वैसे तो भारत वीर और महान राजाओं, जिनकी वीरता और महानता इतिहास आज भी कह रहा है, की ही भूमि है लेकिन कभी कभी कुछ मामले ऐसे हो जाते हैं जिन्हें हम अपवाद कहने लगते हैं. ऐसे ही एक महाप्रतापी राजा हुए हैं जिनका नाम है पुष्यमित्र शुंग. आपको बता दें कि शुंग वंश की शुरुआत पुष्यमित्र शुंग से ही होती है. वह जन्मना ब्राह्मण और कर्मणा क्षत्रीय थे. आइये विस्तार से जानते हैं कि आख़िर क्यों पुष्यमित्र शुंग को मौर्य साम्राज्य का खात्मा करना पड़ा.
जब भारत में चन्द्रगुप्त मौर्य का शासन काल था तब ये कहानी आरम्भ होती है. जैसा कि आपको मालूम ही होगा कि चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु स्वयं आचार्य चाणक्य थे. आचार्य ने हमेशा ही राष्ट्रवाद को आगे ले जाने का मार्ग सबके लिए प्रशस्त किया. लेकिन जब आचार्य चाणक्य की मृत्यु हुई तो चंद्रगुप्त मौर्य ने जैन धर्म अपना लिया और उसके प्रचार-प्रसार को बढ़ावा दिया.
वक़्त के साथ जब चन्द्रगुप्त का शासन ख़त्म हुआ तो बागडोर उसके पुत्र बिन्दुसार को मिली. बिन्दुसार आजीविक संप्रदाय से दीक्षित हुआ जिसका परिणाम यह हुआ कि वह वेद विरोधी बन गया और अपनी इसी सोच को आगे बढ़ाने लगा.
बिन्दुसार के बाद जब उसका पुत्र अशोक सत्ता का उत्तराधिकारी बना तो उसने अपने आरंभिक काल में भरपूर हिंसा की. अपनी सीमाओं के विस्तार की ज़िद में उसने पूरे कलिंग को तबाह किया. इसके बाद कहते हैं उसका मन अचानक परिवर्तित हुआ और उसने बौद्ध धर्म की शरण ली.
जब अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया तो उससे पहले ही उसका साम्राज्य म्यांमार से लेकर ईरान और कश्मीर से लेकर तमिलनाडु तक स्थापित था. लेकिन कलिंग युद्ध के बाद उसकी सीमा विस्तार की ज़िद जैसे खत्म ही हो गयी थी. उसके बाद उसने जो भी किया वह बौद्ध धर्म के प्रचार, प्रसार और विस्तार के हेतुक किया.
जब अशोक ने बौद्ध धर्म की शरण ली तो उनका साम्राज्य हिंसा से दूर हो गया जिसका फ़ायदा आसपास के छोटे मोटे राज्यों ने उठाया. उन्होंने ख़ुद को स्वतंत्र बनाने की कोशिशें शुरू कर दीं.
अशोक की मौत और फिर उसके बाद वृहद्रथ, जो मौर्य साम्राज्य के अंतिम शासक हुए, तक आते हुए मौर्य साम्राज्य बहुत ही कमजोर हो गया. ये वह समय था जब पूरा मगध बौद्ध धर्म अपना चुका था.
ये वही धरती थी जिस धरती ने सिकंदर और सैल्युकस जैसे योद्धाओं को पराजित किया लेकिन वह अब अपनी वीर वृत्ति खो चुकी थी. अब विदेशी भारत पर हावी होते जा रहे थे जिसका एकमात्र कारण था बौद्ध धर्म की अहिंसात्मक नीतियां.
ऐसे में एक क्रांति और एक पराक्रमी शासक की देश को बहुत ज़रूरत थी जो इस वीर धरा को उसका गौरव वापस दिला सके. खैर ज़्यादा प्रतीक्षा न करनी पड़ी, इस धरा को पुष्यमित्र शुंग के रूप में जल्द ही वह शासक मिल गया.
राजा बृहद्रथ की सेना की कमान संभालने वाले ब्राह्मण सेनानायक पुष्यमित्र शुंग की सोच राजा से बहुत भिन्न थी. जिस प्रकार बीते कुछ वर्षों में भारत की वैदिक सभ्यता का पतन हुआ था, उसे लेकर पुष्यमित्र के मन में विचार उठते रहते थे.
