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आंदोलन में शामिल होने के लिए छोड़ दिया अपना परिवार, पति और बच्चों से ज्यादा जरूरी है किसानों की लड़ाई

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कृषि कानूनों को लेकर अन्नदाता इन दिनों सड़कों पर निकलकर प्रदर्शन कर रहे हैं। हर कोई सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों की अवहेलना कर रहा है। लोगों का कहना है कि मोदी सरकार किसानों का हित भूल चुकी है जिसके चलते इन कानूनों का गठन किया गया है।

किसान समुदाय सब कुछ त्याग कर लगातार गिरते पारे के बीच सड़कों पर खेमा डाले बैठा है। दिल्ली आगरा नेशनल हाईवे पर गाँव अटोहा के पास किसानों द्वारा विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। जहां यह प्रदर्शन पुरुष प्रधान नजर आ रहा है वहीं दूसरी ओर बुंदेलखंड से आई महिला किसान तारा देवी राजपूत ने अपने संकल्प से हर किसी के मुँह पर ताला मार दिया है।

आंदोलन में शामिल होने के लिए छोड़ दिया अपना परिवार, पति और बच्चों से ज्यादा जरूरी है किसानों की लड़ाई

आपको बता दें कि अटोहा के पास धरना दे रहे किसानों के बीच तारा देवी राजपूत अकेली महिला किसान हैं जो आंदोलन की शुरुआत से अभी तक अडिग हैं। वह अपने साथ प्रदर्शन कर रहे सभी किसान भाइयों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं।

आंदोलन में शामिल होने के लिए छोड़ दिया अपना परिवार, पति और बच्चों से ज्यादा जरूरी है किसानों की लड़ाई

जहां हर रोज महिलाएं आंदोलन में शामिल होती हैं और फिर वापस अपने घरों की ओर लौट जाती हैं उन सबके बीच तारा देवी ने अपने प्रयास से एक अलग पहचान बनाई है। वह न सिर्फ धरना दे रहे किसानों के साथ बैठती हैं पर पूर्ण रूप से अपनी मौजूदगी भी दर्ज करवाती हैं। बुंदेलखंड के महुआ जिले से ताल्लुख रखने वाली तारा देवी शाम तक धरने पर बैठी रहती हैं।

आंदोलन में शामिल होने के लिए छोड़ दिया अपना परिवार, पति और बच्चों से ज्यादा जरूरी है किसानों की लड़ाई

आंदोलन में हिस्सा लेने आए वक्ताओं की बातों को सुनती हैं और साथ ही पुरुषों के बीच वह अपने विचार भी साझा करती हैं। आपको बता दें कि तारा देवी पांचवी कक्षा तक पढ़ी हुई हैं पर उनका कहना है कि खेती करने के लिए उच्च तालीम की जरूरत नहीं होती। अपने खेत में काम करने वाला किसान अपना भला बुरा सब कुछ जानता समझता है।

आंदोलन में शामिल होने के लिए छोड़ दिया अपना परिवार, पति और बच्चों से ज्यादा जरूरी है किसानों की लड़ाई

तारा ने कहा कि सरकार का यह कहना कि किसानों को अपने नफ़ा नुक्सान के बारे में कोई ज्ञान नहीं है यह गलत है। तारा देवी राजपूत ने बताया कि वह जब अपने पति के साथ खेत में काम करती थीं तब उनको फसल की कीमत उतनी नहीं मिल पाती थी जिससे उनका गुजारा हो जाए।

न उनकी बचत हो पाती थी और ना ही बच्चों को अच्छी परवरिश मिल पा रही थी। ऐसे में 2014 के दौरान उन्होंने अपने परिवार से अनुमति लेकर किसानों के लिए काम करना शुरू किया और बुन्देलखंड किसान यूनियन से जुड़ गईं। वह तभी से किसानों के हक में लड़ाई लड़ रही हैं। वह अपनी मांगों को लेकर अडिग हैं और पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है।

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