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इन बेजुबान के दर्द को समझने के लिए किसी भाषा की नहीं, इंसानियत की जरूरत होती है

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इंसान की मदद तो हर कोई करने को तैयार हो जाता है। इंसान चाहे दूख में हो या फिर यू कहें की सुख में। इंसान की हर खुशी और गम में कोई न कोई साथ दे ही देता है। लेकिन अगर हम बेजुबान की बात करें तो क्या उसमें भी इंसान आगे आता है।

नहीं सड़क के किनारे या फिर यू कहें कि सड़क के बीचों बीच आए दिन कोई न कोई बेजुबान जानवर लड़ता नजर आते है। लेकिन उनको लड़ने से रोकने की बजाए हम रास्ता निकाल कर चलते बनते है। लेकिन जिले में ऐसे कई व्यक्ति मौजूद हैं। तो पर्यावण को बचाने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रहे है। आज हम बात करेंगें सेव अरावली ट्रस्ट व वाइल्ड लाइफ के लिए कार्य करने वाले संजय राव बागुल
की।

इन बेजुबान के दर्द को समझने के लिए किसी भाषा की नहीं, इंसानियत की जरूरत होती है

उन्होंने बताया कि 29 दिसंबर 2020 की शाम को सेक्टर 19 निवासी रजत ने उनके एरिया में बनी पानी की टंकी के पास एक घायल अवस्था में चील को देखा। जिसके बाद उन्होंने पाया कि अगर इसकी मदद नहीं की जाएगी, तो कोई न कोई जानवर इसको अपना भोजन बना लेगा। जिसके बाद उन्होंने सेव अरावली ट्रस्ट व वाइल्ड लाइफ के लिए कार्य करने वाले संजय राव से संपर्क किया।

इन बेजुबान के दर्द को समझने के लिए किसी भाषा की नहीं, इंसानियत की जरूरत होती है

जिसके बाद रजत उक्त चील यानि इंग्लिश में ब्लैक काईट को लेकर उनके पास आए। वहीं संजय राव बागुल ने बताया कि जिस समय चील उनके पास आई थी। उसकी हालत उस समय बहुत ही नाजुक थी। अगर रजत उस दिन चील को उनके पास लेकर नहीं आते तो शायद वह आज जिंदा नहीं होती।

इन बेजुबान के दर्द को समझने के लिए किसी भाषा की नहीं, इंसानियत की जरूरत होती है

उस चील का पूरी तरीके से ध्यान रखा गया व उसका इलाज किया गया। जिसमें उनके द्वारा ग्लूकोज का पानी पिलाया गया और उसको भरपूर तादाद में खाना खिलाया गया। करीब एक महीना बीत जाने के बाद जब वह चील पूरी तरह स्वस्थ हो गई और उड़ने लायक हो गई। जब संजय राव बागुल के द्वारा सुनिश्चित कर लिया कि अब यह चील उड़ सकती हैं। तो उन्होंने 31 जनवरी को अरावली यात्रा के दौरान आम जनता के सामने उस चील को खुले आसमान में छोड़ दिया और वह चील खुशी-खुशी उड़ती हुई चली गयी।

इन बेजुबान के दर्द को समझने के लिए किसी भाषा की नहीं, इंसानियत की जरूरत होती है


संजय राव बागुल ने बताया कि इंसान की हर कोई मदद करने के लिए आगे आ जाते है। लेकिन इन बेजुबान के लिए बहुत ही कम लोग आगे आ पाते है। वहीं सेव अरावाली ट्रस्ट के लिए कार्य करने वाले कैलाश बिधुड़ी ने बताया कि बेजुबान जानवरो की मदद के लिए अभी तक अरावली की पहाड़ियों में 10 जोहड़ बनाये हैए जिसमे बारिश के पानी को संचित करने के पूरे इंतजाम किये है व भीषण गर्मी में जब उन जोहड़ो का पानी सूख जाता है तो टैंकर से उन जोहड़ों में पानी भरा जाता है।

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