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शिक्षक दंपति की सोच को सलाम, बेटी के जन्म पर शुरू की अनोखी परंपरा, आज बन रही है मिसाल

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करनाल के इस शिक्षक दम्पति ने बेटियों के प्रति सोच बदलने की एक ऐसी परम्परा शुरू की जो मिशाल बन रही है हरियाणा में आज जंहा बेतोयो को बेटो के बराबर सम्मान मिलने लगा है वही यदि साल 2000 तक की बात करे तब तक बेटियों के जन्म पर कुआ पूजन और लोहड़ी मनाना एक सपने जैसे था। लेकिन कहते है शिक्षक की गोद में निर्माण और प्रलय दोनों खेलते है तो किसी परम्परा को बदलने के लिएयदि एक शिक्षक पहल करे तो वह बदल जाती है सामाज में बदलाव की शुरुआत धीरे धीरे होती है लेकिन होती जरूर है इस बात की नजीर पेश करते है

इसी कड़ी में करनाल के एक शिक्षक दम्पति गगन और मिहिर ने बेटियों के जन्म पर लोहड़ी मनाने की परम्परा शुरू की गई है आज यह परम्परा एक मिसाल के तौर पर देखी जा रही है गगन और मिहिर बताते है की सं 2003 की बात है उनकी पहली संतान नेति थी उसके बाद दूसरी संतान भी बेटी ही हुई उसके बाद समाज का नजरिया उसके प्रति उतना अच्छा नहीं था ।

शिक्षक दंपति की सोच को सलाम, बेटी के जन्म पर शुरू की अनोखी परंपरा, आज बन रही है मिसाल

बेटियों को बोझ समझने वाले लोगो में भ्रूण हत्या का काफी चलन था जिसमे कई बड़े नेताओ के नाम शामिल थे उस संतान के जन्म पर लोहड़ी मनाने की एक परम्परा चलाते हुए एक बड़ा प्रोग्राम किया जिसमे कई लोग शामिल हुए इस कार्यक्रम की तारीफ शिक्षा मंत्री ने भी की तभी इस इस मुहीम की शुरुआत हो गई थी वही जिस बेटी के नाम पर यह मुहीम शुरू की थी वो आज 18 साल की है और अपने नाम को सार्थक करणरहि है

शिक्षक दंपति की सोच को सलाम, बेटी के जन्म पर शुरू की अनोखी परंपरा, आज बन रही है मिसाल

शिक्षक दम्पति ने बताया की उनकी दूसरी अपने नाम अनन्या को सार्थक करते हुए अपना बचपन बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ को को समर्पित किया हैवही उनकी दूसरी बेटी संजोली बनर्जी भी समाज में अपना एक मुकाम हासिल कर चुकी है बेटी संजोली आस्ट्रलिया से डिग्री प्राप्त कर समाज में अपना अपना नाम बना रही है वही अब दोनों बेटियाँ समाज कलयाण के कार्यो में जुटी है

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वही संजोली को ३ अनतर्राष्टीय अवार्ड भी मिल चुके है यह दोनों बेटियां दरड़ गांव में मोबाइल स्कूल चलती है और समाज के लिए एक प्रेरणा बन रही है

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