23 जनवरी को नेता जी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के रूप में मनाया जाता है। जिले में भी एक ऐसी जगह है जहां पर आजादी की लड़ाई से जुड़े कुछ पहलू मौजूद हैं। जीं हां हम बात कर रहे है गुरूकुल इंद्रप्रस्थ की। गुरूकुल इंद्रप्रस्थ हरियाणा-दिल्ली सीमा की अरावली की पहाड़ियों में चल रहा है।
1916 में हुई थी गुरुकुल इंद्रप्रस्थ की स्थापना
गुरुकुल इंद्रप्रस्थ के आचार्य ऋषिपाल आर्य बताते है कि स्वामी श्रद्धानंद महाराज ने जून 1916 को गुरुकुल इंद्रप्रस्थ की स्थापना की थी। उस समय मिशन आजादी था। आजादी पाने के लिए गुरुकुल में नेता जी सुभाष चंद्र बोस, शहीद भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, महात्मा गांधी, जय प्रकाश नारायण तथा लाला लाजपत राय आवागमन लगा रहता था। बताया जाता है कि गुरुकुल इंद्रप्रस्थ में नेता जी आजादी से पहले करीब 8 दिनों तक रहे थे। उनके नाम से गुरुकुल इद्रप्रस्थ में शहीद स्मृति संग्रहालय बनाया है। गुरुकुल इंदप्रस्थ में बने एक हाल में आज भी एक कोठरी है, इसी में सुभाष चंद्र बोस स्वतंत्रता सेनानियों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ मीटिंग किया करते थे, कि कैसे उनको हराया जाए।
उन्होंने बताया कि उस कोठरी के प्रवेश पर ही नेता जी सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर लगी हुई हैं। आज भी अगर कोई उक्त कोठरी में आता है तो सबसे पहले सुभाष को नमस्कार करते है। उक्त संग्रहालय में वीर शहीदों की तस्वीरें संग्रहित की गई हैं। यहां अक्सर स्कूल व कॉलेज के विद्यार्थी आते हैं, जिन्हें देश के शहीदों की कुर्बानी के इतिहास के बारे में बताया जाता है।
गुरुकुल के आचार्य ऋषिपाल बताया कि योग कक्षा में नियमित रूप से बच्चे हिस्सा लेते हैं। इसके अलावा हर रोज हवन भी किया जाता है। उक्त गुरूकुल में अन्य स्कूल के बच्चे भी बीरों की गाथा सुनने व देखने को आते है। गुरुकुल में ही आजादी के आंदोलन की योजनाएं बनती थी। सन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में गुरुकुल इंद्रप्रस्थ अंग्रेजी पुलिस की छावनी बन गया था। आज भी गुरूकुल में पढ़ाई करने वाले बच्चों को वीरों की गाथा के बारे में बताया जाता है।