अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड क्राफ्ट मेले में भारतीय पगड़ी के विविधता के रंग सबको मोहित कर रहे हैं। मुख्यमंत्री हो चाहे महामहिम राज्यपाल हों, शिक्षा मंत्री हों या फिर उज्बेकिस्तान के भारतीय राजदूत हों, चाहे माननीय सुप्रीम कोर्ट के जज हों, आईएएस अधिकारी हों, आईपीएस अधिकारी हों या फिर प्रशासनिक अधिकारी हों सबको ‘आपणा घर’ में हरियाणा की पगड़ी अपनी ओर आकर्षित कर रही है।
विरासत हेरिटेज विलेज कुरुक्षेत्र की ओर से 35वें अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड क्राफ्ट मेले में भारत के विभिन्न राज्यों की पगडिय़ां पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर रही हैं। उल्लेखनीय है कि भारतीय संस्कृति में पगड़ी का हजारों साल का इतिहास समाहित है। वैदिक काल से लेकर आज तक पगड़ी के हजारों स्वरूप देखने को मिले हैं।
भारत के प्रत्येक राज्य की पगड़ी की विविधता भारत की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा हैं। विरासत की ओर से मेले के आपणा घर में 50 से अधिक भारतीय पगडिय़ों को प्रस्तुत किया गया है। यहां पर हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्रा, जम्मू-कश्मीर के साथ-साथ महारानी लक्ष्मी बाई की पगड़ी, टीपू सुल्तान की पगड़ी, मारवाड़ी पगड़ी, महाराजा अकबर की पगड़ी, बीरबल की पगड़ी, महाराजा शिवाजी की पगड़ी, आर्यसमाजी पगड़ी, ब्रज पगड़ी सभी के स्वरूप प्रस्तुत किए गए हैं।
इतना ही नहीं आपणा घर में पगड़ी बंधाओ, फोटो खिंचाओ सेल्फी प्वाईंट भी पर्यटकों को लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं। पगड़ी के इतिहास के विषय में विरासत के प्रभारी डॉ. महासिंह पूनिया ने बताया कि पगड़ी को लोकजीवन में सर्वोच्च एवं शिरोधार्य स्थान है।
भारत में क्षेत्र के साथ-साथ जातियों, खापों, पंचायतों के आधार पर भी पगडिय़ों के स्वरूप निर्धारित किए गए हैं। पगड़ी को लोकजीवन में पग, पाग, पग्गड़, पगड़ी, पगमंडासा, साफा, पेचा, फेंटा, खण्डवा, खण्डका, आदि नामों से जाना जाता है। जबकि साहित्य में पगड़ी को रूमालियो, परणा, शीशकाय, जालक, मुरैठा, मुकुट, कनटोपा, मदील, मोलिया और चिंदी आदि नामों से जाना जाता है। आपणा घर में चौपाल का जो दृश्य प्रस्तुत किया गया है उसमें पर्यटक पगड़ी बंधवाकर हुक्के के साथ खूब फोटो खिंचवा रहे हैं। मेले में पगड़ी पर्यटकों के माध्यम से खूब रंग जमा रही है।