेरिका ने पूरा समर्थन किया है।
अमेरिका ने लिखित रूप में स्वीकार किया है कि अगस्त 2021 में अंगीकार किए गए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव क्रमांक 2593 के अनुसार, अफगानिस्तान की सरजमीन का उपयोग आतंकवादी गतिविधियों के लिए नहीं किया जाएगा और यदि अफगान धरती का उपयोग आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए किया जाएगा, तो अफगानिस्तान को कार्रवाई का सामना करना होगा। इस प्रस्ताव को वक्तव्य में शामिल करके अमेरिका ने भारत को ठोस आश्वासन दिया है।
भारत की दूसरी मांग थी कि अमेरिका अनमैंन्ड एरियल वेहिकल की संवेदनशील तकनीक भारत को हस्तांतरित करे, भारत ने जिसकी भी मांग की; उसे भी इस वक्तव्य में शामिल किया गया। तीसरा मुद्दा यह है कि बाइडेन ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा प्रस्तावित ग्लोबल गुड या ग्लोबल वेलफेयर की अवधारणा को अपनाया और इस बात पर सहमत हुए कि भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका दोनों वैश्विक कल्याण के लिए मिलकर काम करेंगे।
चौथा विचारणीय मुद्दा यह था कि इसी अवधि के दौरान, 111 देशों के राष्ट्राध्यक्ष अमेरिका के दौरे पर थे। इनमें गिने-चुने नेताओं को ही राष्ट्रपति बाइडेन से मिलने का अवसर मिला, इसमें नरेंद्र मोदी भी शामिल थे। जिस तरह से बाइडेन ने क्वाड का शिखर सम्मेलन अमेरिका में आहूत किया और भारत को उसमें शामिल होने के लिए आमंत्रित किया, उससे साफ जाहिर है कि बाइडेन की भविष्य की विदेश नीति में एशिया-प्रशांत क्षेत्र और चीन जैसे मुद्दे वरीयता में बहुत ऊपर हैं और अमेरिका को दोनों मामलों में भारत की आवश्यकता है।
दरअसल, इस समय भारत को अमेरिका की जरूरत से ज्यादा अमेरिका को भारत की जरूरत है। हालांकि सतही तौर पर यह आरोप भी लगाया जा रहा है कि अमेरिका ने ऑकस ग्रुप बनाकर एक तरह से भारत को धोखा दिया है। लेकिन यहां यह भी गौर करना महत्वपूर्ण है कि भारत और जापान इस बात पर अड़े थे कि क्वाड को किसी भी परिस्थिति में एक सैन्य समूह में परिवर्तित नहीं किया जाना चाहिए।
चूंकि भारत अमेरिकी दबाव के आगे नहीं झुका, इसलिए अमेरिका को दूसरा रास्ता खोजना पड़ा। परिणामस्वरूप, भारत ने विदेश नीति में निर्णय लेने की अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखा है। वैसे भी ऑकस और क्वाड की तुलना नहीं की जा सकती। क्योंकि ऑकस का उद्देश्य बेहद नियंत्रित और सीमित है। ऑस्ट्रेलिया को ऑकस के माध्यम से परमाणु पनडुब्बी विकसित करने में मदद करने का प्रयास किया जाएगा। इसके विपरीत अमेरिका का लक्ष्य क्वाड के जरिए भारत को ग्लोबल हेल्थ सर्विसेस प्रोवायडर बनाना है।
कुल मिलाकर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के दौरान बाइडेन का उत्साह इतना अधिक था कि उससे साफ संकेत मिला कि भविष्य में अमेरिका और भारत एक साथ काम करने वाले हैं। क्वाड ने एशिया-प्रशांत क्षेत्र में भारत को एक प्रभावी शक्ति बना दिया है।दूसरी ओर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के मंच का लाभ उठाते हुए भारत की वैश्विक भूमिका को प्रस्तुत किया।
उन्होंने पाकिस्तान और भारत की जानबूझ कर तुलना की। उन्होंने कहा कि एक तरफ भारत विकास की ओर बढ़ रहा है, तो दूसरी ओर पाकिस्तान आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए अफगानिस्तान की स्थिति का लाभ उठा रहा है। प्रधानमंत्री ने चीन को भी केवल शर्मसार ही नहीं किया बल्कि कोरोना के ओरिजिन की जांच की बात कहकर चीन की कमजोर नस पर प्रहार किया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि समुद्र या महासागर एक वैश्विक संपत्ति है जहां सभी को व्यापार करने का अधिकार है; लिहाजा, इस समय अविस्तारवादी नियमों पर आधारित व्यवस्था बनाने की जरूरत है। आम सभा में इमरान खान का भाषण भारत के लिए पूरी तरह से घृणा से ओतप्रोत था। इसलिए, कई लोगों को उम्मीद थी कि मोदी उसी तरह पाकिस्तान को जवाब देंगे। लेकिन मोदी ने ऐसी गलती करने से अपने आपको बचाया। अपने भाषण में उन्होंने आतंकवाद, पर्यावरण और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार जैसे मुद्दों की पैरवी की। नतीजतन, भारत की वैश्विक भूमिका बदल गई है, भारत के लक्ष्य भी बदल गए हैं। नरेंद्र मोदी के इस दौरे का यही परिणाम था।
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