शारीरिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति को हमेशा से ही कमजोर समझा जाता है। समाज को लगता है कि जिस व्यक्ति के शरीर के अंग काम नहीं करते या उसके साथ कोई हादसा हो जाता है तो वह कोई भी काम नहीं कर सकता। आज हम आपको एक ऐसी महिला आईएएस की के बारे बताएंगे जो नेत्रहीन हैं। नेत्रहीन होने के कारण किसी को यकीन नहीं था कि सिविल सेवा का एग्जाम पास कर वह एक आईएएस अधिकारी बन जाएंगी। नेत्रहीन होने के कारण रेलवे ने उन्हें रिजेक्ट कर दिया था। मात्र 28 वर्ष की उम्र में दूसरे ही प्रयास में आईएएस की परीक्षा पास कर साबित कर दिया कि हौंसला अगर बुलंद हो तो हर कठिनाई, हर चुनौती हार जाती है।
जब प्राजंल छः साल की थी तो एक हादसे के कारण उन्होंने अपनी आंखों की रोशनी खो दी थी। लेकिन यह घटना भी उनकी हिम्मत न तोड़ सकी और वह लगातार प्रयास करती रही और आज उस मुकाम पर पहुंच गई जहां पहुंचने में अच्छे-अच्छों के पसीने निकल जाते हैं।
ये कहानी महाराष्ट्र के उल्हासनगर की प्रांजल पाटिल की है। प्रांजल देख नहीं सकती हैं, लेकिन उन्होंने ऐसा कर दिखाया जिसका सपना आंखों से सक्षम लोग भी देखते हैं। प्रांजल ने पहले ही अटेंप्ट में साल 2016 में सिविल सर्विस एग्जाम क्लियर किया। उन्होंने ऑल इंडिया रैंक 773 हासिल की थी
प्रांजल ने एक आंख की रौशनी छठी क्लास में खो दी थी। एक स्टूडेंट से उनकी आंख मे पेंसिल लग गई थी। लेकिन उसके अगले ही साल उन्होंने अपनी दूसरी आंख की उठी भी खो दी। दोनों आंखों की रौशनी चले जाने के बाद भी प्रांजल ने हार नहीं मानीं।
प्रांजल ने ब्रेल लिपि के जरिए पढ़ाई जारी रखी। साथ ही उन्होंने एक ऐसे सॉफ्टवेयर की भी मदद ली, जिससे वे शब्द दर शब्द सुन पाती थीं। तकनीक का जितना साथा मिला प्रांजल ने खुद को उतना मजबूत बनाया। वे बचपन से ही करियर चुनने को लेकर बेहद गंभीर थीं।
प्रांजल ने इंडियन रेलवे अकाउंट्स सर्विस (IRAS) एग्जाम पास किया, इस एग्जाम में उन्होंने 773वीं रैंक हासिल की। लेकिन रेलवे सर्विस डिपार्टमेंट ने उन्हें न देख पाने की वजह से जॉब ऑफर नहीं की। दरअसल रेलवे के नियमों के मुताबिक, नेत्रहीन उनके यहां नौकरी के लिए अयोग्य है। रेलवे में जॉब न कर पाने का पांजल को बेहद दुख हुआ, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। प्रांजल ने आईएएस बनने की ठानी। उन्होंने साल 2016 में पहली बार UPSC की परीक्षा दी थी।
रैंक सुधारने के लिए दोबारा दी परीक्षा
बता दें कि पहले प्रयास में प्रांजल ने 733वीं रैंक हासिल की। इस रैंक से वह ज्यादा खुश नहीं हुई और इसे सुधारने के लिए प्रांजल ने एक बार दोबारा प्रयास किया। उन्होंने दोबारा पढ़ाई शुरू की। इस बार उनकी मेहनत रंग लाई और साल 2017 में उन्हें 124वीं रैंक प्राप्त हुई।
प्रांजल का कहना है कि सफलता प्रेरणा नहीं देती, सफलता के पीछे का संघर्ष प्रेरणा देता है। लेकिन सफलता महत्वपूर्ण है क्योंकि तभी लोग आपके संघर्ष को जानने के इच्छुक होंगे।