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किससे बनता है कैप्सूल का ऊपरी हिस्सा, जानकर बहुत से लोग कैप्सूल खाना छोड़ देंगे

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किससे बनता है कैप्सूल का ऊपरी हिस्सा, जानकर बहुत से लोग कैप्सूल खाना छोड़ देंगे :- मैं दवाई खाने में बड़ा कच्चा रहा हूं हमेशा. गोली खाने में अड़ जाता था. लेकिन मेरी मम्मी कभी हार नहीं मानती थीं. कभी गोली के दो टुकड़े कर के खिलातीं, कभी गोली को पीस कर चम्मच में घोल के.

एक हाथ से मेरी नाक बंद करती थीं, दूसरे से मेरे मुंह में चम्मच घुसेड़ देती थीं. जो गोली कुछ कड़वी लगनी होती, वो घुल कर गले से उतरते हुए पूरा मुंह बेस्वाद करती जाती थी. इसलिए मैं हमेशा मनाता था कि डॉक्टर दवा लिखे, तो कैप्सूल वाली लिख दे. वो निगली भी आसानी से जा सकती है और कड़वी भी नहीं होती.

लेकिन अपनी फेवरेट गोली को लेकर मेरे मन में हमेशा सवाल रहता कि ये प्लास्टिक जैसा है क्या. और अगर प्लास्टिक है तो शरीर के अंदर घुलता कैसे है. यही आपमें से कई लोगों का डाउट होगा. तो आज इस ‘प्लास्टिक’ के बारे में जानेंगे जो शरीर में घुल जाता है और तबीयत भी ठीक हो जाती है.

faceless woman with pill in teeth and nose piercing
Photo by lilartsy on Pexels.com

कैप्सूल – जिसका आपके ठीक होने में अपना कोई रोल नहीं होता

कैप्सूल अपने आप में दवा नहीं होती. ये एक तरह की डिब्बी है. दवा अंदर होती है. इतना आप जानते ही हैं. अब जानिए कैप्सूल माने कि उस दवा के ऊपर वाला छिलका किससे बनता है:

सॉफ्ट कैप्सूल : नाम की तरह ही ये सॉफ्ट होती है. हाथ से दबाएंगे तो दबने लगती है. ये एक तरह का जेल (वो जेल नहीं, जिसमें कैदी रहते हैं, बल्कि जेल पेन टाइप का जेल) होता है. दवा इस जेल के लेयर के अंदर होती है. ये जेल कई तरह से बन सकता है, लेकिन आमतौर पर कॉड लिवर ऑयल इस्तेमाल होता है. कॉड मछली की एक प्रजाति है, तो कॉड लिवर ऑयल हुआ मच्छी का तेल.

crop nurse demonstrating small double colored pill
Photo by Artem Podrez on Pexels.com

हार्ड जिलेटिन कैप्सूलः यही वो कैप्सूल है, जो लोगों को कंफ्यूज़ करता है कि प्लास्टिक खा रहे हैं. इस कैप्सूल में लगने वाला मैटेरियल जिलेटिन होता है. ये एक तरह का पॉलिमर ही है, लेकिन प्लास्टिक से अलग (इसलिए प्लास्टिक जैसा लगता भी है.) जिलेटिन एक तरह का प्रोटीन होता है.

वही प्रोटीन जो आपके शरीर में भी है. अब आपके शरीर से निकला प्रोटीन तो कैप्सूल बनाने के लिए इस्तेमाल किया नहीं जा सकता. तो कैप्सूल में काम आने वाला प्रोटीन जानवरों के शरीर से निकाला जाता है. मरने के बाद जानवरों की हड्डियों और चमड़ी को डीहाइड्रेट करने पर जिलेटिन मिलता है.

सॉफ्ट जिलेटिन कैप्सूलः ये वो सॉफ्ट कैप्सूल होते हैं, जिनमें जेल के लिए जिलेटिन का इस्तेमाल होता है.

white medicine capsule in close up photography
Photo by Anna Shvets on Pexels.com

मीट और बीफ के कारखानों में हड्डियां और चमड़ी एक बाय-प्रॉडक्ट के तौर पर निकलती हैं. इसलिए जिलेटिन के लिए कच्चा माल आसानी से मिल जाता है और ये सस्ता होता है.

