बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई बैठक में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नई शिक्षा नीति को मंजूरी दे दी गयी है ।
बता दे की इसके साथ ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलते हुए शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इस फैसले को बेहद अहम बताते हुए कहा है कि 34 साल से शिक्षा नीति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ था।
उन्होंने उम्मीद जताई कि देशवासी इसका स्वागत करेंगे। बैठक के बाद उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे और स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता सचिव अनिता करवल ने प्रेस वार्ता के दौरान एक प्रस्तुति दी जिसमें नई शिक्षा नीति के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई।
आपको बता दें कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने नई शिक्षा नीति में 10+2 के फार्मेट को पूरी तरह खत्म कर दिया है।
जानिए क्या खास है नई शिक्षा नीति
• नई शिक्षा नीति के अनुसार बोर्ड परीक्षाएं जानकारी के अनुप्रयोग पर आधारित होंगी, यानि अधिक व्यावहारिक होंगी।
• बोर्ड परीक्षा को दो भागों में बांटा जा सकता है जो वस्तुनिष्ठ और विषय आधारित हो सकते हैं।
• नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत एमफिल पाठ्यक्रमों को बंद किया जाएगा।
• मल्टीपल एंट्री और एग्जिट व्यवस्था (बहु स्तरीय प्रवेश एवं निकासी) में पहले साल के बाद सर्टिफिकेट, दूसरे साल के बाद डिप्लोमा और तीन-चार साल बाद डिग्री दी जाएगी।
• देश में उच्च शिक्षा के लिए एक ही नियामक होगा। इसमें अनुमति और वित्त के लिए अलग-अलग प्रावधान होंगे।
• उच्च शिक्षा में प्रमुख सुधारों में 2035 तक 50 फीसदी सकल नामांकन अनुपात का लक्ष्य और एक से ज्यादा प्रवेश/निकास का प्रावधान शामिल है।
यह नियामक ‘ऑनलाइन सेल्फ डिस्क्लोजर बेस्ड ट्रांसपेरेंट सिस्टम’ पर काम करेगा।
• विधि (कानून) और चिकित्सा कॉलेजों को छोड़कर सभी उच्च शिक्षण संस्थान एक ही नियामक द्वारा संचालित होंगे। निजी और सार्वजनिक उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए साझा नियम होंगे।
• चार साल का डिग्री प्रोग्राम फिर एमए और उसके बाद बिना एमफिल के सीधा पीएचडी कर सकते हैं।
• लक्ष्य निर्धारित किया गया है कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का छह फीसदी शिक्षा में लगाया जाए जो अभी 4.43 फीसदी है।
• इसके तहत सरकार ने शिक्षा व्यवस्था को कुल चार हिस्से में बांट दिया है। इन चार हिस्सों को 5+3+3+4 फार्मेट में ढाला गया है।
• जो छात्र शोध के क्षेत्र में जाना चाहते हैं उनके लिए चार साल का डिग्री प्रोग्राम होगा, जबकि जो लोग नौकरी में जाना चाहते हैं वो तीन साल का ही डिग्री प्रोग्राम करेंगे।
• राष्ट्रीय शोध फाउंडेशन में विज्ञान के साथ सामाजिक विज्ञान भी शामिल होगा।
• हिंदी और अंग्रेजी भाषा के अलावा आठ क्षेत्रीय भाषाओं में भी ई-कोर्स होगा। वर्चुअल लैब के कार्यक्रम को आगे बढ़ाया जाएगा।
• शिक्षा (टीचिंग, लर्निंग और एसेसमेंट) में तकनीकी को बढ़ावा दिया जाएगा। तकनीकी के माध्यम से दिव्यांगजनों में शिक्षा को बढ़ावा दिया जाएगा।
• शिक्षा का माध्यम पांचवी कक्षा तक मातृभाषा, क्षेत्रीय भाषा या घर की भाषा में होगा।
• बच्चों के रिपोर्ट कार्ड के स्वरूप मे बदलाव करते हुए समग्र मूल्यांकन पर आधारित रिपोर्ट कार्ड की बात कही गई है।
• हर कक्षा में जीवन कौशल परखने पर जोर होगा ताकि जब बच्चा 12वीं कक्षा से निकलेगा तो उसके पास बेहतर कौशल होगा।
विश्वविद्यालयों को मिलेगी आजादी
उच्च शिक्षा की एक बड़ी कमी थी ढेर सारी संस्थाओं के हाथ में नियंत्रण. इस नियंत्रण के कारण विश्वविद्यालयों को आजादी नहीं मिल पाती थी UGC के नियम, AICTE के निर्देश, तालमेल बिठाते-बिठाते शिक्षण संस्थान परेशान हो जाते थे।
लेकिन अब एक संस्थान के हाथ में संचालन आने से सुविधा होगी और विश्वविद्यालय क्रिएटिव हो पाएंगे, प्रयोग कर पाएंगे. अलग -अलग बोर्ड के बच्चों को दाखिले में दिक्कत होती थी. कॉलेजों को कटऑफ निकालने में दिक्कत होती थी. अब कॉमन एंट्रेंस से ये दिक्कतें खत्म होंगी |
कई वर्षो पहले ही तैयार कर ली गई थी शिक्षा नीति
आपको बता दे की, 1986 में तैयार कर ली गयी थी शिक्षा नीति वर्तमान में हमारे देश में जो शिक्षा नीति लागू है वह साल 1986 में तैयार की गई थी। इसे 1992 में संशोधित किया गया था। नयी शिक्षा नीति लाने का मुद्दा साल 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में शामिल था।
इसका मसौदा तैयार करने वाले विशेषज्ञों ने पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रमण्यम के नेतृत्व वाली समिति द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट पर भी विचार किया।
Written by- Prashant K Sonni
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