फरीदाबाद में भगवान श्रीकृष्ण का बनवाया हुआ पुल आजतक यथावत है

The bridge built by Lord Krishna in Faridabad remains intact till date.

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 फरीदाबाद में भगवान श्रीकृष्ण का बनवाया हुआ पुल आजतक यथावत है

इंजीनियरिंग मार्वेल कहा जा सकता है, इस पुल को :- जब योगिराज श्रीकृष्ण कंस बध के पश्चात मथुरा के राजा हुए, उस कालखण्ड में, आधुनिक फरीदाबाद के सराय मेट्रो स्टेशन और एनएचपीसी मेट्रो स्टेशन के बीच सोम बाजार के पास (एसएसएम पब्लिक स्कूल से थोड़ी दूरी पर), बूढ़ी नदी पर एक पुल का निर्माण हुआ था, जो आज भी यथारूप विद्यमान है।

जहाँ, आज के सीमेंट और कंक्रीट की बनी हुई संरचनाएँ सौ वर्षों से पूर्व ही दम तोड़ देती हैं, अँग्रेजों के समय के सीमेन्ट और कंक्रीट की रचनाएँ कहीं-कहीं आजतक, अर्थात दो सौ वर्षों तक अस्तित्व में है, किन्तु उन संरचनाओं को आज सुरक्षित नहीं माना जाता है, उनके विकल्प में दूसरी संरचना निर्माण हो चुके हैं, या हो भी रहे हैं।

फ़रीदाबाद में भगवान श्रीकृष्ण का बनवाया हुआ पुल आजतक यथावत है
फ़रीदाबाद में भगवान श्रीकृष्ण का बनवाया हुआ पुल आजतक यथावत है

वहीं, द्वापर में, श्रीकृष्ण के मथुरा का राजा होने के समय का, अर्थात आज से कम से कम 6 हजार वर्ष पूर्व की संरचना का आज भी यथावत होना, उसका यातायात के लिए आज भी सुरक्षित उपयोग होना, आधुनिक काल की इंजीनियरिंग के लिए एक शोध व आश्चर्य का विषय है। आधुनिक परिप्रेक्ष्य में, यह एक आश्चर्यजनक संरचना है।

श्रीकृष्ण का बनवाया हुआ पुल

भारत की थाती के हिसाब से यह आश्चर्य का विषय नहीं है, क्योंकि भारतीय वास्तुकला में तो ऐसी संरचनाएँ सहज ही निर्मित होती रही हैं। भारतीय वास्तु ग्रन्थों में तो ऐसी संरचनाओं के निर्माण की विधी, उसमें उपयोग होने वाली सामग्रियों और सिमेंटिंग मेटेरियलस का विस्तृत विवरण उपलब्ध है।

फ़रीदाबाद में भगवान श्रीकृष्ण का बनवाया हुआ पुल आजतक यथावत है
फ़रीदाबाद में भगवान श्रीकृष्ण का बनवाया हुआ पुल आजतक यथावत है

यहाँ विषय भिन्न होने से अधिक विस्तार में न जाते हुए, राजा भोज रचित और समरांगण सूत्रधार और रावण के श्वसुर दानव शिल्पी मयासुर द्वारा रचित मयमतम् नामक ग्रन्थों का उल्लेख अवश्य करना चाहूँगा, जिनका अध्ययन रुचि रखने वाले लोग कर सकते हैं। समरांगण सूत्रधार को उत्तर भारत में अधीक प्रसिद्धि है, तो मयमतम को दक्षिण भारत में।

विदित हो कि इस पुल में उपयोग किया गया सेमेंटिंग मटेरियल आधुनिक सीमेन्ट नहीं है, बल्कि इसमें गन्ने के रस को उबालते समय निकलने वाला झाग, जिसे छाई भी कहते हैं

फ़रीदाबाद में भगवान श्रीकृष्ण का बनवाया हुआ पुल आजतक यथावत है
फ़रीदाबाद में भगवान श्रीकृष्ण का बनवाया हुआ पुल आजतक यथावत है

जिसे आजकल एथेनॉल का स्रोत भी माना जाता है+गुड़+चुना+मोरम (सुरखी)+बेल के फल का गुदा+उड़द की दाल इत्यादि मिलाकर बनाया जाता था। इस सेमेंटिंग मटेरियल से बनी हुई संरचना में गर्मी के दिनों में ठंढा और ठंडे के दिनों में गर्मी का अनुभव होता है। ये भवन या संरचना स्वतः वातानुकूलित होते हैं।

खैर वापस आते हैं पुनः इस श्रीकृष्ण निर्मित पुल की चर्चा पर। इस पुल के निर्माण में लोहे की छड़ (सरिया) का उपयोग भी नहीं हुआ है। पत्थरों का चुनाव भी वैज्ञानिक रीति से किया गया है, ऐसे पत्थरों का चुनाव किया गया है, जिनकी आयु हजारों वर्ष की है।

