ऐसे हुई थी कलयुग की शुरुआत, जानकर खड़े हो जाएंगे रोंगटे

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ऐसे हुई थी कलयुग की शुरुआत :- भारतीय संस्कृति सबसे प्राचीन है। सनातन धर्म विश्व का सबसे प्राचीन धर्म है। हमारे पुराणों में चार युगों का वर्णन मिलता है सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग। कलयुग को एक श्राप कहा जाता है। क्या आपको पता है कि इस पृथ्वी पर कलयुग कैसे आया और कैसे हुई थी पृथ्वी पर कलयुग का शुरुआत? चलिए आज आपको हम बताते हैं।

हमारे शास्त्रों में सृष्टि के आरंभ से प्रलय काल तक की अवधि को चार युगों में बांटा गया है। वर्तमान में हम जिस युग में जी रहे हैं उसे कलयुग कहा गया है।

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इससे पहले तीन युग बीत चुके हैं सतयुग, त्रेता और द्वापर। भगवान श्री राम का जन्म त्रेतायुग में हुआ था और द्वापर में भगवान श्री कृष्ण का। कलियुग के अंत में भगवान कलकि अवतार लेंगे और संसार में फैले पाप और अन्याय के साम्राज्य का अंत करके पुनः धर्म की स्थापना करेंगे।

रामायण में रामराज देख सभी का दिल करता है कि काश वर्तमान स्थिति भी रामराज जैसी हो जाए | क्या हम सब ने कभी इस बात पर ध्यान दिया है कि ऐसे क्या कारण रहे होंगे जिसके चलते कलयुग को धरती पर आना पड़ा।

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महान गणितज्ञ आर्यभट्ट ने अपने पुस्तक ‘आर्यभटीयम’ में इस बात का उल्लेख किया है कि जब वह 23 वर्ष के थे, तब कलयुग का 3600 वर्ष चल रहा था। आंकड़ों के अनुसार आर्यभट्ट का जन्म 476 ईसापूर्व में हुआ था। गणना की जाए तो कलयुग का आरंभ 3102 ईसा पूर्व हो चुका था।

विश्व में मात्र सनातन धर्म ही ऐसा धर्म है जो दुनिया को ऐसी सीख देता है कि उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती | सबसे पूज्य धर्म सनातन धर्म है | जब धर्मराज युधिष्ठिर अपना पूरा राज्य पाठ परीक्षित को सौंपकर अन्य पांडवों और द्रोपदी सहित महाप्रयाण हेतु हिमालय की ओर निकल गए थे। उन दिनों स्वयं धर्म बैल का रूप लेकर, गाय के रूप में बैठी पृथ्वी देवी से सरस्वती नदी के किनारे मिले।

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गाय के रूप में पृथ्वी के नयन आंसुओं से भरे हुए थे उनकी आंखों से लगातार अश्रु बह रहे थे। पृथ्वी को दुखी देख धर्म रूपी बैल ने उनसे उनकी परेशानी का कारण पूछा। धर्म ने कहा देवी कहीं तुम यह देख कर तो नहीं घबरा गई कि, “मेरा बस एक ही पैर है” या फिर तुम इस बात से दुखी हो अब तुम्हारे ऊपर बुरी ताकतों का शासन होगा।

जैसे – जैसे दिन निकलते जा रहे हैं पृथ्वी पर पापियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। धर्म के सवाल का जवाब देते हुए पृथ्वी देवी बोली। हे धर्म तुम तो सब कुछ जानते हो ऐसे में मुझसे मेरे दुखों का कारण पूछने से क्या लाभ। सत्य, मित्रता, त्याग, दया, शास्त्र, विचार, ज्ञान, वैराग्य, ऐश्वर्य, निर्भिकता, कोमलता, धैर्य आदि के स्वामी भगवान श्री कृष्ण के अपने धाम चले जाने की वजह से कलयुग ने मुझ पर कब्जा कर लिया है।

श्री कृष्ण के चरण कमल मुझ पर पड़ते थे जिसकी वजह से मैं खुद को सौभाग्यशाली मानती थी परंतु अब ऐसा नहीं है। अब मेरा सौभाग्य समाप्त हो चुका है। धर्म और पृथ्वी आपस में बातें ही कर रहे थे कि इतने में असुर रूपी कलयुग वहां आ पहुंचा, और धर्म और पृथ्वी रूपी गाय और बैल को मारने लगा।

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धर्म के मार्ग पर ही चलकर इंसान सफलता पा सकता है। जो पाप करके सफलता प्राप्त करता है वो कुछ दिनों में चली जाती है। जहां पृथ्वी और धर्म वार्ता कर रहे थे, राजा परीक्षित उसी मार्ग से गुजर रहे थे जब उन्होंने अपनी आंखों से यह दृश्य देखा तो वह कलयुग पर बहुत क्रोधित हुए।

राजा परीक्षित ने कलयुग से कहा दुष्ट, पापी तू कौन है? और क्यों इस निरपराध गाय और बैल को मार रहा है। तु महा अपराधी है तेरा अपराध क्षमा योग्य नहीं है इसलिए तेरी मौत निश्चित है। राजा परीक्षित ने बैल के रूप में धर्म और पृथ्वी के रूप में गाय देवी को पहचान लिया था।

