सरपंच चुनाव का मतदान 25 नवंबर को होगा वही पंचायत चुनाव की प्रक्रिया आरंभ हुए 2 दिन हो चुके है। लेकिन बात करे सरपंच चुनाव की तो इस बार ज्यादातर बड़े गांवों में सरपंच प्रत्याशी अनुसूचित जाति, पिछड़े वर्ग और महिलाओं के लिए आरक्षित किए गए है। राजनीति में ऐसी कारणों से जंग छिड़ जाता है लेकिन इस चुनाव में माहौल गरमा गर्मी का नही दिख रहा।
सरपंच चुनाव में आरक्षित वर्ग से है ज्यादातर सीटें
दरअसल इस राजनीति कुछ अलग अंदाज में हो रही है। जहां से सामान्य वर्ग की महिला के लिए सरपंच पद आरक्षित है, वहां पर प्रभावशाली लोगों ने अपने परिवार की महिलाओं को चुनाव लड़ाने की रणनीति बनाई है। किसी ने बहू तो किसी ने पौत्र वधू को मैदान में उतारने का फैसला लिया है।
लेकिन इस बात से सभी वाकिफ है कि यहां पर केवल महिलाओं का चेहरा होता है, उन्हे कठपुतली बनकर राजनीति दिमाग ही चला रहा होता है। गौरतलब है कि जहां पर अनुसूचित जाति या पिछड़ा वर्ग के लिए सरपंच पद आरक्षित है, वहां पर सामान्य वर्ग के दिग्गजों ने दूरी बनाना सही समझा।
गड़खेड़ा गांव से ही चुनी गई निर्विरोध प्रत्याशी
केवल गड़खेड़ा गांव ऐसा गांव है जहां अनुसूचित जाति की महिला के लिए आरक्षण है। और वहां ग्रामीणों की सहमति से निर्विरोध महिला सरपंच प्रत्याशी चुनी गई है। लेकिन अन्य गांवों में सामान्य वर्ग के उम्मीदवार अपने राजनीतिक भविष्य को ध्यान में रखते हुए आरक्षित उम्मीदवार और सामान्य उम्मीदवार के सपोर्ट में आने से बच रहे है।
आरक्षण के मुद्दे पर राजनीति करियर बचाते नेता
सपोर्ट न देने का तर्क है कि यदि सामान्य वर्ग को सपोर्ट करेंगे तो आरक्षित वर्ग से वोटो की प्राप्ति नहीं होगी। और आरक्षित वर्ग को सपोर्ट करेंगे सामान्य वर्ग हीन भावना से देखेंगे। और वही किसी भी वर्ग का साथ नही दिया तो कोई भी ये आरोप नही लगा सकता की उन्होंने उन्हें चुनाव हराने का काम किया। इसलिए अपना राजनीति करियर बचाते हुए पीछे रहने में उन्हें भलाई दिख रही है।