भारतीय सेना की स्पेशल फोर्स के कमांडो मेजर मोहित शर्मा की वीरता के किस्से आपने भी सुने होंगे। मेजर मोहित शर्मा, जब आप इस नाम और इसकी कहानी को पढ़ेंगे तो आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे। आपमें से जो लोग सोचते हैं कि हर सैनिक की ड्यूटी होती है कि वो अपने देश पर कुर्बान हो, तो यह नाम उनकी सोच को बदलने के लिए काफी होगा।
शोक चक्र विजेता, स्पेशल फोर्स के शहीद मेजर मोहित शर्मा ने देश के लिए अपनी जान दी है। मेजर मोहित शर्मा ने न सिर्फ अपनी ड्यूटी को निभाया बल्कि आखिरी दम तक अपनी रेजीमेंट का गौरव बनाए रखा। अब मेजर मोहित की बहादुरी को पर्दे पर उतारा जा रहा है।
मेजर मोहित ने कश्मीर में तैनाती के दौरान आतंकवाद के खात्मे में सराहनीय कार्य किया है। मेजर मोहित की कहानी सुनकर यकीन नहीं होता है। मेजर मोहित शर्मा 21 मार्च 2009 को नॉर्थ कश्मीर के कुपवाड़ा में शहीद हो गए थे। मेजर मोहित ब्रावो असॉल्ट टीम को लीड कर रहे थे और वह 1 पैरा स्पेशल फोर्स के कमांडो थे।
हरियाणा के बेटे मोहित शर्मा ने अपनी बहादुरी से ना केवल दुश्मनों के छक्के छुड़ाए थे, बल्कि हिजबुल आतंकियों के घर में घुसकर उन्हें तहस नहस कर दिया था। मेजर मोहित ने हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकियों को मौत के घाट उतारा था। कुपवाड़ा के घने हफरुदा के जंगलों में मुठभेड़ हुई और मेजर मोहित ने बहादुरी से मोर्चा संभाला। मेजर मोहित आतंकियों से लड़ते हुए शहीद हो गए। शहीद होने से पहले उन्होंने 4 आतंकियों को ढेर किया और अपने दो साथियों की जान बचाई।
मेजर मोहित को उनकी बहादुरी के लिए शांति काल में दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था। यह सम्मान मरणोपरांत उन्हें दिया गया था। इसके अलावा उन्हें सेना मेडल से भी नवाजा गया था।
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