इसी बीच राजा के पास खबर आई कि कुछ ग्रीक शासक भारत पर आक्रमण करने की योजना बना रहे हैं. इन ग्रीक शासकों ने भारत विजय के लिए बौद्ध मठों के धर्म गुरुओं को अपने साथ मिला लिया था. सरल शब्दों में कहा जाए तो, बौद्ध धर्म गुरु राजद्रोह कर रहे थे. भारत विजय की तैयारी शुरू हो गई. वह ग्रीक सैनिकों को भिक्षुओं के वेश में अपने मठों में पनाह देने लगे और हथियार छिपाने लगे.
यह ख़बर जब पुष्यमित्र शुंग तक पहुँची तो उन्होंने राजा से बौद्ध मठों की तलाशी लेने की आज्ञा मांगी. मगर राजा ने ऐसी आज्ञा देने से मना कर दिया. मगर समय को कुछ और ही मजूर था. सेनापति पुष्यमित्र राजा की आज्ञा के बिना ही अपने सैनिकों सहित मठों की जांच करने चले गए.
जहां जांच के दौरान मठों से ग्रीक सैनिक पकड़े गए. इन्हें देखते ही मौत के घाट उतार दिया गया और उनका साथ देने वाले बौद्ध गुरुओं को राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर राज दरबार में पेश किया गया.
बृहद्रथ चूँकि राजा था और सेनापति पुष्यमित्र ने उसकी आज्ञा का पालन नहीं किया जो उसे बहुत बुरा लगा. एक सैनिक परेड के दौरान ही राजा और सेनापति के बीच बहस छिड़ गई. बहस इतनी बढ़ गई कि राजा ने पुष्यमित्र पर हमला कर दिया, जिसके पलटवार में सेनापति ने बृहद्रथ की हत्या कर दी.
बृहद्रथ की हत्या हो चुकी थी. हत्या के बाद सेना ने पुष्यमित्र का साथ दिया और उसे ही अपना राजा घोषित कर दिया. राजा का पद संभालते ही पुष्यमित्र ने सबसे पहले राज्य प्रबंध में सुधार किया. पुष्यमित्र शुंग अपंग हो चुके साम्राज्य को दोबारा से खड़ा करना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने एक सुगठित सेना का निर्माण शुरू कर दिया.
उन्होंने धीरे-धीरे उन सभी राज्यों को दोबारा से अपने साम्राज्य का हिस्सा बनाया, जो मौर्य वंश की कमजोरी के चलते इस साम्राज्य से अलग हो गए थे. ऐसे सभी राज्यों को फिर से मगध के अधीन किया गया और मगध साम्राज्य का विस्तार किया.
इसके बाद पुष्यमित्र ने भारत में पैर पसार रहे ग्रीक शासकों को भारत से खदेड़ा. राजा ने ग्रीक सेना को सिंधु पार तक धकेल दिया. जिसके बाद वह दोबारा कभी भारत पर आक्रमण करने नहीं आए. इस तरह राजा पुष्यमित्र ने भारत से ग्रीक सेना का पूरी तरह से सफाया कर दिया था.
शत्रुओं से विजय के पश्चात् पुष्यमित्र शुंग ने भारत में शुंग वंश की शुरुआत जी जिससे भारत में एकबार फिर से वैदिक सभ्यता का विस्तार हुआ.
जिन लोगों ने पुष्यमित्र के शासन के पहले भय से बौद्ध धर्म स्वीकार किया था वह वापस वैदिक धर्म की तरफ लौट आये. हालाँकि इतिहास के कई जानकारों का ऐसा मानना है कि पुष्यमित्र ने बौद्दों पर अत्याचार किया लेकिन कई लोगों का ऐसा भी कहना है कि बौद्ध लोगों ने ग्रीक शासकों की मदद से राजद्रोह किया था जिसके चलते पुष्यमित्र ने ऐसे देशद्रोही क्रूर बौद्ध धर्म के अनुयायियों को सजा दी थी.
भारत में वैदिक धर्म के प्रचार और साम्राज्य की सीमा विस्तार के लिए पुष्यमित्र शुंग ने अश्वमेध यज्ञ भी संपन्न किया था. भारत के अधिकतर हिस्से पर दोबारा से वैदिक धर्म की स्थापना हुई.
इस तरह से अखंड भारत में वैदिक धर्म की विजय पताका लहराने वाले पुष्यमित्र शुंग ने कुल मिलाकर 36 वर्षों तक शासन किया.
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