25 दिसंबर के दिन का हिन्दू धर्म में है बहुत बड़ा महत्व, आज के दिन मनाया जाता है यह त्यौहार

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हर साल 25 दिसंबर को गीता जयंती मनाई जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को गीता जयंती मनाई जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन महाभारत युद्ध से पहले अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश दिया था।

गीता महत्व हिंदू धर्म में बहुत अधिक है। आइए जानते हैं गीता जयंती क्यों मनाई जाती है और क्या है इसका महत्व।

क्यों मनाते हैं गीता जयंती:

25 दिसंबर के दिन का हिन्दू धर्म में है बहुत बड़ा महत्व, आज के दिन मनाया जाता है यह त्यौहार

गीता जयंती के पर्व पर हिंदू धर्म के महाग्रंथ गीता, भगवान श्रीकृष्ण और वेद व्यासजी का पूजन किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि दुनिया में किसी भी पवित्र ग्रंथ का जन्मदिन नहीं मनाया जाता है। लेकिन श्रीमद्भागवत गीता की जयंती मनाई जाती है। इसके पीछे का कारण यह बताया गया है कि अन्य ग्रंथ इंसानों द्वारा संकलित किए गए हैं लेकिन गीता का जन्म स्वयं भगवान श्री कृष्ण के मुंह से हुआ है।

गीता जयंती का महत्व:

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कुरुक्षेत्र में अर्जुन को श्रीकृष्ण ने ज्ञान का पाठ पढ़ाया था। कृष्ण जी ने उन्हें सही और गलत का अंतर भी बताया था। कृष्ण जी चाहते थे कि वो सही फैसला ले पाए और जीवन का सुदपयोग कर पाएं। जीवन जीने की अद्भुत कला गीता में वर्णित श्लोक में सीखाई गई है।

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हर परिस्थिति में धैर्य से काम लेना चाहिए यह गीता में ही सीखाया गया है। किस तरह हर परिस्थिति में धैर्य से काम लेना चाहिए यह सीखाया गया है। इसी के चलते आज भी हजार वर्षों से गीता जयंती प्रासंगिक है। इसके जरिए ही श्रीकृष्ण द्वारा कही गई गीता लोगों को अच्‍छे-बुरे कर्मों का फर्क समझाती है।  

गीता के उपदेश जो हैं महत्वपूर्ण है आपके जीवन के लिए:

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हमें बीते कल या फिर आने वाले कल की चिंता नहीं करनी चाहिए। आज में जीओ और आनंद लो। जो होता है वो अच्छा ही होता है। नाम, पद, प्रतिष्ठा, संप्रदाय, धर्म, स्त्री या पुरुष या फिर शरीर हम नहीं हैं। हमारा शरीर अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना हुआ होता है। मृत्यु के बाद इसी में हमें मिल जाना है। लेकिन आत्मा स्थिर होती है और हम आत्मा ही हैं।

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आत्मा कभी न मरती है, न इसका जन्म है और न मृत्यु! आत्मभाव में रहना ही मुक्ति है। खुद को भगवान में अर्पित करें। क्योंकि वहीं हमारी रक्षा करेंगे। भगवान ही हमें दुःख, भय, चिन्ता, शोक और बंधन से मुक्त कराएंगे। हमें हमारा नजरिया शुद्ध करना चाहिए।

अपना नजरिया बदलने के लिए हम सभी को ज्ञान व कर्म को एक रूप में ही देखना होगा। मन को शांत रखना बेहद जरूरी है। अनियंत्रित मन हमारा शत्रु बन जाता है। अशांत मन को शांत करने के लिए अभ्यास और वैराग्य को पक्का करना होगा।

Written by: Sonali Chauhan