पूरी दुनिया की खूबसूरती को एक तस्वीर में कैद करने वाले फोटोग्राफर्स को बहुत साड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इंसान कब जाने अनजाने में गलती करदेता है उसे इस बात का इल्म भी नहीं होता। आगे बड़ने और जीवन में उचाईयों को हासिल करने के चक्कर में हम कभी कबार बहुत बड़ी भूल कर बैठते हैं जिसका खामियाज़ा हमे बाद में भुगतना पड़ता है। उन गलतियों के चलते मनुष्य का मन विचलित रहता है और फिर अवसाद की स्थिति उत्पन्न होती है।
अवसाद के चलते इंसान को घुटन महसूस होती है और मुक्ति के लिए वह आत्मदाह जैसा भयावह कदम उठाने पर मजबूर हो जाता है। ऐसा ही कुछ हुआ था साउथ अफ्रीकन मूल के फोटो जर्नलिस्ट केविन कार्टर के साथ। अपने करियर की सबसे चरचित तस्वीर के लिए सम्मान पाने के बाद वह मानसिक तनाव के शिकार हो गए और आत्म हत्या जैसा कदम उठा लिया।
26 मार्च 1993 में अमेरिका के बहुचर्चित अखबार द न्यूयॉर्क टाइम्स में कार्टर द्वारा खींची गई द वल्चर एंड द लिटिल गर्ल नमक तस्वीर छपी थी। तस्वीर में एक गिद्ध भूख से मर रही एक छोटी लड़की के मरने का इंतज़ार कर रहा है। कार्टर ने इस तस्वीर को 1993 में सूडान अकाल के दौरान खींचा था जिसके लिए उन्हें पुलित्जर पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। लेकिन कार्टर इस सम्मान का आनंद ज्यादा दिन उठा पाए। कुछ महीनों के बाद 33 वर्ष की आयु में उन्होंने अवसाद से आत्महत्या कर ली थी।
अपने करियर के शिखर पर पहुंचकर केविन बहुत खुश थे। बहुत सारे नेशनल टीवी चैनल्स और मीडिया हाउस उनकी इस उपलब्धि को प्रसारित कर रहे थे। पर ज्यादा लोग नहीं जानते कि कार्टर को एक इंटरव्यू की वजह से मानसिक तनाव का सामना करना पड़ा। जिससे मुक्ति पाने के लिए उन्होंने आत्महत्या जैसा कदम उठाया। एक फोन इंटरव्यू के दौरान कार्टर का अवसाद शुरू हुआ जब किसी ने उनसे पुछा की उस लड़की का क्या हुआ ?
कार्टर ने जवाब दिया कि वह देखने के लिए रुके नहीं क्यों कि उन्हें फ्लाइट पकड़नी थी। जवाब सुनने के बाद पत्रकार ने कार्टर से कुछ ऐसा कहा कि उसका कथन सुन कार्टर विचलित हो गए। उस व्यक्ति ने कहा कि उस दिन वहां एक नहीं दो गिद्ध थे जिसमें एक के हाथ में कैमरा था। इस कथन के भाव ने कार्टर को इतना बेचैन कर दिया कि वे अवसाद में चले गये और अंत में आत्महत्या कर ली। पत्रकार ने कहा कि किसी भी स्थिति में कुछ हासिल करने से पहले मानवता आनी चाहिए। अगर वे उस बच्ची को यूनाईटेड नेशन्स के फीडिंग सेंटर तक पहुँचा देते तो आज शायद वह ज़िंदा होती, बेशक कार्टर को पुरस्कार न मिल पाता पर वो ज़िंदा होते अपनी नज़रो में भी और दुनिया में भी।
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