किसानों के लिए बनाए गए कृषि कानून इतना केंद्र सरकार के लिए परेशानी का सबब नहीं बन रहा है। जितना हरियाणा सरकार के गठबंधन के लिए मुसीबत की जड़ बन चुका है। यही कारण है कि इसका फायदा विपक्षी दल द्वारा बखूबी उठाया जा रहा है।
इसी कड़ी में अब हरियाणा के विपक्षी दल कांग्रेस द्वारा हरियाणा में मौजूदा भाजपा जजपा गठबंधन सरकार के विरोध विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए कमर कस चुकी है।
दरअसल कांग्रेस तीन कृषि कानून को हथियार बनाकर प्रदेश की मौजूदा सरकार के प्रति लोगों के विश्वास को आधार बनाकर ही सदन में अविश्वास प्रस्ताव पेश करेगी। जानकारी के मुताबिक,
विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए कांग्रेस की ओर से करीब 10 दिन पहले लिखित में स्पीकर को देना होगा। यह स्पीकर की मर्जी पर निर्भर करेगा कि वह कांग्रेस द्वारा दिए गए अविश्वास प्रस्ताव को स्वीकार करें अथवा अस्वीकार कर दें।
यद्यपि विधानसभा स्पीकर द्वारा कांग्रेस द्वारा पेश किए गए अविश्वास प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया जाता है तो उसके बाद सदन में कोई भी एक विधायक खड़ा होकर अविश्वास प्रस्ताव दे सकता है। मगर यह भी जरूरी है कि अब तो विधायक के समर्थन में अन्य 18 विधायकों का होना भी लाजमी होगा।
ऐसे में कांग्रेस सदन में यह फार्मूला अपना सकती है, लेकिन इस प्रक्रिया से आए अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के लिए स्पीकर समय देने के लिए 10 दिन का समय ले सकते हैं। इसलिए कांग्रेस की कोशिश है कि वह राज्यपाल के अभिभाषण के तुरंत बाद या उससे अगली सिटिंग में सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए।
कांग्रेस के विधायकों की संख्या 30 है। भाजपा के 40, जजपा के 10, सात निर्दलीय और एक हरियाणा लोक हित पार्टी के विधायक सदन में मौजूद हैं। इनेलो विधायक अभय चौटाला सदन से इस्तीफा दे चुके, जबकि कालका के विधायक प्रदीप चौधरी की विधानसभा में सदस्यता रद हो चुकी है।
बहुमत के लिए सरकार को 46 विधायकों की जरूरत होती है, लेकिन दो विधायक कम होने से अब उसका काम 44 विधायकों से भी चल जाएगा। भाजपा के 40 विधायकों के साथ जजपा के 10, पांच निर्दलीय और एक हलोपा विधायक गोपाल कांडा हैं,
इसलिए सरकार को हालांकि बहुत ज्यादा खतरा नहीं है, लेकिन कांग्रेस इस अविश्वास प्रस्ताव के जरिये लोगों में सरकार के प्रति भरोसा नहीं होने का संदेश देना चाहती है।