भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और भारतीय जनसंघ के संस्थापक अटल बिहारी वाजपेयी का आज ही के दिन 1924 में जन्म हुआ था। भारत की जनता ने उन्हें तीन बार देश के प्रधानमंत्री के पद पर बैठाया। राजनेता के अलावा वह एक अच्छे कवि, पत्रकार और साथ ही साथ एक अच्छे वक्ता भी थे। 1968 से 1973 के बीच वे भारतीय जन संघ के अध्यक्ष के रूप में काम कर रहे थे। देश की सियासत में नैतिकता की नई लकीर खींचने वाले अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में कई ऐसे फैसले हुए, जिसने इकोनॉमी की दशा और दिशा बदल डाली।
भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की 97वीं जयंती पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सदैव अटल पहुंचे। यहां उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी को याद कर पुष्पांजलि अर्पित की। ट्वीट कर प्रधानमंत्री ने उनको नमन किया।
आज हम आपको अटल बिहारी वाजपेयी से जुड़ा एक किस्सा बताने वाले हैं। एक बार राजीव गांधी ने उन्हें आड़े हाथों लेने की कोशिश की थी। तो चलिए आपको बताते है इस पूरी खबर को विस्तार से।
कई पत्र-पत्रिकाओं का किया था संपादन
बता दें कि अटल बिहारी वाजपेयी ने बहुत लंबे समय तक राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से जुड़ी अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया था। एक समय ऐसा था जब उनके साथ बहुत कम नेता रहना चाहते थे।
उस समय अटल बिहारी वाजपेयी जिस पार्टी में थे। उस पार्टी से केवल दो नेता ही चुनकर संसद पहुंचे थे। इसी वजह से राजीव गांधी ने उनको लेकर एक बयान दिया था। लेकिन उनका बयान बिल्कुल निराधार सा लगता है।
हम दो हमारे दो
बता दें कि 1984 में राजीव गांधी ने भाजपा को लेकर एक बयान दिया था। इसी साल कांग्रेस पार्टी की सरकार को अलग-अलग राज्यों के वोटर्स पसंद करते थे। बहुत ही कम लोग थे जो भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में थे।
उस समय बीजेपी को केवल 2 सीटें ही मिली थी। इसी वजह से उन्होंने कहा था कि हम दो हमारे दो। हम दो हमारे दो का मतलब यह था कि जिस पार्टी से अटल बिहारी वाजपेयी थे। उससे केवल दो ही नेता चुने गए थे।
राजनीति से लेने वाले थे संन्यास
भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने साल 1984 में इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। मृत्यु के बाद भी उनके चाहने वाले उन्हें याद कर रहे थे। उसी वर्ष हुए आम चुनाव में लोगों ने कांग्रेस पार्टी को खूब वोट दिया था।
कांग्रेस को पीछे करने में कोई भी पार्टी सफल नहीं हुई। इसके बाद लोकसभा में कांग्रेस 426 सीटें लेकर आई। बीजेपी को केवल 2 सीटें ही मिली थी। साथ ही यह भी कहा जाता है कि उस समय अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति से संन्यास लेने वाले थे।