एक तरफ जश्न का माहौल तो एक तरफ आंदोलन का

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    2020 जो यादें देकर गया है उसको भूलना इतना संभव नहीं। साल की शुरुवात की बात करें या आखिरी दौर की हर समय चिंता में लिपटा रहा भारत। नया साल आ गया है लेकिन अभी भी आंदोलन पुराने जारी हैं। एक तरफ राजनीति है तो एक तरफ किसानहित। एक तरफ नए साल का जश्न है तो एक तरफ आंदोलन। समझना कठिन है आखिर जाएँ तो जाएँ कहाँ।

    केंद्र सरकार द्वारा पारित किये गए 3 कृषि कानूनों को लेकर जिस तरह घमासान मचा है उसको शांत करना अभी सरकार के बस में नहीं लग रहा। देश की राजधानी की सीमाओं पर जारी किसान आंदोलन का सबसे बुरा असर देश के कारोबारियों पर पड़ा है।

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    देश की राजधानी इस समय अपंग बनी हुई है। किसान आंदोलन का 37 वां दिन है आज और इस दौरान दिल्ली तथा उससे सटे राज्यों खासकर उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब एवं राजस्थान को करीब 27 हजार करोड़ रुपए के व्यापार का नुकसान हो चुका है। लगातार नुक्सान हो रहा है लेकिन किसानों को आंदोलन करने से फुर्सत नहीं है।

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    सरकार बार – बार कह रही है कि कानून किसानों के पक्ष में है लेकिन किसान समझने को तैयार नहीं। आंदोलन अब किसानों का नहीं राजनैतिक हो चुका है ऐसा कहा जा रहा है। नया साल शुरू हो चुका है उम्मीद है आंदोलन और महामारी दोनों ही जल्द खत्म हो।