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जानिए कहा है ऐसा मंदिर जहा होती है कुत्ते की पूजा, मान्यता ऐसा करने से कुत्ते काटने का खतरा नही होता

आपने मंदिर में देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना जरूर की होगी और ये कोई नई बात नहीं है मंदिर में भगवानों की मूर्तियों की ही पूजा होती है। लेकिन आपको कह दिया जाए कि मंदिर भगवान के साथ साथ कुत्ते की भी पूजा की जा रही हैं तो आप क्या कहेंगे, जी हां क्या आपने आज तक किसी ऐसे मंदिर के बारे में सुना है, जिसमें कुत्ते की पूजा की जाती है अब आप ये सुनकर हैरान मत होइए क्योंकि ये बिल्कुल पक्की खबर है। दरअसल यह अनोखा मंदिर और कही नहीं बल्कि भारत में ही मौजूद है।

इस मंदिर को कुकुरदेव मंदिर के नाम से जाना जाता है और यह छत्तीसगढ़ में स्थित है। इस मंदिर से जुड़ी मान्यताएं और इसके बनने की वजह जानकर आप हैरान रह जाएंगे।

आपको बता दे कि कुकुरदेव मंदिर छत्तीसगढ़ के रायपुर से करीब 132 किलोमीटर दूर दुर्ग जिले के खपरी गांव में स्थित है। इस मंदिर के गर्भगृह में कुत्ते की प्रतिमा स्थापित है, जबकि उसके बगल में एक शिवलिंग भी है। सावन के महीने में इस मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या काफी बढ़ जाती है।

लोग शिव जी के साथ-साथ कुत्ते (कुकुरदेव) की भी वैसे ही पूजा करते हैं जैसे शिवमंदिरों में नंदी की पूजा होती है। मान्यता है कि सदियों पहले एक बंजारा अपने परिवार के साथ इस गांव में आया. बंजारे का नाम था मालीघोरी. उनके पास एक पालतू कुत्ता था. अकाल पड़ने के कारण बंजारे को कुत्ते को साहूकार के पास गिरवी रखना पड़ा। साहूकार के घर चोरी हो गई।

कुत्ते ने चोरों को साहूकार के घर से चोरी का माल तालाब में छुपाते देखा। फिर कुत्ता साहूकार को चोरी का सामान छुपाए स्थान पर ले गया। साहूकार को चोरी का सामान मिल गया। कुत्ते की वफादारी देख सब उसकी तारीफ करते है। वहीं ये देख साहूकार ने कुत्ते को बंजारे के पास वापस भेज दिया और उसके साथ गले चिट्ठी लिख भेज दिया।

जब कुत्ता बंजारे के पास पहुंचा तो बंजारे को लगा कि कुत्ता साहूकार के पास से भाग कर वापस आ गया है ऐसे में उसे गुस्सा आ गया और वो गुस्से में कुत्ते को मारने लगा, उसे इतना मारा कि वो मर गया। जब बंजारा शांत हुआ तो उसके गले में लटके चिट्ठी को देखा और चिट्ठी को देखते ही वो हैरान रह गया।

फिर उसे पछतावा हुआ कि उसने कुत्ते को क्यों मारा। इसके बाद उसने उसी जगह कुत्ते को दफना दिया और स्मारक बनवा दिया। जिसके बाद लोगों ने उसे मंदिर का रूप दे दिया और पूजने लगे।

Avinash Kumar Singh

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