रेल नंबर 653 के साथ घटी थी ऐसी घटना जिसको जानकर कांप उठेगी आपकी रूह :- 22 दिसंबर 1964 को इस रेलगाड़ी में हुई रूह कंपाने वाली घटना, दरअसल ये ऐसी घटना है जिसे सुनकर और जानकर आज भी दिल दहल जाता है। वैसे तो लोग रेलगाड़ी में सफर खूब करते हैं, लेकिन जब इस तरह की ख़बरें निकलकर सामने आती हैं तो मन को विचलित कर देती हैं।
कई लोग तो घटनाओं के डर की वजह से ही इस तरह के सफर नहीं कर पाते हैं क्योंकि उनके मन में ऐसी दर्दनाक घटनाएं घर कर जाती हैं। कहने को तो साल 1964 से लेकर अब तक बहुत लंबा समय बीत चुका है, लेकिन आज भी जब इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति होती है तो मन संकोच करने लगता है।
जो लोग इस घटना को अपनी आंखों से देख चुके थे, उनके मन में आज भी मंज़र को सोचकर भारी तनाव हो उठता है। चलिए अब आपको तफसील से बताते है कि 22 दिसंबर 1964 को आखिर हुआ क्या था। वैसे तो आपने भी ट्रेनों में बहुत सफर किया होगा, लेकिन शायद ऐसा मंज़र आपको नहीं देखने को मिला होगा और कुदरत करे कि आपको कभी भी ऐसी परिस्थिति का सामना भी ना करना पड़े जो 1964 को 22 दिसंबर के दिन घटी थी।
दरअसल इतिहास में कई ऐसी घटनाएं घटी हैं, जिन्हें सुनकर रूह कांप जाती है। इन घटनाओं में एक घटना 22 दिसंबर 1964 को घटी, जब भारत के रामेश्वरम द्वीप के किनारे धनुषकोडी में भीषण चक्रवात आया। इस चक्रवात में ट्रेन नंबर 653 बह गई, जिससे 115 लोगों की मौत हो गई।
धनुषकोडी भारत के तमिलनाडु राज्य के पूर्वी तट पर स्थित है। उस समय इस जगह की खूबसूरती देखने लायक थी, लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था। जब कुदरत के कहर से ये खूबसूरत जगह वीरान हो गई। उस समय पंबन और धनुषकोडी के बीच एक रेल लाइन थी जो चक्रवात की वजह से नेस्तनाबूत हो गई।
इस चक्रवात के बारे में ऐसा कहा जाता है कि 17 दिसंबर 1964 को अंडमान समुद्र में एक दवाब बना जो 19 दिसंबर को चक्रवात का रूप ले लिया। इसके बाद 21 दिसंबर को इस चक्रवात की गति 250 से 350 मील प्रति घंटे हो गई जो एक सीध में पश्चिम की ओर बढ़ने लगा।
22-23 दिसम्बर की आधी रात को यह धनुषकोडी से टकराया। उस समय समुद्र में लहरें तकरीबन 24 फुट ऊंचा था। उस रात रात 11 बजकर 55 मिनट पर ट्रेन नंबर 653 पंबन रेलवे स्टेशन पर पहुंची। उस समय किसी को खबर नहीं थी कि 22 दिसंबर की रात उनकी आखिरी रात है।
जब पंबन से ट्रेन 115 लोगों को लेकर आगे बढ़ी तो रास्ते में ही चक्रवात ने तांडव मचाना शुरू कर दिया। इसके बाद जब ट्रेन से 200 या 300 यार्ड्स पीछे थी। उस समय ट्रेन ड्राइवर ने चक्रवात से ट्रेन को बचाने की पूरी कोशिश की, लेकिन वह इसमें सफल नहीं हो पाया।
तभी समुद्र की लहरें ट्रेन से टकराई और ट्रेन को दूर बहा ले गई। ऐसा माना जाता है कि उस समय चक्रवात की गति 250 से 350 मील प्रति घंटे थी। इस चक्रवात की चपेट में आने से ट्रेन में मौजूद सभी 115 लोगों की मौत हो गई। जबकि इस चक्रवात से 1800 लोगों की मौत हुई थी।
यानि इस भयंकर मंज़र ने आपने लिए ऐसे निशान भी नहीं छोड़े जोकि इन हालातों की गवाही दे सकते। ये चक्रवात इतना भीषण था कि सबकुछ अपनी चपेट में लेकर सिर्फ सर्वनाश करने की दिशा में ही आगे बढ़ता रहा।
आज भी इस भीषण तबाही के निशान इतिहास के पन्नों में मिल जाएंगे तो उस वक्त की इस काली रात की वीरानी की कहानी कहते हैं। लेकिन कहा जाता है कि प्रकृति से आप बहुत कुछ ले सकते हैं लेकिन जब प्रकृति लेने पर आती है तो सब-कुछ ले लेती है, कुछ भी नहीं छोड़ती।
दरअसल इस घटना में हुआ भी कुछ ऐसा ही था जिसने उस समय कोहराम मचा दिया था और ट्रेन नंबर 653 में कुल कुल 115 लोग थे, वो सभी के सभी काल के गाल में समा गए। अब हम उम्मीद यही करते हैं कि भविष्य ऐसी कोई भी घटना ना दोहराए, क्योंकि इसी में हमारी, आपकी और हम सबकी भलाई है।