जंगल को बचाने के लिए छोड़ी नौकरी, 28 साल की उम्र में लगा डाले करीब 50हज़ार पौधे

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    अपना बिज़नेस शुरू करने के लिए नौकरी छोड़ने वालों की अनेक कहानियां अपने पढ़ी होंगी. मगर आज हम आपके लिए एक ऐसे युवा की कहानी लेकर आए हैं, जो जंगल बचाने लिए अपनी नौकरी छोड़कर गांव लौटा और महज़ 28 की उम्र में 40 हज़ार पौधे लगा डाले. 

    यह कहानी उत्तराखंड के ‘ग्रीन मैन’ बनते जा रहे चंदन नयाल की है.चंदन बताते हैं कि 25 सिंतबर 1993 को उन्होंने नैनीताल के ओखलकांडा ब्लॉक में पड़ने वाले नाई गांव में जन्म लिया था.

    उनके पिता पेशे से किसान थे और चाहते थे कि उनका बेटा खूब पढ़ाई करें. गांव में पढ़ाई के संसाधन कम थे इसलिए चंदन अपने चाचा के साथ पढ़ाई के लिए रामनगर आ गए. यहां उन्होंने लोहाघाट से इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया.

     इसके बाद रूद्रपुर में टीचर की नौकरी शुरू कर दी.एक तरह से चंदन का जीवन पटरी पर था. नौकरी करके वो एक आराम की जिंदगी जी सकता थे. मगर उनके दिमाग़ में कुछ और ही चल रहा था. चंदन अपने गांव से दूर नहीं हो पा रहे थे.

    उनकी आंखों के सामने अक्सर वो तस्वीर आ जाती थी, जिसमें उन्हें चीड़ और बुरांश के जंगल आग से झुलसते नज़र आते थे.

    जंगल को बचाने के लिए छोड़ी नौकरी, 28 साल की उम्र में लगा डाले करीब 50हज़ार पौधे

    चंदन के अनुसार अगर हमें कोई नया पौधा तैयार करना हैं तो उसके लिए हमें एक बीज जमीन पर रोपना पड़ता है. इस प्रक्रिया में बीज धीरे-धीरे खत्म हो जाता है. मतलब एक बीज त्याग करता है, तब जाकर एक नया पौधा तैयार होता है.

    उसी प्रकार से पर्यावरण के संरक्षण के लिए उनका नौकरी छोड़ना ज़रूरी था. बिना नौकरी छोड़े अगर वो लोगों से पौधा लगाने या पानी बचाने के लिए कहते तो लोग उनको गंभीरता से नहीं लेते.लोग यही कहते है कि खुद नौकरी करके कमाई कर रहा है

    और हमें यहां ज्ञान दे रहा है. यही कारण रहा कि उन्होंने नौकरी छोड़ दी. गांव लौटकर चंदन ने धीरे-धीरे लोगों को पर्यावरण के संरक्षण के प्रति जागरूक किया और बांज के पेड़ लगाने शुरू कर दिए. 

    चंदन के मुताबिक उन्होंने बांज के पेड़ों को इसलिए चुना क्योंकि ये भूस्खलन रोकने में मददगार होते हैं. ये जल संरक्षण में भी अहम भूमिका निभाते हैं.शुरुआती बाधाओं के बाद चंदन की मेहनत रंग लाई और वो चामा तोक इलाके में बांज का एक जंगल तैयार करने में सफल रहे.

    अब तक चंदन करीब 50 हजार पेड़ लगा चुके हैं. साथ ही चंदन पहाड़ों का पानी बचाने में जुटे हुए हैं. इसके लिए वो बांज लगाओं, पहाड़ बचाओं जैसे कई अभियान चला चुके हैं. इसमें युवाओं की एक टीम उनकी मददगार बन रही है,

    जोकि पानी के संरक्षण के लिए अलग-अलग जगह तालाब खोद रही है.चंदन अपना घर कैसे चलाते हैं, यह चंदन से हमारा एक अहम सवाल था, जिसके जवाब में वो कहते हैं कि उनका दाना-पानी खेती से आराम से चल रहा है. उनकी ज़रूरतें कम हैं

    जंगल को बचाने के लिए छोड़ी नौकरी, 28 साल की उम्र में लगा डाले करीब 50हज़ार पौधे

    इसलिए अधिक धन की ज़रूरत नहीं है. उनके मुताबिक पहाड़ों पर औषधीय पौधे रोजगार का एक अच्छा विकल्प साबित हो सकते हैं.पर्यावरण के प्रति चंदन के प्रेम को इसी से समझा जा सकता है कि उन्होंने हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज को अपना देहदान कर दिया है,

    ताकि उनके निधन के बाद किसी पेड़ को ना काटना पड़े. चंदन ने अपनी एक नर्सरी भी तैयार की है. इसके अंदर वो आडू, प्लम, सेब, अखरोट,  माल्टे और नींबू जैसे कई पौधों को तैयार करते हैं, ताकि जन्मदिन और शादी जैसे मौकों पर उपहार के रूप में पौधा भेंट कर सकें. 

    इसके अलावा चंदन अब तक 400 से अधिक स्कूलों में जाकर बच्चों को पौधा रोपण के गुर सिखाने के साथ पर्यावरण संरक्षण का भी पाठ पढ़ा चुके

     समाज को चंदन सिंह नयाल जैसे और लोगों की ज़रूरत है.