कैप्सूल का सबसे आम फायदा तो उसे खाने में होने वाली आसानी ही है. दूसरा फायदा ये है कि एक कवच में बंद रहने से दवा की शुद्धता बनी रहती है. दुनिया भर में कैप्सूल की लोकप्रियता लगातार बढ़ी है.

वेज

हार्ड जिलेटिन कैप्सूल पूरी तरह से सुरक्षित होता है. लेकिन कुछ वैज्ञानिक ऐसा मानते हैं कि एनिमल प्रोटीन होने की वजह से कैप्सूल उतना स्टेबल नहीं रहता. इसकी जगह HPMC (hydroxyl propyl methyl cellulose) को इस्तेमाल किया जा सकता है.

ये सेल्यूलोस पेड़-पौधों में पाया जाता है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि ये कौड़ियों के भाव मिलता है. HPMC कैप्सूल जिलेटिन वाले कैप्सूल के मुकाबले 2 से 3 गुना महंगा होता है. इन्हें बनाने की तकनीक सबके पास नहीं है और फिलहाल इनका बड़े पैमाने पर निर्माण शुरू ही हुआ है.

black woman in blue patient gown taking pills
Photo by Klaus Nielsen on Pexels.com

तो क्या कैप्सूल में वेज-नॉन वेज की बहस है?

कैप्सूल में लगने वाले कच्चे माल के आधार पर इस तरह की छवि बनती है कि एक तरह का नॉन-वेज हुआ और दूसरा वेज. लेकिन ये पूरी तरह सही नहीं है. अव्वल तो HPMC कैप्सूल सेल्यूलोस पड़ने के बावजूद एक सिंथेटिक मैटेरियल है, इसलिए उसे वेजिटेरियन कहना पूरी तरह से सही नहीं होता, कम से कम उन अर्थों में जिनमें हम खाने-पीने की चीज़ों को वेजिटेरियन मानते हैं. तो आप जिलेटिन को ‘नॉन-वेज’ कहने की लाख ज़िद कर लें, आपके पास उसका ‘वेज’ पर्याय नहीं है.

इंडियन एक्सप्रेस की रपट के मुताबिक पिछले साल भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक सुझाव दिया था कि HPMC कैप्सूल के पत्तों पर ‘वेजिटेरियन’ दर्शाने वाला हरा डॉट लगाया जाए. लेकिन ड्रग टेक्निकल एडवाइज़री बोर्ड ने इसे गैरज़रूरी माना. बोर्ड की राय में दवाइयों को वेज-नॉनवेज में बांटना ठीक नहीं समझा गया.

किससे बनता है कैप्सूल का ऊपरी हिस्सा, जानकर बहुत से लोग कैप्सूल खाना छोड़ देंगे
Photo by Karolina Grabowska on Pexels.com

सॉफ्ट जिलेटिन कैप्सूल

फिर भी केंद्र में महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी भारत में HPMC कैप्सूल का इस्तेमाल बढ़ाने के लिए लगातार स्वास्थ्य मंत्रालय को लिखती रही हैं. सरकार इस पर एक्शन भी ले रही है और आने वाले समय में हो सकता है कि भारत में सभी कैप्सूल ‘वेजिटेरियन’ हो जाएं.

इस पर माथा-पच्ची करने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक एक्सपर्ट कमिटी बना भी दी है. अंतिम फैसले में अभी वक्त है. यदि HPMC कैप्सूल का बड़े इस्तेमाल होना भी हुआ, तो उसके लिए नियम बनाने होंगे और उन्हें इंडियन फार्मोकॉपी (भारत में दवाओं से संबंधित नियम) में शामिल करना होगा.

एक मुद्दा ये भी होगा कि HPMC के चलते बढ़ने वाली दवाओं की कीमत अदा किस के हिस्से से होगी – निर्माता या उपभोक्ता.इस सब में बस एक चीज़ का खतरा है. वो ये कि वेज-नॉनवेज की बहस भारत में बहुत जल्दी असल संदर्भ खो देती है. बात कहीं से कहीं निकल जाती है. मरीज़ों की सेहत से जुड़े इस मामले में ऐसा न हो तो बेहतर है. दवाओं को दवा ही रहने देना बेहतर है. चाहे उनमें जो भी पड़ता हो. Source – The Lallantop

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