ताऊ देवीलाल की सत्ता और उनकी राजनीति से ज्यादा इन दिनों उनके अंश यानी कि देवीलाल की तीसरी और चौथी पीढ़ी में वर्चस्व को लेकर घमासान चर्चा का विषय बना हुआ प्रतीत होता हैं। इतना ही नहीं बल्कि संयुक्त पंजाब से लेकर हरियाणा बनने के बाद, अब तक की राजनीति में देवीलाल का परिवार पूरी तरह से छाया हुआ है।
गौरतलब,इस बात से सभी वाकिफ हैं कि देवीलाल के पौत्र अभय सिंह चौटाला और प्रपौत्र दुष्यंत चौटाला में सुलह की संभावनाएं खत्म हो चुकी हैं। भाजपा के साथ मिलकर राज चला रहे दुष्यंत चौटाला पर चाचा अभय सिंह ने यह कहते हुए वार किया कि वह दिन दूर नहीं, जब जजपा का भाजपा में विलय हो जाएगा। भतीजे दुष्यंत और दिग्विजय को चाचा की यह बात नागवार गुजरी और उन्होंने ट्वीट किया कि 2024 में इनेलो का ही जजपा में विलय हो चुका होगा।
चौधरी देवीलाल ने जिस इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) की स्थापना की थी, पांच बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके ओमप्रकाश चौटाला अपने छोटे बेटे अभय सिंह चौटाला के साथ, उस इनेलो को नए सिरे से खड़ा करने की भरसक कोशिश में हैं। चौटाला के बड़े बेटे अजय सिंह चौटाला जननायक जनता पार्टी (जजपा) को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने के लिए जी-जान से जुटे हैं।
यह वही जजपा है, जो चौटाला परिवार में फूट के चलते नौ दिसंबर 2018 को इनेलो से अलग होकर अस्तित्व में आई और देखते ही देखते विधानसभा चुनाव में 10 सीटें जीतकर भाजपा के साथ प्रदेश में गठबंधन की सरकार बनाने में कामयाब हो गई। देवीलाल के प्रपौत्र दुष्यंत चौटाला भाजपा-जजपा गठबंधन की सरकार में उप मुख्यमंत्री हैं तो उनके छोटे भाई दिग्विजय चौटाला पार्टी महासचिव के नाते संगठन को मजबूती देने में लगे हैं। सारा झगड़ा देवीलाल की राजनीतिक विरासत पर काबिज होने को लेकर है।
कभी भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का अंग रह चुके इनेलो की क्षेत्रीय दल की मान्यता पर आजकल संकट मंडरा रहा है। अप्रैल 2001 में देवीलाल के निधन के बाद से इनेलो का राजनीतिक संघर्ष का जो दौर आरंभ हुआ था, वह अभी खत्म नहीं हुआ है। वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में पार्टी की स्थिति काफी मजबूत थी और 2019 के चुनाव में लग रहा था कि इनेलो भारी-भरकम दल के रूप में उभरकर सामने आएगा, लेकिन परिवार की फूट और इनेलो में विघटन ने ऐसे हालात पैदा किए कि चौटाला के दोनों बेटों की राजनीतिक राहें जुदा हो गईं। वर्तमान में अभय सिंह चौटाला इनेलो के इकलौते विधायक हैं।
साल 2014 में केंद्रीय चुनाव आयोग ने नियमों में संशोधन नहीं किया होता तो इनेलो की राज्य स्तरीय पार्टी की मान्यता के लिए भी संकट पैदा हो जाता। पुराने नियमों के अनुसार, क्षेत्रीय दल की मान्यता के लिए चुनाव में छह प्रतिशत वोट और न्यूनतम दो सीटें अथवा विधानसभा की कुल सीटों की संख्या में न्यूनतम तीन प्रतिशत सीटें जीतना अनिवार्य था। अब नियम बदल गए हैं।
इनेलो से अलग होकर निकली जननायक जनता पार्टी इसका पूरा फायदा उठाने की कोशिश में है। दुष्यंत चौटाला और दिग्विजय के सुर में सुर मिलाते हुए उनके पिता जजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. अजय चौटाला दावा कर रहे हैं कि वर्ष 2024 में इनेलो का जजपा में विलय हो जाएगा। दुष्यंत तो यहां तक कह रहे हैं कि हम इसे करके दिखाएंगे।
हालांकि अभय चौटाला बड़े भाई अजय सिंह और भतीजों के इस दावे को ख्याली पुलाव करार देते हैं और कहते हैं कि जजपा ही भाजपा में मिल चुकी होगी, लेकिन दुष्यंत चौटाला अपने पिता अजय सिंह व भाई दिग्विजय चौटाला के साथ पार्टी को राष्ट्रीय फलक तक ले जाने का कोई प्रयास नहीं छोड़ रहे हैं। दुष्यंत अपनी पार्टी का संगठन राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में खड़ा करने की कोशिश में हैं। जननायक जनता पार्टी का विस्तार हो रहा है तो इनेलो को इसके लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। यानी सियासत में सब कुछ संभव है।
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