संस्कृत दिवस भारत में प्रतिवर्ष ‘श्रावणी पूर्णिमा’ के दिन मनाया जाता है। श्रावणी पूर्णिमा अर्थात् रक्षा बन्धन ऋषियों के स्मरण तथा पूजा और समर्पण का पर्व माना जाता है। ऋषि ही संस्कृत साहित्य के आदि स्रोत हैं,
इसलिए श्रावणी पूर्णिमा को “ऋषि पर्व” और “संस्कृत दिवस” के रूप में मनाया जाता है। संस्कृत दिवस संस्कृत भाषा के प्राचीनतम भाषा होने की वजह से मनाया जाता है। सौंदर्य और रसों से भरी इस भाषा को सम्मान देने के लिए यह दिवस मनाते हैं।
देव भाषा संस्कृत लगभग सभी वेद – पुराणों की भाषा है। इसलिए इस भाषा के प्रति लोग पूजनीय भाव रखते हैं।
सावन पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला संस्कृत दिवस अपने आप में अनूठा है। क्योकि इस प्रकार किसी अन्य प्राचीन भाषा को राष्ट्रीय स्तर पर नहीं मनाया जाता है। इस दिन ऋषियो-मुनियों को याद किया जाता है। साथ ही उनका पूजन भी किया जाता है। मानते हैं कि संस्कृत साहित्य के मुख्य स्रोत यह ऋषि ही हैं। इसी मूल भाषा के कई अन्य भाषाओं का जन्म हुआ है।
राज्य तथा ज़िला स्तरों पर संस्कृत दिवस आयोजित किए जाते हैं। इस अवसर पर संस्कृत कवि सम्मेलन, लेखक गोष्ठी, छात्रों की भाषण तथा श्लोकोच्चारण प्रतियोगिता आदि का आयोजन किया जाता है, जिसके माध्यम से संस्कृत के विद्यार्थियों, कवियों तथा लेखकों को उचित मंच प्राप्त होता है।
उद्देश्य : देव भाषा का दर्जा रखने वाली संस्कृत भाषा अब अपना वजूद खोती जा रही है। भारत में भी अब इसको पढ़ने, लिखने और समझने वालों की संख्या बहुत कम है। समाज को संस्कृत की महत्ता और आवश्यकता याद दिलाने के लिए संस्कृत दिवस मनाया जाता है। ताकि समय के आगे बढ़ने के साथ लोग यह भूल न जाएं कि संस्कृत भी एक भाषा है। आजकल लोग विदेशी भाषाओं को सीखने में रूचि रखते हैं। लेकिन स्वयं अपने देश की भाषा से अंजान हैं।
महत्व : संस्कृत केवल एक भाषा नहीं बल्कि एक संस्कृत्ति है जिसे संजोने की जरुरत है। इसलिए यह बहुत जरुरी है कि साल में एक दिन हर भारतीय को यह याद दिलाया जाए कि उसके अपने देश की भाषा कहीं पीछे छूटती जा रही है। संस्कृत के लोग इसलिए भी कम समझते हैं क्योंकि इसे लोगों ने भारत में अंग्रेजी भाषा जैसा स्थान नहीं दिया है।
उन्हें लगता है यह बोलते हुए कोई उन्हें इतना शिक्षित नहीं समझेगा जितना अंग्रेजी बोलते में उन्हें समझदार समझा जाएगा। इसलिए आज के समय में संस्कृत दिवस का महत्व बहुत अधिक है। ताकि संस्कृत अपनी खोई हुई पहचान को फिर से पा सके।
शुरुआत
सन 1969 में भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के आदेश से केन्द्रीय तथा राज्य स्तर पर संस्कृत दिवस मनाने का निर्देश जारी किया गया था। तब से संपूर्ण भारत में संस्कृत दिवस श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस दिन को इसीलिए चुना गया था कि इसी दिन प्राचीन भारत में शिक्षण सत्र शुरू होता था।
इसी दिन वेद पाठ का आरंभ होता था तथा इसी दिन छात्र शास्त्रों के अध्ययन का प्रारंभ किया करते थे। पौष माह की पूर्णिमा से श्रावण माह की पूर्णिमा तक अध्ययन बन्द हो जाता था। प्राचीन काल में फिर से श्रावण पूर्णिमा से पौष पूर्णिमा तक अध्ययन चलता था,
इसीलिए इस दिन को संस्कृत दिवस के रूप से मनाया जाता है। आजकल देश में ही नहीं, विदेश में भी संस्कृत उत्सव बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इसमें केन्द्र तथा राज्य सरकारों का भी योगदान उल्लेखनीय है