मॉडर्न युग में लोगों का लाइफस्टाइल से भाषा तक भी मॉडर्न हो गया है। समाज में अपनी इज्जत बनाने के लिए लोग अपने लोकगीत, बोलियां और भाषा को बोलने से कतराते है। अपने लोकगीत बोलियां भाषा बोलने में लोगों का स्टैंडर्ड कम हो जाता हैं। ग्रामीणों के कुछ बचे हुए बुजुर्ग हैं जो अपनी परंपरा को आगे बढ़ाते हैं और अपने बच्चों को उसका ज्ञान देते हैं लेकिन फिर भी शहर में यह बहुत कम देखने को मिलता है कि कोई अपनी बोली भाषा या लोकगीत को सम्मान देता है या उसका उपयोग करता है। फरीदाबाद सेक्टर-30 वाली गायिका अंबा मिश्रा इस काम को बखूबी कर रही हैं। मैथिली और भोजपुरी के लोकगीतों को वे ड्रम और गिटार जैसे पश्चिमी वाद्य यंत्रों के साथ गाती हैं। इस विधा को उन्होंने फ्यूजन नाम दिया है और द चस्का नाम से एक बैंड बनाया है। उनका यह प्रयोग इंटरनेट मीडिया के साथ ही रेडियो और संगीत प्रेमियों के बीच खूब पसंद किया जा रहा है। हाल ही में संगीत के लगभग सभी प्लेटफार्म पर उनका फ्यूजन गाना रिलीज हुआ है।
देसी कला को मिली इज्जत
फरीदाबाद सेक्टर-30 निवासी गायिका अंबा मिश्रा ने इस परंपरा को संजोग के रखा हैं। वह ड्रम और गिटार जैसे पश्चिमी वाद्ययंत्रों के साथ मैथिली और भोजपुरी लोक गीत गाती हैं। उन्होंने इस शैली को फ्यूजन नाम दिया और द चास्कस नामक एक बैंड का गठन किया। उनके इस प्रयोग को इंटरनेट मीडिया के साथ-साथ रेडियो और संगीत प्रेमी इस कला को बेहद पसंद किया जा रहा है। हाल ही में उनका फ्यूजन सॉन्ग म्यूजिक के लगभग सभी प्लेटफॉर्म पर रिलीज किया गया हैं।
लोकगीत को संस्कृति का दर्पण बताती हैं अंबा
अंबा मिश्रा कहती हैं कि लोकगीत हमारी संस्कृति का दर्पण हैं। मूलरूप से बिहार के बीरपुर की रहने वाली अंबा का कहना है कि किसी क्षेत्र की संस्कृति को जानना है तो वहां के लोकगीत अच्छा माध्यम हो सकते हैं। बचपन से ही उन्होंने लोकगीतों को सुना है। उनके अर्थ समझ में आए तो उनकी कीमत पता चली।
लोकगीतों और मॉडर्न वाघ यंत्रों का किया मिश्रण
मॉडर्न गानों के वर्चस्व में आने से लोकगीत विलुप्त होते जा रहे हैं। नई पीढ़ी मॉडर्न सॉन्ग्स में इतनी खो गई है की लोकगीतों को भूलती जा रही है या शायद इसके बारे में कई लोगों ने सुना भी नहीं होगा। इसलिए अंबा मिश्रा ने मॉडर्न जमाने का ख्याल रखते हुए आधुनिक वाद्य यंत्रों का सहारा लिया और अपने लोकगीतों को बचाने के लिए मॉडर्न वाघ यंत्र और लोकगीतों का मिश्रण कर दिया जिसे खूब पसंद किया जा रहा है। नई पीढ़ी को इससे जोड़ने के लिए एक नई धुन बनाई गई है। इसमें वे काफी हद तक सफल भी हो रही हैं। मैथिली में ननद-भाभी के बीच नोकझोंक का प्रचलित एक लोकगीत है। इसमें सोने के आभूषणों को लेकर ननद-भाभी के बीच मीठी नोकझोंक को दर्शाया गया है। इस गीत को गिटार और ड्रम जैसे वाद्य यंत्रों के साथ जब वे स्टेज पर परफॉर्म करती हैं तो लोग वाह-वाह कर उठते हैं। अंबा ने बताया कि जब वे छोटी थीं तो उनके पापा कैशियो लेकर आए थे। उससे ही उन्हें संगीत का चस्का लगा। वाराणसी में उन्होंने संगीत की शिक्षा ली।
लोकगीतों पर झूमते है लोग
मैथिली में ननद-भाभी के नोक झोंक की लोककथा प्रचलित है। इसमें सोने के गहनों को लेकर भाभी और ननद के बीच मधुर रस्साकशी को दर्शाया गया है। जब वह मंच पर गिटार और ड्रम जैसे वाद्य यंत्रों के साथ गीत प्रस्तुत करती है तो भीड़ से तालियों की गड़गड़ाहट गूँजती है। अंबा ने बताया कि जब वह छोटी थी तो उसके पिता कैशियो लेकर आए थे। इसलिए उन्हें संगीत का स्वाद मिला पसंद आया। उन्होंने वाराणसी में संगीत की शिक्षा ग्रहण की थी।