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सेना की इस मांग को पूरा करने में सरकार को लग गए 70 साल

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जब से देश आजाद हुआ है उसके बाद और आज के भारत में काफी बदलाव देखने को मिला है जहां पर 90 के दशक और उससे पहले और बाद की सरकारें सेना की मांगों को पूरा करने में 10-10 साल निकाल देती थी और सेना की जरूरतों को पूरा नहीं कर पाती थी। लेकिन आज के भारत में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हथियारों और सेना के मामले में काफी ज्यादा प्राथमिकता पाई है और आज भारत स्वयं हथियारों का निर्माण कर रहा है।

पिछले 7 दशकों में भारत में पीएम बदलते रहे हैं, सरकारें बदलती रहीं, पार्टियों भी आती जाती रहीं जिसकी वजह से इंडियन आर्मी, एयरफोर्स और नेवी तीनों फोर्सेज प्रभावित होती रही।

सेना की इस मांग को पूरा करने में सरकार को लग गए 70 साल

एमएमआर से जो 114 फाइटर जेट की डील है, ये उसका सबसे बेहतरीन उदाहरण है। इंडियन एयरफोर्स ने भारतीय सरकार से कब 14 फाइटर जेट की डिमांड की थी? और आज तक इस डील के बारे में कुछ भी नहीं पता है। इसको लेकर क्या डेवलपमेंट्स है?, कब टेंडर निकलेगा? और कब जाकर ये 114 फाइटर जेट इंडियन एयरफोर्स को मिलने वाले हैं? यह किसी को भी नहीं पता। यानी जब भी भारतीय सेना किसी हथियार की मांग करती, तो उनको वह हथियार 8 से 10 सालों बाद मिलता है।

सेना की इस मांग को पूरा करने में सरकार को लग गए 70 साल

मोदी सरकार ने डिफेंस वेपंस और इक्विपमेंट्स कि प्रोक्योरमेंट तेज करने को लेकर बेशक कई सारे रिफॉर्म्स किये हो, लेकिन यह रिफॉर्म्स अभी भी पर्याप्त नहीं है। बड़ी-बड़ी डील का फैसला तो भारतीय सरकार स्वयं करेगी। लेकिन छोटी डील को लेकर मोदी सरकार का एक फैसला लिया है कि जो बहुत ही ज्यादा कारगर साबित हो रहा है और यह कदम तारीफ योग्य भी है।

सेना की इस मांग को पूरा करने में सरकार को लग गए 70 साल

दरअसल मोदी सरकार ने डिफेंस पोजीशन में कुछ बदलाव करके इंडियन आर्म्ड फोर्सेस (Indian Armed Forces) को आपातकालीन खरीद (Emergency Procurement) की कुछ पावर्स दी थी जिसके तहत इंडियन आर्म्ड फोर्सेस को किसी भी समय तैयार रहने के लिए संचालन क्षमता अध्यादेश (operation capability ordinance) को एक्टिव करने के लिए 300 करोड़ रुपए तक की जिन हथियारों या वेपन सिस्टम की जरूरत पड़े। वह अब बिना मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस के आर्मी डायरेक्ट पर्चेस कर सकती है।

सेना की इस मांग को पूरा करने में सरकार को लग गए 70 साल

गलवान घाटी की घटना के बाद यह कदम उठाया गया क्योंकि चीन और पाकिस्तान के साथ कभी भी युद्ध शुरू हो सकता है और यह कदम बहुत ही ज्यादा कारगर साबित हो रहा है क्योंकि इंडियन आर्म्ड फोर्सेज को ज्यादा अच्छे से पता है कि उनको अपनी क्षमता के आधार पर कौन-कौन से हथियार इमरजेंसी में सबसे पहले चाहिए।

सेना की इस मांग को पूरा करने में सरकार को लग गए 70 साल

सेना को इमरजेंसी पावस देने के पीछे मोदी सरकार का उद्देश्य था कि हथियारों का आर्डर सेना की डिमांड के छः महीनों के अंदर रिप्लेस हो सके। उनकी डिलीवरी 1 साल के बाद शुरू भी हो जाये।

सेना की इस मांग को पूरा करने में सरकार को लग गए 70 साल

देखा जाए तो मोदी सरकार के इस कदम से इंडियन आर्म्ड फोर्सेस (Indian Armed Forces) के तीनों अंग आर्मी, एयरफोर्स और नेवी काफी ज्यादा खुश हैं। सरकार का काम था भारतीय सेना को इमरजेंसी पावर देना और वहीं दूसरी तरफ इंडियन आर्मी की आवश्यकताओं के अनुसार खरीद शुरू भी कर दी है।

सेना की इस मांग को पूरा करने में सरकार को लग गए 70 साल

जानकारी के अनुसार इंडियन आर्मी ने पिछले 15 से 18 महीनों के अंदर मोदी सरकार द्वारा दी गई इमरजेंसी पावर का इस्तेमाल करते हुए अलग-अलग हथियारों के 118 कॉन्ट्रैक्ट साइन किए हैं।

सेना की इस मांग को पूरा करने में सरकार को लग गए 70 साल

इंडियन आर्मी चीफ नरवणे ने खुद ही यह जनकरी दी है। उन्होंने बताया कि यह जो 118 कॉन्ट्रैक्ट साइन हुए हैं इनकी लागत 16 हजार करोड़ रुपए के आसपास है। जिनको डॉलर में कन्वर्ट करें तो यह करीब 2 बिलियन डॉलर्स बनते हैं। यानी गलवान घाटी की घटना के बाद अकेले इंडियन आर्मी ने ही , 2 बिल्लियन डॉलर तक के हथियारों की डायरेक्ट रिक्रूटमेंट शुरू कर दी है।

सेना की इस मांग को पूरा करने में सरकार को लग गए 70 साल

अभी एयरफोर्स और नेवी का डाटा तो मीडिया में आया ही नहीं है। खास बात तो यह है कि 16 हजार करोड़ रुपये में से 55% से ज्यादा पैसा लोकल इंडियन डिफेंस इंडस्ट्री को गया है क्योंकि आधे से ज्यादा हथियार लोकल डिफेंस निर्माता से खरीदे गए हैं, जिससे भारतीय संस्थाओं को ही फायदा होगा।

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इसके साथ ही आर्मी चीफ नरवणे ने यह भी कहा कि इतने ज्यादा ऑर्डर पिछले एक-डेढ़ साल से लिए गए हैं। आजादी के बाद आर्मी के लिए पहले कभी इतने ऑर्डर नहीं किए गए हैं।

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