हरियाणा के करनाल जिले में रत्तक नाम का एक गांव है। करीब तीन हजार की आबादी वाले इस गांव में ज्यादातर सिख समुदाय के लोग रहते हैं। खेती से ही इन लोगों की आजीविका चलती है। लिहाजा, गांव के तमाम लोग किसान आंदोलन में अपनी भागीदारी निभा रहे हैं।
रत्तक गांव के शरणजीत सिंह बताते हैं कि वह ट्रॉली में 70 हजार रुपए का पानी और करीब 20 हजार रुपए का दूसरा सामान। और दूसरी ट्रॉली में करीब 60-70 हजार रुपए का राशन है। ये दूसरी बार है जब हम लोग गांव से राशन लेकर आए हैं। इससे पहले 29 नवंबर को हम सामान लाए थे और यहां अलग-अलग लंगरों में बांट दिया था।’
रत्तक गांव के ही पंजाब सिंह बताते हैं कि हजारों किसान भाई जब सड़कों पर रुकने को मजबूर हुए, तो उनके खाने-पीने की व्यवस्था करना हमारी जिम्मेदारी थी। इसलिए हमने तय किया कि हमसे जितना हो सकेगा हम ये व्यवस्था करेंगे।’
पंजाब सिंह की पहल पर गांव की भागेदारी शुरू हुई। किसी ने आटा, किसी ने चावल तो किसी ने नकद मदद दी। देखते ही देखते एक छोटे-से गांव से दो ट्रैक्टर ट्रॉली में भरने लायक राशन जमा हो गया। गांव के ही गुरजिंदर सिंह और शरणजीत सिंह ने अपनी नई ट्रैक्टर-ट्रॉलियां ये राशन सिंघु बॉर्डर तक पहुंचाने के काम में लगा दी।
रत्तक गांव की यह कहानी सिर्फ एक उदाहरण भर है। ऐसे सैकड़ों गांव हरियाणा और पंजाब में हैं, जो बिलकुल इसी तरह आंदोलन को अपना समर्थन द रहे हैं और यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि आंदोलनकारियों को किसी भी चीज की कमी न हो।
यही कारण है कि सिंघु बॉर्डर पर सिर्फ भोजन ही नहीं बल्कि कई प्रकार के व्यंजन तक बनाए जा रहे हैं और राशन की कहीं कोई कमी नहीं है। रत्तक गांव के पंजाब सिंह कहते हैं, ‘जो लोग इस आंदोलन को बदनाम करने के लिए पूछ रहे हैं कि इतना राशन कहां से आ रहा है, उन्हें मेरे साथ मेरे गांव चलना चाहिए। ये आंदोलन इसीलिए मजबूत हैं क्योंकि इसमें हर घर की भागीदारी है।’