
आंवला नवमी का यह पर्व प्रकृति के प्रति आभार जताने के लिए मनाया जाता है। आज हम आपको राजस्थान के भरतपुर जिले के एक किसान के बारे में बताने जा रहें हैं, जिसने आंवले के बागान से खूब नाम कमाया। यह एक ऐसा गांव है, जहा के अधिकतर लोग के पास घर हीं काम है यहां कोई राेजगार या धंधे से जुड़े नहीं हैं।
इस किसान का नाम अमर हैं, वह सन् 1996-97 के वक्त उसके आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, उसके पास घर चलाने तक के पैसे नहीं थें, यह किसान उस समय परिवार का पेट जैसे–तैसे गेहूं-सरसों की खेती और माल ढुलाई के लिए छोटे वाहन चला कर करता था।
अक्सर अमर अपनी घर की स्थिती देख परेशान रहता था। एक दिन जब गाड़ी लेकर अमर कहीं निकला तो उसे अचानक भूख लगी, तो वह कुम्हेर बाजार में एक दुकान पर बैठकर समोसा खरीदकर खाने लगा, तभी खाने के बाद अमर ने
समोसा के साथ मिली अखबार के टुकड़े को पढ़ने लगा और तभी उन्हें आंवले के फायदे के बारे में पता चला और तो फिर अमर ने आंवले की खेती करने का फैसला किया, इस आइडिए के बारे में जानकर पहली उनकी मां और पत्नी को बताया तो पहले उनलोगो ने करने से मना किया।
आंवले की खेती शुरु करने में सबसे पहली समस्या उसके पौधों को लाना, जो जल्दी कहीं से प्राप्त नहीं होता, तभी खेती डिपार्टमेंट में तत्कालीन सुपरवाइजर रहे सुबरण सिंह ने अमर की मदद कर उसे 19 रुपए एक पौधे के हिसाब से आंवले के कई पौधे दिए।
फिर क्या था, अमर के परिवार ने दिन-रात मेहनत कर 6 बीघा जमीन पर आंवले का पौधा लगा दिया और अपनी नई शुरुवात की इस पुरे खेती को देखने बॉर्टीकल्चर डिपार्टमेंट के लोग भी पहुँच गए।
शुरूआत में अमर ने आंवलों को कच्चा ही बेचा कर सालाना 3 से 4 लाख रुपए कमाई की, फिर अमर से आंवले का मुरब्बा और अचार खरीदने की डिमांड आया तो तो अमर ने मुरब्बा और अचार बनाने के लिए गांव की 25 महिलाओं को काम पर रखा और देशी तरीके से बिना किसी केमिकल का इस्तेमाल किया। यह महिला आंवले को उबालने से लेकर उसे चाशनी में डुबाने तक का काम करती हैं। अब अमर के मुताबिक़ उनका सलाना करीब 10 लाख रुपए तक कमाई हो जाती है।
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