फ़रीदाबाद में भगवान श्रीकृष्ण का बनवाया हुआ पुल आजतक यथावत है

श्रीराम जन्मभूमि पर अयोध्या में मन्दिर निर्माण की प्रक्रिया जब आरम्भ हो रही थी, तब उन दिनों, श्रीराम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र न्यास के महासचिव श्री चम्पत राय जी एक बात बार-बार कह रहे थे कि भगवान का मन्दिर निर्माण के लिए ऐसे पत्थरों का चुनाव किया जाएगा, जिनकी आयु हजार वर्ष से अधिक हो। तो श्रीकृष्ण ने स्वयं भी इस पुल के निर्माण में ऐसे पत्थरों का चुनाव किया/करवाया, जिनकी आयु हजार वर्षों से अधिक हो, बल्कि 6 हजार वर्षों से अधिक की थी।

इस पुल के दोनों तरफ सब्जी बाजार जितने क्षेत्र में लग जाता है, उतनी भूमि का क्षेत्र चहारदीवारी देकर सुरक्षित किया गया है, जिसमें कुछ रथ खड़े किए जा सकें। इसको वैदिक सन्दर्भ में गोचर्म कहा जाता था, अर्थात इतना स्थान, जितने में एक सौ गाएँ, अपने बछड़ों और सांडों के साथ स्वछंद रूप से निवास कर सकें। तब यातायात के सबसे बड़ा साधन रथ ही हुआ करता था, इसीलिए रथ पार हो सके, इतनी चौड़ाई है पुल की।

फ़रीदाबाद में भगवान श्रीकृष्ण का बनवाया हुआ पुल आजतक यथावत है
फ़रीदाबाद में भगवान श्रीकृष्ण का बनवाया हुआ पुल आजतक यथावत है

इस पूरे स्थान पर जो पत्थरों की सोलिंग की गई है, वह सोलिंग भी ऐसे पत्थरों से किया गया है, जिनकी आयु हजारों वर्षों की है। बीच में पुल ऊँचा रखा जाता था, जिससे पुल पर वर्षा ऋतु का पानी न जमा हो सके। पानी का भार पुल को खराब करता है, यह तथ्य तब के लोग जानते थे। बीचों बीच उस ऊँचाई को इंगित करने के लिए दोनों साइड में दो बड़े मीनार बनाए गए हैं।

ये मीनार बताते हैं कि मीनार बनाने की तकनीक हमारी देशी तकनीक है और यह तकनीक पूरी दुनियाँ ने हमसे सीखा है, न कि हमने किसी से सीखा है। जब बीच की ऊँचाई से रथ आगे बढ़ता था, तो ढलता था, इसको रोकने के लिए पुल के अंत में सतह से अधिक ऊँचाई के पत्थर दोनों तरफ लगाए गए हैं, जिससे रथ की ढलती हुई गति पर विराम लगाया जा सके, और घोड़ों पर भार या झटका न पड़े। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि हम जानवरों को जानवर न समझ, अपने जैसा ही समझते थे।

आत्मवत सर्व भूतेषु

यह पुल आज के इंजीनियरिंग के लिए एक चैलेंज है, आज के इंजीनियर्स को ऐसे हुनर सीखना चाहिए कि वो श्रीकृष्ण के इस पुल जैसा पुल बना सकें, जो पुल 6 हजार वर्ष तक टिक सके और उसके बाद भी उपयोगी बना रह सके। यह तकनीक ही भवन निर्माण और मन्दिर निर्माण में भी काम आ जाएगा।

फ़रीदाबाद में भगवान श्रीकृष्ण का बनवाया हुआ पुल आजतक यथावत है
फ़रीदाबाद में भगवान श्रीकृष्ण का बनवाया हुआ पुल आजतक यथावत है

इस पुल के निर्माण के लिए ऐसी भूमि का चुनाव भी किया जाता है, जहाँ कोई स्ट्रक्चर इतने लम्बे समय तक टिक सके। ऐसी आधारभूमि का चुनाव अयोध्या में भी किया गया, उचित आधार पर न मिला तो मिर्जापुर के पत्थरों से आधारभूमि बनाया गया।

इस पुल के एक तरफ आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया का एक बोर्ड लगा है, जो बहुत धुँधला हो गया है, पढ़ने योग्य नहीं रह गया है। इससे यह स्पष्ट पता चल रहा है कि पहले यह रचना एएसआई द्वारा मेंटेन किया जाता रहा था, और आज की स्थिति देखकर पता लग रहा है कि अब यह उनके मेंटेनेंस में नहीं है। किन्तु इस रचना को देखभाल के बिना भी कार्य योग्य बनाया था श्रीकृष्ण ने।

लेखन ~ मुरारी शरण शुक्ल जी

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