हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को ज़ोर का तमाचा मारा है | पत्रकारिता के ज़रिये की जनता के पास खबरें आती हैं | लेकिन अगर एक पत्रकार के ऊपर सरकार बैन लगादे, बिना किसी जुर्म के तो यह सरकार के लिए शर्मिंदगी की बात है | संविधान के अनुसार विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका लोकतन्त्र के तीन स्तम्भ हैं लेकिन पत्रकारिता को असंवैधानिक तौर पर लोकतन्त्र का ‘चौथा स्तम्भ’ का स्थान प्राप्त है। पत्रकारिता ही वह शस्त्र है जिसका इस्तेमाल करके जनता के हित में सत्ता से प्रश्न पूछे जाते हैं।
सरकार की कमियों और अच्छाइयों दोनों को दिखाना पत्रकार का काम होता है | यदि कोई पत्रकार सरकार की कमियों को दिखादे तो इसका यह मतलब नहीं की सरकार उसपर बैन लागादे | मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। पत्रकार समाज का दर्पण होते हैं, विपरीत परिस्थितियों में भी सच्चाई को सामने लाते हैं |
सच्चाई को सामने लाना पात्रकार का काम होता है | पत्रकारिता आधुनिक सभ्यता का एक प्रमुख व्यवसाय है जिसमें समाचारों का एकत्रीकरण, लिखना, जानकारी एकत्रित करके पहुँचाना, सम्पादित करना और सम्यक प्रस्तुतीकरण आदि सम्मिलित हैं। आज के युग में पत्रकारिता के भी अनेक माध्यम हो गये हैं; जैसे – अखबार, पत्रिकायें, रेडियो, दूरदर्शन, वेब-पत्रकारिता आदि।
भारत में पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है और पत्रकार इसके प्रहरी होते है। लेकिन देश और लोकतंत्र का दुर्भाग्य है कि एक पत्रकार जो सच बोलता है और सरकार को आईना दिखाने का काम करता है उसको बैन कर दिया जाय, दरअसल करनाल के पत्रकार अनिल लांबा की याचिका पर हाईकोर्ट ने सोशल मीडिया पर लगे बैन को हटा दिया है एक पत्रकार द्वारा सोशल मीडिया पर हरियाणा सरकार द्वारा लगाए गए बैन को हटाए जाने की मांग को लेकर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका पर सुनवाई करते हुए हरियाणा सरकार के इस फैसले पर करारा प्रहार करते हुए इस बैन को हटा दिया है |
सच सभी को कड़वा लगता है वे चाहे सरकार हो या आम आदमी | हाईकोर्ट ने सरकार को करारी फटकार लगाते हुए कहा है कि सरकार न तो सोशल मीडिया पर बैन लगा सकती है और न ही जनता की आवाज को दबा सकती है | यदि सरकार सोशल मीडिया पर कोई नियम कायदे बनाना चाहती है तो बनाए, लेकिन उस से पहले बैन लगाना संवैधानिक नहीं है |
आपको बता दें कि हरियाणा सरकार ने प्रदेश के लगभग छह जिलों में कोरोना को लेकर सोशल मीडिया पर बैन लगा दिया था | करनाल के डीसी निशांत कुमार यादव ने दस जुलाई 2020 को करनाल में सोशल मीडिया पर 15 दिन का बैन लगा दिया था | बैन के विरोध में पत्रकार अनिल लांबा ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई और सीनियर अधिवक्ता अक्षय भान, वरिष्ठ अधिवक्ता वीरेंद्र सिंह राठौर और अधिवक्ता अमनदीप तलवार के माध्यम से इस तालिबानी फ़रमान को चुनौती दी |
पत्रकारिता को बैन करने का यह मामला पहला नहीं है | आपातकाल के दौरान मीडिया पर सबसे बड़ा बैन लगाया गया था | इस ऐतिहासिक फैसले के बाद सभी जिला करनाल के पत्रकार अपनी अपनी गतिविधियाँ दुबारा से सोशल मीडिया न्यूज़ चैनलों पर शुरू कर सकते हैं | जब भी बात लोकतंत्र के निहित स्तंभों की होती है तो “मीडिया” का नाम अवश्य आता है। मीडिया की आवाज़ बंद करने का हक़ सरकार के पास तब तक नहीं है जब तक वे समाज के हित में काम न कर के गलत काम कर रहे हों |
यह कुछ बातें – हमारे जेब से जब भी क़लम निकलता है, सिया शब के याज़ीदों का दम निकलता है |