बिजली निजीकरण के खिलाफ उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारियों एवं इंजीनियर की चल रही हड़ताल के समर्थन में सोमवार को बिजली कर्मचारियों ने सब डिवीजन स्तर पर विरोध प्रर्दशन किया और आंदोलन को प्रति एकजुटता प्रकट की।
प्रर्दशन में चेतावनी दी कि अगर योगी आदित्यनाथ सरकार ने बातचीत की बजाय कोई दमनात्मक कार्रवाई करके आंदोलन को कुचलने का प्रयास किया तो बिजली व अन्य विभागों के कर्मचारी इसका मुंहतोड़ जवाब देंगे।
प्रदर्शनों का नेतृत्व यूनियन के वरिष्ठ पदाधिकारी सुभाष लांबा, सतपाल नरवत, शब्बीर अहमद गनी, रामचरण पुष्कर, भूप सिंह कौशिक,गिरीश कुमार राजपूत,सुरेन्द्र शर्मा, नरेंद्र बैनीवाल, रमेश तेवतिया, कृष्ण कुमार, धर्मेन्द्र तेवतिया, सतबीर, अजय मल्होत्रा, मनदीप कौशिक, बलराम शर्मा, अशरफ़ खान, दीपक हुड्डा, शैलेन्द्र आदि कर रहे थे। प्रदर्शनों के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन उप मंडल अधिकारियों को सौंपे गए और मेल भी किए गए।
प्रर्दशनकारी कर्मचारियों को इंडस्ट्रीयल एरिया सब डिवीजन में संबंधित करते हुए नेशनल कोआर्डिनेशन कमेटी आफ इलैक्ट्रीसिटी इंप्लाईज एंड इंजीनियर (एनसीसीओईईई) के प्रदेश संयोजक व इलैक्ट्रीसिटी इंप्लाइज फैडरेशन ऑफ इंडिया (ईईएफआई) के उपाध्यक्ष सुभाष लांबा ने कहा कि पिछले एक महीने से उत्तर प्रदेश के 18 संगठनों की गठित विधुत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, पूर्वांचल निगम की बिजली वितरण प्रणाली को निजी हाथों में सौंपने का तर्कों के साथ विरोध कर रहे हैं। लेकिन यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ आंदोलनरत संघर्ष समिति से बातचीत तक करने को तैयार नहीं है।
इसलिए मजबूरीवश संघर्ष समिति ने सोमवार 5 अक्टूबर से अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार पर जाने पर मजबूर होना पड़ा है। उन्होंने बताया कि योगी सरकार एवं ऊर्जा मंत्री मामले में हस्तक्षेप कर निजीकरण के प्रस्ताव को वापस लेकर आंदोलन को खत्म करवाने की बजाय कार्य बहिष्कार में शामिल कर्मचारियों एवं इंजीनियर को गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी देकर आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि बिजली संशोधन बिल 2020 अभी संसद से पारित नही हुआ है, लेकिन इससे पहले भी भाजपा शासित राज्य सरकारों और केन्द्र शासित प्रदेशों की बिजली वितरण प्रणाली को निजी हाथों में सौंपने का काम तेज कर दिया है।
उन्होंने कहा कि बिजली वितरण के निजीकरण का फैसला राष्ट्र, उपभोक्ताओं, किसानों, बिजली कर्मचारियों व इंजीनियर के पूरी तरह खिलाफ है और पूंजीपतियों के फायदे में है। निजीकरण के बाद बिजली किसानों व गरीब उपभोक्ताओं की पहुंच से दूर हो जाएगी। इसलिए यूपी के कर्मचारी एवं इंजीनियर मिलकर संघर्ष कर रहे हैं और किसानों व मजदूरों के संगठनों ने भी आंदोलन के समर्थन का ऐलान किया है।