कुछ लोग जहां अपने शौक पूरे करते नही थकते वहीं कुछ ऐसे भी है जिन्हें भरपेट खाना तक नहीं मिल पाता। देश की आधी जनसंख्या गरीबी और कुपोषण से लड़ रहीं है।
सड़को पर ठोकरे खाते ये लोग दो वक्त की रोटी को तरस जाते है। वहीं कुछ क्षेत्रों में लड़कियो की कम उम्र में शादी कर उनको दूसरे घर भेज दिया जाता है।
गरीबी में जहां खुद का पेट पालना मुश्किल है लेकिन वहीं किसी और के साथ ज़िन्दगी काटनी पड़ जाती है। आगरा की रहने वाली 25 साल की रूबी के 4 बच्चे है। पति ऑटो चलाकर पैसे लाता है जिससे बस 200 रुपए की बचत हो पाती है।
गरीबी और भुखमरी के कारण रूबी के चारो बच्चे कुपोषित है। रूबी ने अपने बच्चों को पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती कराया हुआ है जहाँ उनका इलाज चल रहा है। रूबी के मुताबित जिले में और भी ऐसे ही बच्चे है जो कुपोषण के मरीज है।
जिले में करीबन 50 हजार से भी अधिक बच्चे कुपोषित है। एनआरसी की डायटीशियन ललितेश शर्मा की जानकारी के अनुसार एनआरसी में आने बच्चो में ज्यादातर बेटियां है। महामारी के चलते यह संख्या काफी बढ़ चुकी थी। साल भर पहले लड़को की संख्या में लड़कियां ज्यादा भरती हुई।
ललितेश ने बताया कि बच्चो की माताएं लड़का और लड़की में भेदभाव करती है। दोनों को सही मात्रा में दूध देने के बजाए वह लड़के को प्राथमिकता देती है और लड़कियों को कभी कभार ही दूध देती है। यदि पहला बच्चा लड़का हो जाए और दूसरी लड़की तो वह पहले लड़के के खाने पीने को ज्यादा बढ़ावा देती है।
एनआरसी की डॉक्टर नीता चिटवे ने महत्वपूर्ण जानकारियां दी। उन्होंने देखा कि कुपोषण के बारे में लोग जानते ही नहीं है। उन्हें नहीं मालूम कि कब कोनसी दवाएं लेनी चाहिए या कब डॉक्टर को दिखाना सबसे ज़रूरी है।
डॉक्टर नीता के मुताबित महिलायें नहीं जानती की उन्हें गर्भावस्था में क्या खाना चहिये और क्या नहीं। 6 महीने के शिशु को क्या खिलाना सबसे ज्यादा आवयश्क है उनको नहीं पता। इनको जागरूक किया जाना चाहिए तभी कुपोषण जैसी बीमारी से राहत मिलेगीं।
अगर देश की जनता इसी तरह कुपोषण से लड़ती रहीं तो ना जाने कितने लोग जीवित रहेंगे। इस बात पर चर्चा करने के साथ साथ इसे असल जिंदगी में अपनाना भी ज़रूरी है। कुपोषण से जूझ रहे मरीजों को सही समय पर दवाएं दिलाना अनिवार्य है व उन्हें इसकी जानकारी देना हमारा कर्तव्य है।
Written by – Aakriti Tapraniya