इस महिला सपरपंच ने कर दिया कमाल, गांव के किसान खोद रहे हैं सोना हो गए हैं मालामाल

0
352

हरियाणा की मनोहर लाल सरकार पार्ट-1 में तय हुआ था कि गांव की सरकार का मुखिया यानी सरपंच पढ़ा-लिखा होना चाहिए। साथ ही सरपंच प्रतिनिधि जैसे शब्द को समाप्त करते हुए महिला जनप्रतिनिधि को मूल अधिकार नवाजे गए।

पांच वर्ष पूर्व हुए ऐसे निर्णय आज धरातल पर विकास के रुप में नजर आ रहे हैं। गांव बनवाला की सरपंच सुमन देवी कासनियां ने कमाल कर दिखाया है।

इस महिला सपरपंच ने कर दिया कमाल, गांव के किसान खोद रहे हैं सोना हो गए हैं मालामाल

उन्होंने न सिर्फ गांव की पंचायत को आत्मनिर्भर बना दिया पर साथ ही साथ उन्होंने गांव की बरसो से चली आ रही परेशानी का भी निवारण कर दिया है। सुमन द्वारा किए गए विकास कार्य से 40 परिवार लाभान्वित हुए हैं।

इस महिला सपरपंच ने कर दिया कमाल, गांव के किसान खोद रहे हैं सोना हो गए हैं मालामाल

जिन परिवारों के पास पंचायत की 108 एकड़ जमीन को जोतने के अलावा कमाई का जरिया नहीं था सुमन ने उनके फायदे में मुनाफा कर दिया है। साल 2016 में सरपंच बनी सुमन के सामने गांव में हो रही पानी की समस्या थी।

साल 2017 में पंचायती भूमि का ठेका लेने वाले परिवार सुमन के आगे अपनी परेशानी लेकर पहुंचे थे। परिवारों का कहना था कि सालों से वह ग्वार बाजरी की खेती करते आ रहे हैं। ऐसे में पानी की किल्लत ने उन्हें परेशान कर रखा है।

इस महिला सपरपंच ने कर दिया कमाल, गांव के किसान खोद रहे हैं सोना हो गए हैं मालामाल

खेत मे इतना पानी भी नहीं पहुंच पाता कि वह अपनी फसल बचा सके। सरपंच ने इस मुद्दे को लेकर अपने पति और गांव के अन्य लोगों से चर्चा की। चर्चा में यह बात सामने आई कि गांव का भूमिजल मीठा है जिसका उपयोग खेती के दौरान किया जा सकता है।

इस महिला सपरपंच ने कर दिया कमाल, गांव के किसान खोद रहे हैं सोना हो गए हैं मालामाल

साथ ही साथ अगर बोरवेल भी कर दिए जाएं तो बारिश के दिनों में ओवरफ्लो की समस्या से भी निजात पाई जा सकती है। इसके बाद सुमन ने जोहड़ किनारे दो सबमर्सिबल लगवाए। इससे पंचायती जमीन तक पानी पहुंचाया गया।

इससे पंचायती जमीन का ठेका लेने वाले किसानों को बहुत फायदा हुआ है। बीते तीन सालों में किसानों द्वारा गेंहू और कपास की खेती की है। इससे इन किसानों को काफी मुनाफा हुआ है।

9 लाख रुपये ठेके पर छूटने वाली जमीन के बदले अब पंचायत के खाते में साल के अंदर 30 लाख रुपये आने लगे। आत्मनिर्भर हुई पंचायत ने गांव के विकास के कपाट खोल दिए।