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हर पापी का विनाश करने के लिए ईश्वर ने किसी धर्मयुक्त इंसान को बनाया है। इंसान अपनी अकड़ में सबकुछ गवा देता है। जब राजा परीक्षित ने उन्हें पहचाना तो उन्होंने कहा कि हे धर्म, सतयुग में आपके तप, पवित्रता, दया और सत्य यह चार चरण थे। त्रेतायुग में तीन चरण ही रह गए, द्वापर में दो ही रह गया।

और अब इस दुष्ट कलयुग के कारण आपका एक ही चरण रह गया है। पृथ्वी देवी इस बात से दुखी है, इतना कहते हुए राजा परीक्षित ने अपनी तलवार निकाली और कलयुग को मारने के लिए आगे बढ़े।

राजा परीक्षित का क्रोध देखकर कलयुग थरथर कापने लगा। कलयुग अपनी राजश्री वेशभूषा को उतार कर राजा परीक्षित के चरणों में गिर गया, और क्षमा याचना करने लगा।

मानों तो गंगा है न मानो तो बहता पानी। बहुत से लोग कलयुग को मज़ाक के रूप में मानते हैं | जब कलयुग राजा परीक्षित के पैरों में गिरा तो उन्होंने भी अपने शरण में आए कलयुग को मारना उचित नहीं समझा और उससे कहा कि कलयुग तुम मेरे शरण में आ गया है इसलिए मैं तुझे जीवनदान दे रहा हूं।

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किंतु अधर्म, पाप, झूठ, चोरी, कपट, दरिद्रता आदि अनेक द्रवों का मूल कारण केवल तू ही है। तुम मेरे राज्य से अभी निकल जा और फिर कभी लौट कर नहीं आना। कलयुग ने राजा परीक्षित की बात सुनकर कहा की पूरी पृथ्वी पर आप का निवास है, पृथ्वी पर ऐसा कोई स्थान नहीं है जहां आप का राज नहीं हो, ऐसे में मुझे रहने के लिए आप स्थान प्रदान कीजिए।

सनातन धर्म में यह रीत सदियों से चली आ रही है कि यदि कोई आपके चरणों में गिर के माफ़ी मांगे तो आप सामने वाले को माफ़ करदे।

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कलयुग के यह कहने पर राजा परीक्षित ने काफी सोच विचार कर कहा असत्य, मद, काम और क्रोध का निवास जहाँ भी होता है इन चार स्थानों तुम पर रह सकते हो। परंतु इस पर कलयुग बोला हे राजन, यह 4 स्थान मेरे रहने के लिए अपर्याप्त है। मुझे अन्य जगह भी प्रदान कीजिए।

इस बात पर राजा परीक्षित ने कलयुग को रहने के लिए स्वर्ण के रूप में पांचवा स्थान प्रदान किया | कलयुग इन स्थानों के मिल जाने पर प्रत्यक्ष रुप में तो वहां से चला गया, किंतु कुछ दूर जाने के बाद अदृश्य रूप में वापस आकर राजा परीक्षित के स्वर्ण मुकुट में निवास करने लगा। और फिर इसी तरह से कलयुग का आगमन धरती पर आगमन हुआ।

कलयुग

भाई – भाई का दुश्मन, जमीन जायजाद के लिए खून खराबा यह कलयुग का असली चेहरा है। मार्कंडेय पुराण में वर्णन मिलता है कि कलयुग के शासक मनमाने ढंग से जनता पर राज करेंगे। मनचाहे ढंग से उनसे लगान वसूल करेंगे। शासक अपने राज्य में धर्म की जगह डर और भय का प्रचार करेंगे।

बड़ी संख्या में पलायन शुरू हो जाएगा, लोग सस्ते चीजों की तलाश में अपने घरों छोड़कर जाने के लिए मजबूर हो जाएंगे। धर्म को नजर अंदाज किया जाएगा, और लालच, झूठ और कपट सब के दिमाग के ऊपर हावी रहेगा। लोग बिना किसी पस्चताप के हत्यारा बनकर लोगों की हत्या भी करेंगे।

इंसान अपनी सोच से सबकुछ प्राप्त कर सकता है, लेकिन कलयुग में इंसान की जो सोच है वे बस लालच और वासना से पूर्ण है। संभोग ही जिंदगी की सबसे बड़ी जरूरत है कलयुग में इस समय। लोग बहुत जल्दी कसम खाएंगे और उसे तोड़ भी देंगे। लोग मदिरा और अन्य नशीली चीजों के चपेट में आ जाएंगे।

गुरुओं का सम्मान करने की परंपरा भी समाप्त हो जाएगी। ब्राह्मण ज्ञानी नहीं रहेंगे, क्षत्रियों का साहस खत्म हो जाएगा और वैश्य अपने व्यापार में ईमानदार नहीं रह पाएंगे। यह सभी बातें हमारी रोजमर्रा की जिंदगी की आम सी लगती हैं।