लिव इन एक ऐसा प्रचलित रिलेशनशिप देशभर में हो चुका है जिसके चलते युवाओं में एक अलग ही मंजर देखने को मिलता है, इसका अर्थ होता था अगर दो व्यस्क आपसी सहमति से कुछ दिन साथ रहे तो इसे लिव इन रिलेशनशिप का नाम दिया जाता था। मगर अब उच्च न्यायालय ने इस पर एक नई प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए साफ कह दिया है, कि यद्यपि कोई कपल कितने लंबे समय से साथ रह रहा और साथ में वह सामने वाले के लिए अपने कर्तव्यों का पालन कर रहा है जिम्मेदारी उठा रहा है या नहीं इन सब से मिलकर ही कोई रिश्ता शादी के समान होता है
हाई कोर्ट के जज मनोज बजाज ने यमुनानगर जिले के एक कपल की ओर से फाइल की गई याचिका को खारिज करते हुए आदेश दिया था कि इस कपल ने अपने परिवार से सुरक्षा की मांग करते हुए हाई कोर्ट में अर्जी दी थी।
जानकारी के मुताबिक यह कपल पिछले कुछ दिनों से ही लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहा था। हाई कोर्ट ने इस तरह की अर्जी दायर करने के लिए इस जोड़े पर 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया।
पीठ 18 साल की लड़की और 20 साल के लड़के द्वारा दायर याचिका पर विचार कर रही थी, जिन्होंने दावा किया था कि वे एक-दूसरे से प्यार करते हैं और वयस्क होने पर शादी करने का फैसला किया है।
सुरक्षा याचिका में यह कहा गया था कि लड़की के माता-पिता उनके खिलाफ हैं और उन्होंने अपनी पसंद के लड़के के साथ उसकी शादी करने का फैसला किया है, और उन्हें झूठे आपराधिक मामले में फंसाने की चेतावनी भी दी है। इसलिए, वे अब लिव-इन रिलेशन में साथ रहते हैं।
कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि लिव इन रिलेशनशिप एक दूसरे के प्रति कुछ कर्तव्यों और जिम्मेदारियों के निर्वहन के साथ मिलकर ऐसे रिश्तों को वैवाहिक संबंधों के समान बनाती है।
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