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अवैध निर्माण के लिए चले पीले पंजे ने अरावली के सीने को बनाया खंडहर

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इंसान हो जानवर या फिर महत्वपूर्ण क्षेत्र अगर उसकी अहमियत या कद्र नहीं की जाए तो बाद में पछताने के अलावा और कोई विकल्प दिखाई नहीं रहता। कहते हैं ना कभी-कभी इंसान को इज्जत रास नहीं आती ऐसा ही कुछ स्मार्ट सिटी का तमगा पहने फरीदाबाद में लोगों के दृष्टिकोण को देखते हुए लगने लगा है।

दरअसल, जहां एक तरफ फरीदाबाद शहर में जीवनदायिनी के रूप में अरावली क्षेत्र का निर्माण कुदरत की देन है। वही हजारों अवैध निर्माण में इस दिन को मिट्टी में लीन करके रख दिया है।

अवैध निर्माण के लिए चले पीले पंजे ने अरावली के सीने को बनाया खंडहर

दिल्ली एनसीआर की हवा को साफ और स्वच्छ करने के लिए जीवनदायिनी के रूप में मिला अरावली क्षेत्र अवैध निर्माणों की भेंट पूरी तरह चल चुका है और आलम यह है कि फरीदाबाद के समस्त नेता मिलकर भी कुदरती दिल को नष्ट होने से बचा पाने में असमर्थ साबित हो रहे हैं।

अरावली क्षेत्र की सैकड़ों एकड़ जमीन तक ना सिर्फ अवैध फॉर्म हाउस बल्कि
स्कूल, मंदिर, से लेकर गौशाला व धर्मशाला एवं होटल तक का निर्माण धड़ल्ले से हो रहा है और उनकी सुध लेने वाला भी कोई नहीं दिखाई देता।

अवैध निर्माण के लिए चले पीले पंजे ने अरावली के सीने को बनाया खंडहर

इसके अलावा अवैध निर्माण को बचाने के लिए काफी संख्या में लोगों द्वारा अदालत में अर्जी डाल कर स्टे लिया गया था। मगर अब आलम यह है जब प्रशासन तोड़फोड़ अभियान चलाने के लिए पहुंचता है तो उन्हें स्टे दिखा लिया जाता है।

यही कारण है कि हौसले बुलंद होते होते गुरुग्राम से लेकर फरीदाबाद के इलाकों में हजारों निर्माण हो चुके हैं। वहीं अवैध रूप से खनन की शिकायतें सामने आती रही हैं।

अवैध निर्माण के लिए चले पीले पंजे ने अरावली के सीने को बनाया खंडहर

वही पर्यावरण विद व सेवानिवृत्त वन संरक्षक डॉ आरपी बलवान का कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय एवं राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण एनजीटी के फैसले के बाद निचली अदालत में मामला कतई नहीं जाना ही नहीं चाहिए।

उनका कहना है कि वनविभाग के अधिकारी निचली अदालत में जाकर अपना पक्ष सही से नहीं रखते हैं।

अवैध निर्माण के लिए चले पीले पंजे ने अरावली के सीने को बनाया खंडहर

कई इलाकों से पहाड़ पूरी तरह अदृश्य हो चुके हैं। जिसके चलते हरियाली का नामोनिशान तक नहीं है। कई इलाके में भूमिगत पता ही नहीं चलता है। यही नहीं इलाके में काफी संख्या में तालाब हैं उनमें साल भर पानी भरा रहता था अब अधिकतर तालाब सूखे हुए हैं।

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